छत्तीसगढ़ के दक्षिण में अपनी पैठ जमाने के बाद नक्सली पश्चिम में राजनांदगांव, मोहला-मानपुर, खैरागढ़, कवर्धा और मुंगेली में विस्तार करने में लगे हैं। जंगलों के बाहर आकर नक्सली गांव में बैठक ले रहे हैं। सरकार व प्रशासन की बर्बरता की तस्वीर दिखाकर उन्हें संगठन में शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्हें लोकल बोली गोंडी, हल्बी व छत्तीसगढ़ी में बरगलाया जा रहा है।
ग्रामीणों ने बताया कि नक्सलियों ने कई बार गांवों में आकर बैठक ली है और लड़ाई में शामिल होने के लिए कहा जा रहा है। UNA के सूत्रों से बातचीत में कवर्धा में सक्रिय एक सरेंडर नक्सली ने दावा किया कि 17 साल पहले उसका जिन तरीकों से ब्रेनवाॅश किया गया, नक्सली उससे कहीं आगे के तरीके अपना रहे हैं।
भोरमदेव दलम के लीडर रहे सरेंडर नक्सली करन उर्फ सुदधु ने बताया कि फॉरेस्ट रिजर्व एरिया और अभयारण्य उनके लिए घर है। गढ़चिरौली से लेकर मुंगेली और बालाघाट के बीच के रिजर्व एरिया और अभयारण्य छिपने की जगह हैं। कान्हा किसली, मंडला, बालाघाटा और डिंडौरी के आसपास नक्सली छिपे हैं।
पिछले साल नवंबर और दिसंबर में नक्सलियों के साथ लगातार हुई मुठभेड़ों में 7 से ज्यादा नक्सली मारे गए। माओवादी संगठन अभी अचानकमार और भोरमदेव रिजर्व एरिया (कवर्धा) पर विस्तार के लिए काम कर रहा है। हालांकि नई भर्ती नहीं हुई है।
सुदधू ने दावा किया कि इन इलाकों में भी लोग भोजन और आर्थिक तौर पर नक्सलियों की मदद कर रहे हैं। सुदधू 17 साल पहले पढ़ाई छोड़कर नक्सलियों के संगठन में शामिल हो गया। इतने साल राजनांदगांव और आसपास जंगलों में घूमता रहा, फिर उसका ट्रांसफर कवर्धा कर दिया गया था।
रणनीति में बदलाव अब मुठभेड़ से बच रहे नक्सली
नक्सलियों के बड़े लीडर के साथ काम कर चुके सरेंडर नक्सली ने बताया कि नक्सलियों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। वे फोर्स से मुठभेड़ से बच रहे है। फोर्स को देखकर भी हमला नहीं कर रहे हैं, वहां से निकल जा रहे है। इसलिए नक्सली और फोर्स की मुठभेड़ कम हुई है। उनसे ज्यादा हथियार भी नहीं मिले हैं। बस्तर के सातों जिलों के साथ महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर लगातार विस्तार करने में लगे है। इस इलाके की जिम्मेदारी झीरम कांड और सीनियर कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा की हत्या में शामिल कबीर उर्फ सुरेंदर को दी गई है। वह चार भाषा का जानकर है। वह लोगों को जोड़ने में लगा है।
सीमा पर जंगल, इसलिए आसानी
छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के बीच बॉर्डर पर घने जंगल हैं। नक्सलियों को यहां मूवमेंट में आसानी हो रही है। सरेंडर नक्सली ने बताया कि वे लोग बीजापुर से अपने दलम को लेकर पैदल कवर्धा से मुंगेली होते हुए बालाघाट जाते थे। इसी रास्ते से वहां से वापस भी लौटते थे। लेकिन अब भी इस इलाके में लोकल लोग नक्सली संगठन में भर्ती नहीं हुए हैं। यहां जितने नक्सली सक्रिय हैं, ज्यादा बस्तर से हैं।
लगातार भर्तियों का दांव
चर्चा है कि बस्तर के अंदरुनी इलाके में लगातार नक्सली अपने दलम और संगठन को मजबूत करने में लगे हैं। बीजापुर, सुकमा और कोंडागांव इलाके में भर्ती हो रही है। पुलिस का दावा है कि लोग अब नक्सलियों के साथ जाने से मना कर रहे हैं। उन्हें धमकियां भी मिल रही है, लेकिन उनके साथ नहीं जा रहे हैं। इसलिए भर्ती में नक्सली अपने प्रभाव के गांवों में धमकी-चमकी और हत्याओं से भी नहीं चूक रहे हैं।
युवा भटकें नहीं, इसलिए सीमा के 500 गांवों में बनाईं खेल समितियां
कवर्धा एसपी डॉ. लाल उमेंद सिंह जंगलों के भीतर रहने वाले युवाओं को नई दिशा देने में लगे हैं। ताकि युवा राह न भटके। उन्होंने छत्तीसगढ़, एमपी और महाराष्ट्र बॉर्डर के 500 गांवों में खेल समितियों का गठन किया है, जिनसे लगातार संवाद कर रहे हैं। वहां के बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, शहर में कोचिंग सुविधा दी जा रही है। जिन गांवों में स्कूल नहीं है, वहां जाकर पढ़ाई करवाई जा रही है। यही वजह है कि कवर्धा से एक भी युवा के नक्सली संगठन में भर्ती होने की सूचना नहीं है।