भारत के विभाजन की मांग करने वाले मुस्लिम लीग की स्थापना आज ही के दिन 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में हुई थी। दिलचस्प बात यह है कि जिस ढाका में इसकी स्थापना हुई थी और मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की थी, वही सीमा अब बांग्लादेश के तौर पर दूसरा देश बन चुका है। भारत में द्विराष्ट्र का सिद्धांत पहली बार सर सैयद अहमद खां ने दिया था, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक भी थे। उन्होंने मुहम्मडन शिक्षा सम्मेलन की स्थापना 1886 में की थी, लेकिन तब इसकी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। इसकी वजह से इस संगठन की ओर से ही अपने लिए राजनीति न करने का नियम तय किया गया था। हालांकि बाद में इसे खत्म कर दिया गया।
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इसी बीच 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में 3000 लोगों की मौजूदगी में मुस्लिम लीग के गठन का प्रस्ताव पारित हुआ। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग नाम का प्रस्ताव नवाब ख्वाजा सर सलीमुल्लाह बहादुर और हकीम अजमल खान ने दिया था। इस तरह देश में मुस्लिम के नाम पर पहली राजनीतिक पार्टी का गठन हुआ था। इसके पीछे यह कोड था कि कांग्रेस हिंदू की पार्टी है और मुस्लिमों के लिए एक अलग दल की जरूरत है। साइंस से देश में कट्टरपंथ बढ़ने और राजनीति में ध्रुवीकरण की शुरुआत हुई।
ये लोग इस सांप्रदायिक दल के संस्थापक थे, ज्यादातर नवाब
मुस्लिम लीग के मोहरे पर नवाबों, जमींदारों और बुर्जुआ मुस्लिम की ही पार्टी थी। लेकिन बनी मुस्लिमों के नाम पर तो उनकी एकमात्र नुमाइंदा होने की बात होने लगी। मुस्लिम लीग के संस्थापकों में ख्वाजा सलीमुल्लाह, विकार-उल-मुल्क, सैयद आमिर अली, सैयद नबीउल्लाह, खान बहादुर दास और मुस्तफा चौधरी शामिल हैं। इसके पहले राष्ट्रपति सुल्तान सर मुहम्मद शाह थे। फिर भी मुस्लिम लीग के लोग यह दावा करते हैं कि वह आजादी के लिए मुकदमा दायर करना चाहते हैं, लेकिन सच यह था कि इस संगठन का उद्देश्य ही अलग था।
अंग्रेजों से वफादारी था मुस्लिम लीग का मकसद
मुस्लिम लीग ने अपने उद्देश्यों में कहा था कि हमारा मकसद ब्रिटिश सरकार के प्रति मुस्लिमों में वफादारी पैदा करना है। सरकार से मुस्लिमों के लिए अधिक अधिकार हासिल करना। दूसरे समुदाय के मुस्लिम के प्रति पूर्वाग्रह से जैसे मकसद इसमें शामिल थे। उनके इन उद्देश्यों के चलते ही ब्रिटिश सरकार को भारत में तेजी से उभर रहे राष्ट्रवाद से निपटने के लिए एक रास्ता मिल गया था। इसके बाद 1930 में पहली बार मुस्लिम लीग ने दूसरे मुल्क की स्थापना का प्रस्ताव रखा। फिर मुस्लिम लीग ने यह प्रचार शुरू किया कि हिंदू और मुस्लिम अलग-अलग मुल्क हैं। इसलिए अलग देश मुस्लिम के लिए जरूरी है।
मुस्लिम लीग से कब जुड़े थे मोहम्मद अली जिन्ना?
अब अहम सवाल यह है कि मोहम्मद अली जिन्ना कब मुस्लिम लीग से जुड़े थे। इस संगठन से जिन्ना 1913 में जुड़े थे। शुरुआती दिनों में वह कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों के सदस्य रहे, लेकिन अंत में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। 1940 में लाहौर में पहली बार जिन्ना ने मुस्लिम लीग के अधिवेशन में कहा था कि हिंदू और मुस्लिम का एक मुल्क के तौर पर रहना असंभव है। हालांकि इस मांग का मुस्लिम लीग के ही एक धड़े ने विरोध किया था। इस गुट ने ऑल इंडिया जम्हूर मुस्लिम लीग नाम से नई संस्था बना ली। अंत में इसका विलय कांग्रेस में हो गया।