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मुंबई डायज 26/1 दुःख पर बनी सबसे सुखद वेब सीरीज – News18 हिंदी

समीक्षा: 26 नवंबर 2011… मुंबई के लिए, महाराष्ट्र के लिए, भारत के लिए और दुनिया के लिए एक ऐसी रात थी जिसमें टेलीविजन पर इंसानियत को खरीदारी से चलनी होते हुए देखें, बम की विस्फोट में भाई चारे के चीथड़े उड़ते हुए देखे और देश की अखंडता उन्होंने चुनौती देते हुए लाखों लोगों को अपने जीवन को अलविदा कहते हुए देखा। उस रात और उसके बाद के करीब 60 घंटे तक दुनिया ने देखा कि पाकिस्तान पाकिस्तान जैसा मामूली देश है, हिंदुस्तान से द्वेष करने के नाम पर उनकी सेना और आंखों के ज़ेरिये, कैसे मुंबई जैसे महत्वपूर्ण शहरों पर हमला करता है और वहशत का ऐसा अश्लील नृत्य होता है जिसे देखकर पत्थरदिल लोग भी पिघल कर रो पड़े थे। निखिल अडवाणी और निखिल गोंसाल्विस द्वारा निर्देशित वेब सीरीज मुंबई डायज 26/11, इस वजह से बदलाव की वजह से जन्मी एक रक्तरंजित कहानी लेकर आते हैं, जिसमें दुखों के पहाड़ की तलहटी में छोटे छोटे सुखों के फूल खिले हैं। इस साल की सबसे अच्छी लिखी और निर्देशित वेब सीरीज के तौर पर इसे बरकरार रखा जाएगा। कुछ एक जगह अगर छोड़ दें तो ये वेब सीरीज बहुत हद तक वास्तविक जीवन से जुलती है।

26/11 के जुर्माने पर लाखों पन्ने रंगे जा चुके हैं, एक नौकरी जा चुकी है, गृह मंत्री को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा और इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कम से कम आधे दर्ज दस्तावेज और फिल्में दर्ज कीं और इतने ही वेब सीरीज भी अवरुद्ध हो जाते हैं। शुरुआत हुई थी राम गोपाल वर्मा की फिल्म “द अटैक ऑफ़ 26/11” से जिसकी तलाशी काम करते हुए अपनी जगहें विलासराव देशमुख के साथ वो भी अटैक साइट्स का जायज़ा ले रहे थे। होटल मुंबई, वन लेस गॉड, ताज महल जैसी फिल्मों के साथ सर्वाइविंग मुंबई, ऑपरेशन ब्लैक टोरनेडो जैसी डॉक्यूमेंट्री और द स्टेट ऑफ़ सीज जैसी वेब सीरीज़ ने इस कार्य की योजना, हमलों के पीछे की राजनीति और दृश्यों को बड़े ही अच्छे तरीके से बनाया दिखाया गया है। Amazon प्राइम वीडियो की वेब सीरीज मुंबई डायज 26/11 इस हमले के एक अलग रूप में दिख रही है।

मुंबई के अतिक्रमण में भी लोग बाजार का शिकार हो रहे थे उन्हें मुंबई के कामा हॉस्पिटल (फोर्ट एरिया) में लाया जा रहा था। मूल रूप से ये अस्पताल बच्चों और औरतों के लिए बनाया गया था। 1886 में शुरू होकर इस अस्पताल की हालत किसी सरकारी अस्पताल जैसी ही हुई थी। हमले में घायल लोगों को इसी अस्पताल में लाया जा रहा था। वेब सीरीज में किस तरह से डॉक्टर्स अपने निजी जीवन से जूझ रहे हैं, न्यूनतम सुविधाओं और उपकरणों को लेकर कैसे इन सभी घायलों का इलाज करने की कोशिश करते हैं, ये दिखाया गया है। जब अजमल कसाब और उसके साथी अबू इस्माइल ने ए प्रमुख हेमंत करकरे, पर्यवेक्षक कामटे, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर और उनके साथियों की गाडी पर अधिकार की राय उन्हें मार दी थी तो वो सभी कामा अस्पताल लाये थे। इसके बाद अबू और अजमल के गाडी को पुलिस बैरिकेडिंग की मदद से रिकॉर्डिंग की गई थी। मुठभेड़ में अबू वहीँ मारा गया और अजमल कसाब को पकड़ लिया गया। इन दोनों को भी कामा हॉस्पिटल ही लाया गया था।

छेतीजा, अनुष्का महरोत्रा ​​जैसे नए लेखक और निखिल अडवाणी की टीम के पुराने साथी निखिल गोंसाल्विस और संयुक्ता चावल ने मिल कर मूल कहानी का आधार ले कर कुछ फेर बदल गए हैं। कामा हॉस्पिटल के अंदर के झटकों में क्या हुआ था इसकी जानकारी पूरी तरह से कभी सामने नहीं आई लेकिन इस वेब सीरीज में हॉस्पिटल के काम करने के तरीके, इसमें आने वाली रुकावटें, स्टाफ और डिवाइस की कमी जैसे क्रैक को काफी अच्छे से दिखाया गया है है। चूंकि वेब सीरीज अस्पताल में काम करने वाले बनी हुई है इसलिए यह धारणा कहानी को नीचा दिखाने की नहीं बल्कि दिशा देने का काम करती है। राइटर मंडली को एक बैलेंस्ड स्क्रीन प्ले राइटिंग के लिए मॉकडाउन किया जाना चाहिए।

डॉक्टर कौशिक ओबेरॉय की भूमिका में मोहित रैना ने जिस तरह का प्रदर्शन किया है, उसे देख कर लगता है कि उनके अच्छे रोल और अच्छे निर्देशन की दरकार है। पूरी श्रृंखला में उन्होंने एक कर्तव्य परायण डॉक्टर की भूमिका निभाई है जो उपचार करने के लिए प्रोटोकॉल पर बरकरार नहीं है। ए प्रमुख को बचाने में उनकी विफलता की वजह से वो पकडे गए आतंकवादियों का इलाज नहीं करते हैं जबकि एटीजी के अन्य अधिकारियों की इस कार्रवाई की वजह से उनके खिलाफ हो जाते हैं, उन पर अत्याचार किया जाता है और मीडिया उन्हें बनाने में विलन करता है लग रहा है। श्रेया धन्वन्तरि एक बार फिर एक तूफानी पत्रकार की भूमिका में हैं और पहली बार जब वो अपनी शिकायत के दुष्परिणाम कहते हैं तो उनके चेहरे पर जो आत्मग्लानि के भाव आते हैं वो उनकी पहचान को ऊंचा करते हैं।

कोंकणा सेन शर्मा का रोल अपेक्षाकृत कम है लेकिन एक हिंसक पति से परेशान कोंकणा कैसे भाईयों के लिए अपनी दबी हुई पर्सना लाइट से लड़ती रहती हैं वो सिर्फ कोंकणा ही कर सकती थी। हॉस्पिटल के चीफ के रोल में लाइट बिलाव अद्भुत हैं। हॉस्पिटल में ड्यूटी ज्वाइन करने के पहले दिन इतनी बड़ी दुर्घटना से जूझते और अपने जीवन की लड़ाई से जूझते तीन ट्रेनी डॉक्टर – मृण्मयी देशपांडे (दादा शहर की रास्ता की लड़की जिसे हर कदम पर जात का एहसास करवाता है), नताशाभरद्वाज (मेरा सक्सेसफुल कैंसर सर्जन पिता की अमेरिका से पढ़कर लौटी बेटी जो पिता की अहमियत में पिस चुकी है और अवसाद की दवाई के रूप में रहती है) और सत्यजीत दुबे (जो मुस्लिम होने का टैग लेकर जी रहे हैं और एक अच्छे इंसान के रूप में हैं) खुद को साबित करने में लगे रहते हैं)। टीना देसाई (डॉक्टर कौशिक की पत्नी और होटल के गेस्ट रिलेशंस मैनेजर) जब होटल में बूसी गेस्ट्स को सुरक्षित निकालने के लिए अपनी जान की परवाह न करने में जुटी रहती हैं तो उनके दिमाग में उनके पति से टूटते रिश्ते और असमय गर्भपात के भारी अवसाद होता है है। संदेश कुलकर्णी ने एसीपी महेश तावड़े की भूमिका में कितना परफॉरमेंस दिया है। इस सीरीज में एक बहुत ही महीन बात का खास ख्याल रखा गया है। किसी भी पुलिस वाले की कोई निजी कहानी सिर्फ डॉक्टरों और अस्पताल के कर्मचारियों के संबंधों पर ध्यान केंद्रित नहीं करती है।

वेब सीरीज की सफलता में इसका फ्लैश म्यूजिक का भी बड़ा हाथ है। संगीत आशुतोष पाठक ऐसे स्वतंत्र संगीत उद्योग में सबसे सफल संगीतज्ञों में से एक हैं। जावेद जाफरी का बहुत चर्चित गाना ‘मुंभाई’ के पीछे भी आशुतोष का ही दिमाग है। नेटफ्लिक्स की सीरीज जैमतारा के सिनेमेटोग्राफी से अचानक चर्चा में आए सिनेमेटोग्राफर कौशल शाह ने कैमरा चालाक से संचालित किया है। इसी तरह उनका कैमरा बहुत ही आकर्षक है। निर्देशक मिलाप ज़वेरी के भाई ज़वेरी ने एडिटिंग की कमान संभाली है। सच में विशेषज्ञ हैं। एक भी पल बोरिंग नहीं है। घटना खींची जाती हैं। किसी भी विवरण की बैक स्टोरी को इतना नहीं बताया गया है कि मेडिकल ड्रामा की मूल कहानी से ध्यान निकालें। मुंबई डायज जीत है निखिल अडवाणी की. लेखकों के। अभिनेताओं की और कविश सिन्हा की. कविश ने सृष्टि की है। एक भी अभिनेता ऐसा नहीं है जो पुष्करराज के बजाय फिट नहीं होता है जो वार्ड बॉय की भूमिका निभा रहे हैं। इस वेब सीरीज में हर विभाग का काम देखा जाता है। इसे देखा जाना चाहिए। कुछ दृश्य रोक सकते हैं। कुछ रूला सकते हैं। पूरी श्रृंखला में एक तनाव बना रहता है और निर्देशकों ने इसमें हास्य भरने की गलती नहीं की है। ऐसा कम देखने को मिलता है।

विस्तृत रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: अमेज़न प्राइम वीडियो, छवि समीक्षा, कोंकणा सेन शर्मा

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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