लेटेस्ट न्यूज़

फिल्म रवि: भोला – भोला फिल्म की समीक्षा हिंदी में अजय देवगन तब्बू दीपक डोबरियाल अभिनीत

अजय देवगन की सुपरहिट ‘दर्शकम सीरीज़’ साउथ की ही सफल फ़िल्म ‘दर्शकम’ की रीमेक बनी थी। सभी जानते हैं कि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कितना कमाल साबित हुई है। अब अजय देवगन एक बार फिर साउथ की ‘कैथी’ (तमिल) का रीमेक ‘भोला’ लेकर आए हैं। मगर इस बार अजय न केवल हीरो हैं, बल्कि निर्माता-मूर्ख की तिहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। ‘दृश्यम’ में जहां अजय ने अपने फैमिली मैन के अवतार को पुख्ता किया था, वहीं इस बार वे हाई-ऑक्टेन एक्शन हीरो के रूप में पेश हुए हैं।

‘भोला’ की कहानी

कहानी की शुरुआत धमाकेदार एक्शन से होती है, जहां एसीपी डायना (तब्बू) कोकीन से लदे ट्रक का पीछा कर रही है। खाने के लिए अपनी जांघी का परिचय देने के बावजूद वह एक हजार करोड़ का कोकीन ज़ब्त कर लेता है और उसे लालगंज पुलिस थाने के खुफिया बैंकर में भी छिपा देता है। डायना के बॉस (किरण कुमार) सलाह देते हैं कि जब तक अदालत मालिक की कस्टडी नहीं ले लेती, तब तक ये जानकारी गुप्त रहनी चाहिए। लेकिन वे दोनों इस बात से अनभिज्ञ हैं कि किसी अन्य सेना में मौजूद भेदिया (गजराज राव) पूरी जानकारी नशीले माल की तस्कर करने वाले माफिया गुट के अश्वत्थामा (दीपक डोबरियाल) को दे रहे हैं।

अश्वत्थामा और उनके खूंखवार भाई निठारी इस माफिया के सरगना हैं। डायना और उनकी टीम को साजिश का शिकार बनाया जाता है। उन्हें शराब पीकर बेहोश कर दिया जाता है, अब पुलिस वालों की जान खतरे में है, मगर डायना बच जाती है, क्योंकि वह शराब नहीं पीती थी। डायना के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है, बेहोश पुलिस कर्मियों को सूचित कर इलाज करवाना। साथ ही उसे अपने थाने पर भी रोक दिया, ताकि माफिया उस मालिक पर सेंध न लगे। इस काम के लिए वह भोला (अजय देवगन) से मदद मांगता है। असल में भोला को दस साल बाद जेल से रिहा किया गया है। जेल में रहने वाले भोला से पता चलता है कि उनकी एक बेटी है, जो लखनऊ के एक अनाथालय में रहती है। वह अपनी बेटी से मिलने को बेताब है। किस तरह मिली बेटी से निकला भोला डायना की मुसीबत में फंसना, इसी के साथ कहानी आगे बढ़ती जा रही है।

दूसरे मोर्चों पर लालगंज थाने की जिम्मेदारी उसी दिन ड्यूटी पर हवलदार (संजय मिश्रा) आ गए और वहां तीन युवा मौजूद हैं। भोला, डायना की मदद करेगा या बेटी से मुलाकात करेगा? क्या वे दोनों पुलिसकर्मी की जान बचाएंगे? क्या अश्वत्थामा अपने भेदिये की मदद से थाने में सेंध हटे हुए अधिकार को प्राप्त कर सकते हैं? इन सभी सवालों के जवाब आपको फिल्म में मिलेंगे?

‘भोला’ का टेली

‘भोला’ का रिव्‍यू

निर्देशक के रूप में अजय देवगन पहले ही सीन में धुंधाधार एक्शन सीक्वेंस से फील के टोन सेट कर देते हैं। कहानी एक रात की है और काली-अंधेरी रात में एक्शन की तीव्रता और ज्यादा महसूस होती है। फ्रेश लुक्स के बावजूद यह रॉ होने का अवतार है। फिल्म में 5-7 मिनट का एक धमाकेदार सीक्वेंस भी है, जो रोंगटे बनाता है। मगर इमोशंस के स्तर पर फिल्म उन्नीस साबित होती है। मूल फिल्म ‘कैथी’ में एक्शन के साथ-साथ भावनाओं का भी संतुलन था। एक्शन से भरपूर फिल्मों में लड़ाई या मारधाड़ का तर्क दावा करना मुश्किल है कि कैसे एक अकेला नायक एक साथ 30-40 लोगों का चूमर निकालने में रहता है, मगर भोला में उस एक्शन को जिस तरह से कोरियोग्राफ किया गया है, वो सिनेमा प्रेमी के विजुवल ट्रीट सिद्ध होता है।

भोला के चरित्र को मकरंद देशपांडे की जुबानी महिमा दी गई, जिससे पर्दे पर लार्जर दान जीवन भर गया। भोला के फ्लैशबैक ट्रैक में कुछ सवालों के जवाब बाकी रह जाते हैं, मगर एक रात की कहानी को कैमरे में दिखाने का काम फिल्म के सिनेमैटोग्राफर रिमिक्स सेगमेंट ने बहुत ही चतुराई से किया है। कैमरा एंगल्स में भी उन्होंने कई प्रयोग किए हैं। कई क्लोज़अप दृश्यों और एक्शन सीक्वेंस को स्क्रीन पर देखना ट्रीट जैसा साबित होता है। विशेष रूप से गंगा आरती के नशे में पूरे बनारस में ड्रोन शॉट दिखाते हैं और ट्रक में एक्शन सीक्वेंस जादू के बन जाते हैं। इसके लिए एक्शन डायरेक्टर रमज़ान बुलट और आरपी यादव की उम्मीद करेंगे।

फोकस म्यूजिक पर काम किया जाना चाहिए था, उसी समय अभिनेताओं की बोली को भाषा पर भी थोड़ा सा खींचा जाना चाहिए था। हालांकि 3डी फिल्म का दृश्य एक सिनेमाई अनुभव हो सकता है। म्यूजिक की बात करें तो, ‘नजर लग जाएगा’ गाना फेयरेस्ट बन गया है। अजय सबसे पहले भोला का ब्रह्मांड बनाने की बात कर रहे हैं और क्लाइमेक्स में उनके दर्शकों को भी मिल जाता है।

अभिनय और संरक्षण फिल्म का मजबूत पक्ष है। भोला के रूप में जय देवगन अपने पूरे रूप में हैं। थर्रा देने वाले एक्शन हीरो के रूप में अजय का इमोशन ओवर नहीं होता, वहीं बेटी के साथ अपने इमोशनल ट्रैक में वे सफल रहते हैं। कहानी में उनके शिव भक्त, शिव के मुरीदों के लिए आकर्षण का केंद्र सिद्ध हो सकता है। तब्बू ने बहादुर पुलिस अफसर के साथ पूरा न्याय किया है। जज्बाती दृश्यों में भी वे रैप मार ले जाते हैं।

अजय की पत्नी के गेस्ट रोल में अमला पॉल गोरी हैं। अपने थाने को माफिया से बचाने के लिए प्रियसरत हवलदार की भूमिका को संजय मिश्रा ने बहुत ही खूबसूरती से अंजाम दिया है। दीपक डोबरियाल खूंखार विलेन के रूप में याद रहते हैं, तो गजराज राव चौंकाते हैं। विनीत कुमार और राज किरणें संबंधित कलाकार भी अच्छे हैं।

क्यों देखें – एक्शन फिल्मों के शौकीन और अजय देवगन के फैंस यह फिल्म देख सकते हैं।

Show More

Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
Back to top button

You cannot copy content of this page