मोर मान मोर कबीरधाम के विशेष लेखांकन के इस क्रम में आपका स्वागत है । मोर मान मोर कबीरधाम (इतिहास विरासत स्मृतियां) के माध्यम से UNA आप तक कबीरधाम से जुड़े अनसुनी और ऐसी इतिहास स्मृतियों को सामने लाने को कोशिश कर रहा है जो कबीरधाम के प्रत्येक व्यक्ति के लिए गर्व का विषय है । इस लेख के माध्यम से हमें यह विश्वास है की आप हमारे द्वारा आपके सामने लाए गए इन जानकारियों से प्रेरित होकर अपने कबीरधाम के बारे जानकारी औरों से बड़े गर्व के साथ साझा कर रहे होंगे । हमारा आपसे बस यही निवेदन हैं कि अपने परिवार के साथ इन सब बातों को जब भी आपको समय मिले उन्हे जरूर बताएं ।
कबीरधाम में इतिहास से जुड़े अनेक ऐसे स्थान है जिनकी कल्पना हम नही कर सकते UNA इन स्थानों की जानकारी आप तक अपने कड़े परिश्रम से लाने में कामयाब होता जा रहा है कई ऐसे स्थान भी है जिन्हे आप जानते है लेकिन उनका समुचित इतिहास नही।
मोर मान मोर कबीरधाम में आज हम बात करेंगे द्वापरयुग से जुड़े एक स्थान की लेकिन उस स्थान के बारे में जानने से पहले आपको उसका द्वापर से जुड़ा इतिहास जानना जरूरी है ।
द्वापर में जब पांडव अपने अज्ञातवास में थे और वन में भटक रहे थे भटकते भटकते कुछ दिनों तक उन्होंने मैकल पर्वतों के बीच घने जंगलों को अपना निवास बनाया था। एक बार जब भीम पानी और भोजन की तलास में भटक रहे थे तब वे पानी की खोज में मैकल के घने वन से निकल कर पर्वत के किनारे तक आ गए और जब वे थक गए तो उन्होंने गुस्से में अपने पैर को जोड़ से जमीन पर पटका जिससे एक गड्ढा हो कर कुंड जैसी आकृति का निर्माण हो गया और वहा से अविरल जल की धारा बहने लगी।
भीम ने अपनी प्यास बुझाई और वहा से भोजन की तलास में गुस्से और घमंड के साथ आगे की ओर बढ़ने लगे महाभारत का धर्म युद्ध बस नजदीक ही था धर्मराज युधिष्ठिर भी युद्ध की तैयारियों में राजा इंद्र के पास गए हुए थे । महाभारत धर्म युद्ध के पूर्व भीम में इतना गुस्सा और घमंड पांडवों के लिए ठीक नहीं था इस बात को लेकर हनुमान जी भीम के घमंड को तोड़ने और उनकी परीक्षा लेने के लिए उनके रास्ते में एक वृद्ध वानर का रूप लेकर लेट गए । जब भीम की नजर उन पर पड़ी तो भीम ने वृद्ध वानर से उनकी पूछ हटाने को कहा इस बात पर वृद्ध वानर ने भीम से कहा के भाई तुम खुद ही मेरी पूंछ हटा दो और भीम उनकी पूंछ हटाने लग गए ।
बहुत प्रयास करने के बाद भी भीम उनकी पूंछ नही हटा पाए इस घटना के बाद भीम का गुस्सा और घमंड शांत हुआ और पराक्रमी भीम को यह ज्ञात हो गया के वृद्ध वानर कोई साधारण वानर नही है भीम ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया और फिर हनुमान जी प्रकट हुए और उन्होंने उनको प्रभु श्री राम की पूजा करने को कहा । जिसके बाद उन्होंने कुंड के पानी को मां नर्मदा का स्वरूप मान कर प्रभु श्री राम और भगवान शिव की पूजा की ।
देखें भीम और हनुमान जी का संवाद- वीडियो साभार pen bhakti
हालाकि द्वापर में हुए पूरे घटना पर पुराणों में उक्त स्थान का कोई उल्लेख नहीं मिलता है परंतु किवदंती और भीम के पैरों के निशान जो की आज भी उस स्थान में मौजूद है इस बात के प्रमाण है । वहा स्थित कुंड जो आज भी सावन मास में बोलबम के कावरियों द्वारा जल भरकर भोरमदेव में अर्पित किया जाता है । द्वापर की घटना उक्त स्थल में ही होने की प्रामाणिकता को साकार करती है । ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी की प्रभु राम की पूजा की प्रेरणा दिए जाने के कारण इस स्थान का नाम पुराने प्रबुद्ध जनों ने स्थानीय बोलचाल की भाषा में रामचुवा रखा । रामचूवा का अर्थ अगर हिंदी में देखें तो भगवान राम का वन में स्थित मंदिर है। जहां चुवा का अर्थ जंगली जानवर जंगल होता है ।
कवर्धा मुख्यालय से लगभग 10 किमी दूर सरोधा जलाशय से भोरमदेव मुख्य मार्ग पर स्थित भगवान राम और शिव को समर्पित मंदिर है रामचुवा । जहां आज भी नर्मदा कुंड, भगवान राम का मंदिर, भगवान शिव का मंदिर है साथ ही महाबली भीम और हनुमान जी की भी मूर्ति है, जिसकी पूजा की जाती है ।
कबीरधाम में आने वाले पर्यटक भी मैकल पर्वत की गोद में स्थित इस स्थान में सहसा खींचे चले आते है । साथ ही भीम के वो पैरों के निशान आज भी कुंड के पास स्थित है । मंदिर परिसर में विभिन्न समाजों के द्वारा सर्वजन की सुविधा के लिए अलग अलग भवन भी स्थित है । जहां प्रतिवर्ष मेला का आयोजन साथ ही सावन मास में विशेष पूजा अर्चना की जाती है ।
मोर मान मोर कबीरधाम के इस विशेष लेख में इतना ही। आगे कबीरधाम के बारे में UNA की खोज जारी है उम्मीद है की जानकारी आपको पसंद जरूर आई होगी । अगर अच्छी लगी तो शेयर जरूर करें ।