जिस प्रकार से उत्तर भारत में माता वैष्णो देवी को माता जी के तीन स्वरूप की पूजा करते हैं, माता महाकाली, महालक्ष्मी, एवं महा सरस्वती या माँ गायत्री के रूप में। वही माँ वैष्णोदेवी के तीनों देवी स्वरूप में कवर्धा के तीन तालाब के बीच स्थित है ,माता महाकाली का प्रसिद्ध मंदिर ,जिसमें माता महाकाली वैष्णो देवी स्वरूप में विराजमान है।
सन 1820 से 1830 के आसपास कवर्धा के राजा थे , राजा #उजियार सिंह जी ,जो एक सनातनी और धर्मपरायण राजा थे , उनके द्वारा ही कवर्धा में राधाकृष्ण मंदिर की भी स्थापना किया गया था।
1820 से 30 के बीच कवर्धा में भीषण अकाल पड़ा, पानी के लिए पूरा कवर्धा त्राहिमाम हो गया था ,तब राजा उजियार सिंह को स्वप्न में माता रानी आई और बोली कि , मैं वैष्णो देवी स्वरूप में काली मंदिर के तालाब में स्थित हूं। वहाँ उत्खन्न करवा कर मेरी विधिवत स्थापना करो, राजा उजियार सिंह जी ने विधि विधान से पूजा अर्चना कर माता महाकाली को तालाब से निकलवाकर माता रानी की विधि विधान से स्थापना की, और उसके उपरांत ही कवर्धा में भीषण बारिश हुई और कवर्धा अकाल से मुक्त हुआ, और आजतक कभी कवर्धा अकाल ग्रस्त नही हुआ ।
माता महाकाली की मूर्ति के दर्शन करते हैं तो हम पाते हैं कि,
माता के प्रथम हाथ पर त्रिशूल का निशान है ,जो कि माता महाकाली का प्रतीक है एवं द्वितीय हाथ पर माता के #पद्म,शंख धारण किए हुए हैं, जो की महालक्ष्मी माता का प्रतीक है एवं तृतीय व चतुर्थ हाथ में माता रुद्राक्ष की माला वह कमंडल धारण किए गए जो की माता गायत्री का स्वरूप को प्रदर्शित करती है।
इसलिए हम कह सकते हैं कि उत्तर भारत के जम्मू कश्मीर में माता पिण्ड के रूप में विराजित है तो छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा जिला में माता मूर्ति के रूप में विराजमान है।
कवर्धा की राजराजेश्वरी काली माता अति प्राचीन है है। वर्ष 1955-56 में तालाब की खुदाई के समय तीन मूर्तियां मिली थी। जिसमें अष्टभुजी दुर्गा, शिव पार्वती, काल भैरव-नरसिंह देव आदि हैं। साठ के दशक में मंदिर के लिए पहली समिति का गठन किया गया था। नवरात्रि में सन 1973-74 से ही मंदिर में 25-30 ज्योति कलश जगमगाने लगे थे।
पूर्व में वाममार्गी नियम से माता रानी की पूजा की जाती थी। वर्तमान में दक्षिण मार्ग से माता महाकाली की पूजा हो रही है ।
अनेक लोग दूर-दूर से माता महाकाली के दर्शन हेतु आते हैं, और अवश्य उनकी मनोकामना पूर्ण होती है ।