कबीरधाम कवर्धा के इस जमीं में कई ऐसे इतिहास दफन है कई ऐसे विरासत और स्मृतियां है जो बहुत कम लोग जानते है एक ऐसा नगर जिसके ऊपर धर्म जुड़ा हुआ है इसलिए इसे धर्म नगरी कहा जाता है । यूनाइटेड न्यूज ऑफ़ एशिया आपको अपने इस खास लेखन कार्यक्रम मोर मान मोर कबीरधाम के माध्यम से इन्ही इतिहास विरासत और स्मृतियों को खोज कर आपके सामने लाने का अथक प्रयास कर रहा है ताकि आप अपने कबीरधाम से भली भाती परिचित हो । यूनाइटेड न्यूज ऑफ़ एशिया आपसे आग्रह करता है के जब भी समय मिले आप इस बातों को अपने परिवार अपने बच्चों और अपने परिचित के बीच जरूर साझा करें ।
आज नगर में स्थित प्राचीन बूढ़ा महादेव मंदिर के बारें में हम आपको बताने जा रहे है देश का एक मात्र शिवलिंग जो 5 मुख मुख्य रूप से और साथ ही कुल 25 मुख वाला एक मात्र शिवलिंग है बूढ़ा महादेव (मृत्युंजय शिवलिंग) के रूप में स्थापित है। यह कचहरी पारा में शंकरी(सकरी) नदी के तट पर कवर्धा में स्थापित है ।
5 मुख वाला अद्भुत ,स्वयंभू , रहस्यमयी शिवलिंग पंचमुखी बूढ़ा महादेव मंदिर…
इस अद्भुत शिवलिंग के बारे में कवर्धा की राजमाता रानी शशिप्रभा देवी कहती हैं, जब वह 60 दशक पूर्व विवाह के उपरांत कवर्धा आई तब उन्होंने इसका इतिहास खोजना आरम्भ किया, पूरे भारत मे ऐसे अद्धभुत शिवलिंग का प्रमाण उनको कहि नही मिला, उन्होंने खरियार (उड़ीसा) के राजा से जो पुरात्ववेदा, मन्दिर रहस्य के जानकर थे उनसे भी जानकारी चाही, वो खुद आश्चर्यचकित हो गए, और ऐसा अद्धभुत शिवलिंग कहि नही देखने की बात कही….ये महाशिव लिंग सांख्य दर्शन का अद्भुत उदाहरण है, प्रकृति 5 तत्व से मिल कर बना है, 1.पृथ्वी,2.पानी,3.अग्नि,4 आकाश, 5 वायु से इन 5 तत्व के प्रत्येक के 4 अंग है कुल तत्व को संख्या 25 हो जाती है, इस तरह ये महाशिव लिंग इन 25 तत्व को अपने अंदर समाहित किया है। ऐसे महाशिवलिंग को मृत्युंजय भी कहते है।
मृत्युंजय शिवलिंग की पूजा हजारो वर्ष से की जाती है, जिससे आकाल मृत्यु, प्राकृतिक आपदा, माहमारी से मुक्ति मिलती है।
वृद्धजनों की माने तो जब भी कवर्धा में वर्षा नही होती थी , बूढ़ामहादेव की विशेष पूजा अर्चना कर शिवलिंग को जल मग्न कर दिया जाता था औऱ प्रमाणिकता से वर्षा होती थी ।
कवर्धा को बसाने वाले राजा महाबली सिंह जी का प्रचीन दिवान महल भी मन्दिर के पास ही स्थित है । कवर्धा नगर को बसाने का श्रेय राजा महाबली सिंह को ही दिया जाता है । कहते है की जब राजा महाबली सिंह अपना दीवान महल बनवा रहे थे तब जमीन में खुदाई करते समय कुदाल जब जमीन पर मारा गया तो बहुत जोर से आवाज आई । कुदाल में खून लगा हुआ था। जब थोड़ी मिट्टी को हटाने के बाद देखा की एक पत्थर पर से खून निकल रहा है तब राजा ने उस जगह को पूरा साफ कराया और आराम से आस पास की मिट्टी हटवाई उन्होंने देखा के एक पत्थर पर कुछ रुद्राक्ष जैसे आकृति बने हुए है ।
चुकी इस शिवलिंग की प्राकृतिक बनवाट ही अपने आप में अलग है इसलिए वे समझ नही पाए । वे इस बात को लेकर काफी चिंतित थे । इस पर धर्मपरायण राजा महाबली सिंह ने प्रार्थना पूर्वक उक्त स्थल में चबूतरे जैसे मिट्टी का आकृति बनवा कर उसी अवस्था में छोड़ दिया और कहा के आप जो कोई भी दैवीय शक्ति है अगर आप में सच्चाई है तो मेरे महल के बनने से पहले आप ऊपर आ जाए । राजा महाबली सिंह ने वहा थोड़ी जगह छोड़ते हुए (लगभग 30 फीट) अपना दीवान महल बनवाना प्रारंभ किया । महल बनने से पहले ही वहा पर शिवलिंग उपर आ गया । जिसके बाद उन्होंने वहा पर एक छोटा मंदिर बनवा कर पूजा अर्चना की । धीरे धीरे लोगो में शिवलिंग के प्रति आस्था बढ़ने लगी । आज भी आप मंदिर और राजा महाबली सिंह के दीवान महल के बीच के दूरी को देख सकते हैं।
और आज जो आप वर्तमान स्वरूप में मंदिर को देख रहे है यह श्रद्धालुओं के आस्था के कारण है । अपितु पहले के अपेक्षा मंदिर में स्थित शिवलिंग में घर्षण और क्षरण के कारण थोड़ी अष्पष्ट दिखाई देने लगा है इसी को ध्यान में रखते हुए शिव लिंग के उपर तांबे की परत लगाई गई है । जिससे शिवलिंग को बचाया जा सके । परंतु आप मंदिर में आरती के समय तांबे के कवच को हटाया जाता है उस समय में आप दर्शन लाभ ले सकते है ।
स्व. श्री पण्डित अर्जुन प्रसाद तिवारी जी मंदिर के मुख्य पुजारी रहे है उन्होंने अपना पूरा जीवन मंदिर के सेवा में समर्पित कर दिया। आज सावन मास में हजारों की संख्या में कबीरधाम से लोग अमरकंटक से बोल बम की पैदल यात्रा करके यहा आकर जलाभिषेक करते है उन्होंने ही सबसे पहले शुरुवात की थी । संकरी नदी के उद्गम की खोज करने का श्रेय भी उनको ही है । साथ ही वर्ष 1994 से आज पर्यंत तक अनवरत श्री सीताराम नाम का संकीर्तन हो रहा है को भी शुरू किया था । जिसमे नगर के कई बड़े हस्तियों के साथ साथ प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह भी (बनने के पूर्व से) जब भी समय मिला शामिल होते रहे है या यूं कहे की पंचमुखी बूढ़ा महादेव की अपने भक्त पर विशेष कृपा रही है ।
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