नाटक के माध्यम से जीवन में घटित घटनाएं धार्मिक पात्रों को जीवंत अभिव्यक्त करने में महारत हासिल और खुशी उमंग के उल्लास के क्षणों को नित्य गीत और संगीत के द्वारा प्रदर्शित करने में पारंगत कवर्धा पाली पारा के निवासी स्वर्गीय श्री अनिल पाली जो कि एक शिक्षक थे ।
अपने शासकीय सेवाकाल में स्कूल व महाविद्यालय के अनेक छात्र छात्राओं को नाटक नृत्य गीत और संगीत से जोड़ने का काम शिक्षक अनिल पाली ने किया या यूं कहें कि श्री पाली एक तरह से स्वयं अपने आप में नाट्यशाला थे।
जिसमें न जाने कितने लोगों ने शिक्षा ग्रहण कर कला के जगत में अपनी पहचान बनाई । शिक्षक जगत में क्या शिक्षक और क्या छात्र-छात्राएं इन सबके बीच श्री पाली की अपनी एक विशेष पहचान थी। उनके इन्हीं गुणों ने उसे कवर्धा की तंग गलियों से निकालकर दिल्ली भोपाल के मंचो तक पहुंचाया। हजारों लोगों को कला के क्षेत्र से जोड़ने वाले अनिल पाली का जन्म आजादी के वर्ष 5 फरवरी 1947 को हुआ।
कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं पिता स्वर्गीय श्री रूप सिंह ने कभी भी अपने बेटे अनिल की रुचि में दिक्कतें पेश नहीं कि परिणाम स्वरुप समय की नदी आपको बहाकर सीधे पीडी आशीर्वादम तक ले गई ।
जिसे आगे चलकर आपने अपना गुरु माना श्री आशीर्वादम से संगीत की बारीकियों के साथ ही साथ नाटकों की भाव भंगिमाओं को सीखा। श्री आशीर्वादम से मिलने के बाद 1974 से श्रीपाली स्वयं अनेक नाटकों और नृत्यों का निर्देशन करने लगे । उस समय होता था कवर्धा के स्कूल और कॉलेजों में वार्षिकोत्सव तथा यदा-कदा आयोजित होने वाले विभिन्न सांस्कृतिक मंच में भी आप आमंत्रित किए जाने लगे।
उन दिनों जब टेलीविजन का जमाना नहीं था तब कलाकारों की हार्दिक इच्छा होती थी कि वह कैसे भी हो आकाशवाणी से अपनी प्रस्तुति दें। तब आकाशवाणी रायपुर जबलपुर इंदौर भोपाल जगदलपुर का जमाना था । ऐसे में इन केंद्रों से श्री पाली के स्वरचित गीत प्रस्तुत किए जाते थे। श्री पाली के गीतों में छत्तीसगढ़ की माटी की सोंधी सोंधी खुशबू की महक आती है तो नाटकों में मातृभूमि की प्रेम झलकता है। कला के क्षेत्र और भोरमदेव महोत्सव के प्रथम आयोजन में विशिष्ट योगदान के लिए तत्कालीन कलेक्टर श्री जैन ने श्री पाली को मंच में सम्मानित करते हुए उनकी भरी पूरी प्रसंशा की थी।
प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में स्कूलों के भूमिका पर 1990 में सांस्कृतिक स्रोत केंद्र नई दिल्ली की निर्देशिका प्रेमलता पूरी और शिक्षा तथा समाज कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया। लोक संस्कृति के संरक्षण में आप के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता । श्रीपाली कवर्धा के अनमोल रत्न है यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। युनाइटेड न्यूज ऑफ़ एशिया आपके कला के क्षेत्र में योगदान के लिए आपको नमन करता है साथ ही श्रद्धांजलि अर्पित करता है ।