जबलपुर: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पूरे समय तनाव में ड्यूटी करने वाले पुलिस बल के पक्ष में बड़ी अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने एक मामले में राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए कहा कि ड्यूटी के दौरान पुलिस की पूछताछ में हस्तक्षेप से पूर्ण बल का मनोबल मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि अधीनस्थ से दिन के 24 घंटे की कर्तव्य निर्जीव बनी रहती है, ऐसे में उनकी छोटी गलती को अनदेखा कर देना चाहिए। चीफ जस्टिस रवि मलिमठ, न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने अपनी इस टिप्पणी के साथ पीठ के उस आदेश को सही ठहराने के तहत तीन नई अटैचमेंट को खारिज कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने सरकार की अपील पर हस्तक्षेप से इनकार करते हुए उसे खारिज कर दिया।
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 के दौरान जब प्रतिबंधात्मक आदेश लागू किया गया था, तब रात 12 बजे सड़क पर आवारागर्दी करते हुए घूमना पूरी तरह से अनावश्यक था। ऐसे में यदि पुलिस कर्मी सख्ती से पूछताछ करते हैं तो किसी के खिलाफ दर्ज करना जहां तक उचित है। ऐसे विशिष्ट से न केवल संपूर्ण पुलिस बल का मनोबल नीचे वरण उनकी कार्य प्रणाली भी प्रभावित होती है।
यहां बताएं कि रायसेन में कोरोना लॉकडाउन के दौरान सब इंस्पेक्टर केशव शर्मा, हेड कॉन्स्टेबल सुरेश शर्मा और कॉन्स्टेबल कुद्दूश अंसारी रात में ड्यूटी पर थे.रात 12:00 बजे सुरेंद्र तिवारी रोड पर घूम रहे थे. में बहस हो गई और सुरेंद्र को हथकड़ी पहनावा लाया गया। सुरेंद्र ने तीन पुलिस वालों के खिलाफ अभद्रता और नियम के खिलाफ अरेस्ट करने की शिकायत कर दी।
एमपी सरकार की अपील खारिज
पुलिस ने प्रारंभिक जांच की और तीनों को बर्खास्त कर दिया. बर्खास्तगी संबंधी कर दिया गया था।
एकलपीठ के फैसले के खिलाफ सरकार ने अपील पेश की.सरकार की ओर से याचिका दायर की कि शिकायतकर्ता ने शिकायतकर्ता और गवाहों (पुलिसदाताओं) को मामला वापस लेने के लिए धमकाया था, इसलिए नियमित जांच की जरूरत नहीं थी.युगलपीठ ने सरकार की अपील मना कर दिया।
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