
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर। जून 2025 भक्त और भगवान के सीधे सवाद का दूसरा नाम है रथयात्रा। यह ऐतिहासिक व पारंपरिक पर्व है. जो सीधे भक्त को भगवान से जोड़ता है. जो न केवल छत्तीसगढ़ एवं ओडीशा राज्य की भावनाओं को आपस में जोडती है अपितु इन दोनों राज्यों के बीच आपसी भाईचारा एवं प्रेम बन्धुत्व की भावनाओं को आज के इस आधुनिक युग में भी जीवन्त बनाए हुए है. जो हमारी धार्मिक आस्था एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। इस वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि अर्थात 27 जून. शुक्रवार को रथ यात्रा पर्व अत्यंत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा।
उक्ताशय की जानकारी पत्रकारों को देते हुए श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा ने स्थयात्रा के बारे में विस्तार से बताया कि समूचे ब्रह्माण्ड में एकनात्र श्री जगन्नाथ महाप्रभु ही ऐसे भगवन् हैं, जो वर्ष में एक बार बाहर आकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं, और प्रसाद के रूप में अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। केवल पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ जी, बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी के लिए तीन अलग अलग स्थ बनाए जाते हैं. उसके बाद यह गौरव छत्तीसग सुम्की संस्कारधानी रायपुर को प्राप्त है।
छत्तीसगढ़ में आज भी ऐसे लाखों लोग हैं. जो किसी कारणवश पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मन्दिर के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे भक्तजनों के लिए रथयात्रा एक ऐसा स्वर्णिम अवसर रहता है जब भक्त और भगवान के बीच की दूरियां कम हो जाती है। वैसे तो भगवान जगन्नाथ महाप्रभु जी की लीला अपरम्पार है. तथापि रथयात्रा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक विधियों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होने बताया कि वैसे इस यात्रा का शुभारम्भ ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान पूर्णिमा से हो जाता है. जिसमें भगवान जगन्नाथ श्री मन्दिर से बाहर निकलकर भक्ति रस में डूबकर अत्यधिक स्नान कर लेते हैं, और जिसकी वजह से वे बीमार हो जाते हैं।
पन्द्रह दिनों तक जगन्नाथ मन्दिर में प्रभु की पूजा अर्चना के स्थान पर दुर्लभजड़ी बूटियों से बना हुआ काढ़ा तीसरे, पांचवे, सातवें और दसवें दिन पिलाया जाता है। भगवान श्री जगन्नाथ को बीमार अवस्था में दर्शन करने पर भक्तजनों को अतिपुण्य का लाभप्राप्त होता है। स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होने के पश्चात् भगवान श्री जगन्नाथ जी अपने बडे भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा जी के साथ तीन अलग अलग रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर अर्थात् गुण्डिचा मन्दिर जाते है, प्रभु की इस यात्रा को रथ यात्रा कहा जाता है। श्री जगन्नाथ जी के रथ को नन्दी घोष कहते हैं एवं बलराम दाऊ जी के रथ को तालध्वज कहते
दोनों भाइयों के मध्य भत्तों का आकर्षण केन्द्र बिन्दु रहता है. बहन सुभद्रा जी देवदलन स्थ पर सवार होकर गुण्डिचा मन्दिर जाती है। उक्त अवसर पर भगवान श्री जगन्नाथ महाप्रभु जी का नेत्र उत्सव हर वर्ष मनाया जाता है। स्थयात्रा के दिन श्री जगन्नाथ मन्दिर गायत्री नगर में 11 पन्छितों द्वारा जगन्नाथ जी का विशेष अभिषेक, पूजा एवं हवन करते हुए रक्त चन्दन् केसर गोचरण, कस्तूरी एवं कपूर स्नान के पश्चात् भगवान को गजामूंग का भोग लगाया जाता है।
श्री जगन्नाथ जी बारह महीने में तेरह यात्रा करते है. केवल चार यात्राएं क्रमशः स्नान पूणिमा नेत्रोत्सव या चन्दन यात्रा, रथयात्रा तथा बाहुड़ा यात्रा में श्री मन्दिर से बाहर निकलकर भक्तो के साथ यात्रा करते हैं।
इस वर्ष गायत्री नगर स्थित श्री जगन्नाथ मन्दिर में रथयात्रा के सुअवसर पर महामहिम राज्यपाल रेमेन डेका जी, मान० गुख्यमंत्री छत्तीसगढ़, विष्णुदेव साय जी. मान० विधान सभा अध्यक्ष डॉ० रमन सिंह जी, मान, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा जी एवं अरुण साव जी मान. सांसद, समस्त माननीय मंत्रीगण, मान, विधायकगण, पूर्व मंत्रीगण, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, नगर निगम महापौर, सभापति, पार्षदगण, मान, अध्यक्ष निगम, मंडल, बोर्ड एवं आयोग के सदस्य, समाजसेवी प्रमुख, भारतीय जनता पार्टी के समस्त पदाधिकारी, कार्यकर्ता सहित प्रशासनिक अधिकारी एवं कर्मचारियों को निमंत्रित किया गया है।
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार इस वर्ष आमंत्रित अतिथिगण हवनकुण्ड में पूर्णाहुति के पश्चात् छेरा पहरा (रथ के आगे सोने की झाडू से बुहारना) के पश्चात् विशेष पूजा अर्चना महाप्रसाद वितरण, स्थ खींच के भगवान के रथ को रवाना करने की रस्म अदा करेंगे। स्थयात्रा गायत्री नगर स्थित श्री जगन्नाथ मन्दिर से प्रारम्भ होकर गुन्डिचा मन्दिर में समाप्त होगी। भक्तजनों की बढ़ती हुई संख्या को ध्यान में रखकर श्री जगन्नाथ मन्दिर सेवा समिति ने बड़े पैमाने पर प्रसाद वितरण की व्यवस्था की है।
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