
UNITED NEWS OF ASIA. बदरीनाथ धाम, चमोली (उत्तराखंड) ।वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन पर्व पर आज प्रातः 6 बजे सनातन आस्था के केन्द्र और भू-वैकुण्ठ माने जाने वाले श्री बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धा और विधि-विधान के साथ खोल दिए गए। मंदिर प्रांगण में वैदिक मंत्रोच्चार और उत्सवी वातावरण के बीच भगवान बदरीविशाल के दर्शनों हेतु द्वार आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए।
कपाट उद्घाटन से पूर्व मंदिर के धर्माधिकारी पं. राधाकृष्ण थपलियाल जी द्वारा पारंपरिक पंचांग पूजन सम्पन्न कराया गया। जैसे ही कपाट खुले, “जय बदरीविशाल” के उद्घोष से सम्पूर्ण धाम गुंजायमान हो उठा।
शंकराचार्य ने दिया आध्यात्मिक अनुशासन का संदेश
इस पावन अवसर पर उत्तराम्नाय ज्योतिर्मठ के 55वें शंकराचार्य
जगद्गुरु श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज की गरिमामयी उपस्थिति ने श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक भाव से सराबोर कर दिया। उन्होंने सनातन धर्मियों को संदेश देते हुए कहा:
“बदरीनाथ केवल एक तीर्थ नहीं, यह आत्मा के जागरण का स्थल है। यहां आने वाले श्रद्धालु केवल दर्शन न करें, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव को ग्रहण करें। मौन, संयम और साधना के साथ भगवान के नाम का संकीर्तन करते हुए यात्रा करें। यही मार्ग जीवन की वास्तविक शांति का है।”
उन्होंने यह भी कहा कि आध्यात्मिक आनंद लौकिक सुख से भिन्न होता है — यह स्थायी होता है, जीवन को दिशा देता है और ईश्वर की अनुभूति से जुड़ा होता है।
मुख्य पुजारी करेंगे अगले छह महीनों तक सेवा
इस वर्ष मुख्य पुजारी श्री अमरनाथ नम्बूदरी जी अगले छह महीनों तक भगवान बदरीविशाल की नित्य सेवा और पूजन-अर्चन करेंगे। इस अवसर पर निवर्तमान रावल श्री ईश्वरप्रसाद नम्बूदरी जी सहित ज्योतिर्मठ, मंदिर समिति और प्रशासन से जुड़े अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।
उपस्थित प्रमुख अतिथिगण
मंदिर परिसर में उपस्थित प्रमुख अतिथियों में
शंकराचार्य शिष्यमंडल के विद्वतजनों के साथ-साथ
जिलाधिकारी संदीप तिवारी,
मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी विजय थपलियाल,
ज्योतिर्मठ के CEO चन्द्रप्रकाश उपाध्याय,
पंकज मोदी, अनिल भारद्वाज, भास्कर डिमरी,
वाणीविलास डिमरी, भवानन्द ब्रह्मचारी,
तथा अनेक अन्य श्रद्धालु, वेदपाठी और सेवक सम्मिलित रहे।
तीर्थयात्रियों के लिए सन्देश
धाम में आने वाले श्रद्धालुओं को यात्रा संयम, प्रकृति की रक्षा और परस्पर सहयोग के साथ करने का अनुरोध किया गया है। शंकराचार्य जी ने कहा,
“धाम में दर्शन मात्र से नहीं, बल्कि संकल्प और साधना से आत्मिक उन्नति होती है। बदरीनाथ की यात्रा जीवन को एक नई दिशा देती है — इस अनुभूति को कोई शब्दों में बाँध नहीं सकता।”
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