
दिल्ली के अरविंद केजरीवाल से लेकर नोएडा के प्रतिपक्ष के चंद्रशेख राव तक कई राज्यों के सीएम अन्य पार्टियों के नेता मिल रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की दिल्ली में आया था। हालांकि, यह फेहरिस्ट यही खत्म नहीं होता। बिहार की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं।
अब सवाल है कि क्या गैर-भाजपा अल्पसंख्यक राज्यों के क्षेत्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ कहानी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। एक और सवाल है कि अगर ऐसा हो जाता है, तो ये दल कितने सफल होंगे। विस्तार से समझते हैं।
कहा जा रहा है कि दिल्ली में हुए सोरेन-केजरीवाल की मुलाकात का मकसद विरोधियों के बीच बेहतर तालमेल बनाने पर बात करने का था। इसे 2024 विधानसभा चुनाव की तैयारियों से भी जोड़कर देखा गया है। खास बात यह है कि पिछले कुछ समय में गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की बैठकें हुई हैं।
ऐसे मिलते हैं
जनवरी में आधिकारिक तौर पर खम्मम में महारैली का आयोजन किया गया था। यहां मुख्यमंत्रियों में दिल्ली के अलावा पंजाब (सीएम भगवंत मान) और कैरेला (पिनराई विजयन) पहुंचे थे। साथ ही समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी शामिल हुए थे।
इससे पहले सिकुड़ा कुमार, राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव, केजरीवाल, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन से संपर्क साध चुके हैं। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि केसी इन मुलाकातों के जरिए दिल्ली की ओर देख रहे हैं। हाल ही में उन्होंने अपनी पार्टी लेखांकन राष्ट्र समिति का नाम भिन्न भारत समिति बनाया।
नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस से निकलने के बाद निवर्तमान कुमार भी इस तरह की कोशिश करते नजर आए। वे दिल्ली पहुंचकर कांग्रेस नेताओं से मिलने की थी। इसके अलावा वह शाहरुख और स्टालिन से भी मिल चुके हैं। अब कहा जा रहा है कि इन नेताओं की नजर राष्ट्रीय राजनीति पर है, लेकिन रणनीति 2024 चुनाव को क्षेत्रीय धारण की नजर आ रही है।
यह क्या काम करेगा?
सोरेन भी समान विचारधारा वाले समकक्षों के साथ आने के लिए प्रदेश स्तर पर यात्रा निकाल रहे हैं। हालांकि, बीजेपी का मानना है कि 2024 के जेनेटिक्स पर कोई गैर नहीं होगा। हालांकि, राजनीतिक सूचनाएं भी इस रणनीति पर गुप्त रूप से नजर रखे हुए हैं, जहां राष्ट्रीय दल शांत क्षेत्रीय दिग्गजों को आगे कर रहे हैं।
सूचनाएं कहती हैं कि बंगाल, तमिलनाडु या जॉब हो, प्रदेश के चुनाव में मोदी बड़ा फैक्टर नहीं है। उनका कहना है कि कार्यक्षेत्रों में कार्यक्षेत्र बड़ी भूमिकाएँ हैं।
बीजेपी की तैयारी
राजनीतिक सूचनाएं बता रही हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताकतों को इन कदमों को भांप लेना है। 16 मिनट में दिए भाषण में उन्होंने सबसे पहले यही कहा कि भ्रष्टाचार के मामले और प्रवर्तन निदेशालय की जांच के कारण फैसले के साथ आएंगे। उन्होंने बताया कि एक ओर जहां वह पहले इन नेताओं के साथ आने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, इन गठबंधन की बातें पहले ही भांप ले रहे हैं। कहा जा रहा है कि पहले ही इस तरह की धारणा तैयार की जा चुकी है कि निर्णय के आने की वजह से रिश्वत है।



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