कबीरधामछत्तीसगढ़

लोहारा खारा के जंगल और नरभक्षी रेंजर: कब तक दबेगी एक दलित युवती की चीख?

UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा। कबीरधाम जिले के लोहारा परिक्षेत्र में एक वन रेंजर ने न सिर्फ जंगल का राजा बनने की कोशिश की, बल्कि इंसानियत की हर सीमा को लांघते हुए अब “नरभक्षी रेंजर” की पहचान बना ली है।

आरोप है कि वन परिक्षेत्र अधिकारी अनुराग वर्मा ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए एक गरीब दलित युवती, जो दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में कार्यरत थी, पर मानसिक और शारीरिक शोषण का ऐसा खेल रचा, जिसकी कल्पना मात्र से रूह कांप उठे।

“सईयां भये कोतवाल, तो डर काहे का” – ये है जंगल के नए राजा की सोच

रेंजर अनुराग वर्मा की कथित दबंगई इस हद तक पहुँच चुकी है कि नियम-कानून और विभागीय अनुशासन इनके लिए कोई मायने नहीं रखते। आरोप है कि इनके साथ जिले और संभाग के उच्चाधिकारी तक इस ‘कमाई के खेल’ में हिस्सेदार हैं। ऐसे में शिकायतें सिर्फ रजिस्टरों में बंद होकर रह जाती हैं।

दलित युवती का दर्द: नौकरी बचाने की कीमत बनी अस्मिता

दैनिक वेतन पर कार्यरत एक युवती, जो अपनी बीमार मां का सहारा बनने के लिए लोहारा रेंज में कार्यरत थी, आज अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ दर-दर की ठोकरें खा रही है।
सरकार बदलते ही रेंजर की नीयत भी बदल गई। पीड़िता के मुताबिक, अनुराग वर्मा ने पहले मानसिक दबाव बनाया, फिर छेड़छाड़ की कोशिश की, और जब युवती ने विरोध किया तो झूठे आरोप लगाकर थाने में फंसाने की साजिश रच डाली।

छेड़छाड़, झूठा केस और वेतन रोक: चारों तरफ से घेरा गया इंसाफ

पीड़िता का आरोप है कि:

उसे बार-बार अकेले ऑफिस बुलाया गया।

कार्यस्थल पर अश्लील हरकतें की गईं।

फाइल चोरी का झूठा इल्ज़ाम लगाकर उसे थाने में घसीटा गया।

एक साल से ज्यादा का वेतन रोक दिया गया।

अंत में नौकरी से ही बाहर कर दिया गया।

शिकायतों की गूंज, मगर न्याय का सन्नाटा

पीड़िता ने वन विभाग के आला अधिकारियों से लेकर क्षेत्रीय विधायक और मंत्री तक सभी से गुहार लगाई, परंतु हर जगह या तो ‘सबूत’ की मांग की गई या शिकायत को ‘अस्वीकार’ कर दिया गया। आखिर अकेली युवती ऑफिस में हो रही छेड़छाड़ का सबूत कैसे लाए? और जो गवाह बन सकते थे, वो ‘जंगल के राजा’ के सामने खामोश क्यों हैं – यह सोचने वाली बात है।

नरभक्षी रेंजर या सत्ता का संरक्षण प्राप्त शिकारी?
अब सवाल यह है –

क्या गरीब, दलित और अकेली महिला कर्मचारियों की कोई सुरक्षा नहीं?
क्या हर पीड़िता से पहले सबूत और फिर न्याय की उम्मीद की जाएगी?
या फिर जंगल का यह राजा अपनी ताकत और ‘फेंके गए टुकड़ों’ से हमेशा शासन करता रहेगा?

अब भी समय है…

यदि अब भी प्रशासन और समाज नहीं जागा, तो यह मामला सिर्फ एक महिला का नहीं रहेगा, बल्कि पूरे सिस्टम पर एक काला धब्बा बन जाएगा।
यह खबर सिर्फ दर्द नहीं, एक सवाल है – क्या इंसाफ सिर्फ ताकतवरों के लिए बना है?

 


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