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जानिए कैसे समलैंगिक संबंधों को अभी भी सामाजिक वर्जनाओं और मानसिक बीमारी का सामना करना पड़ रहा है। -जाने कैसे समलैंगिक जोड़ों को अब भी सामाजिक टैबू और मानसिक स्वास्थ्य का सामना करना पड़ रहा है।

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सर्वोच्च न्यायालय में आज जब समलैंगिक विवाह (समान लिंग विवाह) पर सुनवाई हो रही थी, ठीक उसी समय ट्विटर पर एलजीबीटीक्यू+ समुदाय (एलजीबीटीक्यूएआई+ समुदाय) और उनके समर्थन करने वाले लोग #अबकीबार प्यार (#Abkibaarpyaar) प्राप्त के साथ स्वीकृति की दुआ कर रहे हैं थे। हाल ही में हुए एक ऑनलाइन सर्वे में यह भी सामने आया कि सामाजिक स्वीकृति न मिलने के कारण ज्यादातर समलैंगिक जोड़ तनाव और अवसाद के शिकार बने रहते हैं। सामाजिक और आंतरिक तनाव से ये जोड आत्महत्या घातक कदम उठाने को भी मजबूर हो जाते हैं। जबकि यदि इन रिलेशन को स्वीकृत किया जाए तो मानसिक स्वास्थ्य (मानसिक स्वास्थ्य में समलैंगिक विवाह के लाभ) में सुधार हो सकता है।

दीपांशु रिसर्च साइंटिस्ट हैं और समलैंगिक विवाह का समर्थन करते हैं। पूर्वाग्रहों और समलैंगिक समुदाय के संघर्ष के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, “जब भी किसी समलैंगिक जोड़ों के बारे में बात होती है, तो लोगों के दिमाग में सिर्फ यौन नज़र आने लगती हैं।

जबकि समलैंगिक जोड़ा सिर्फ यौनिकता के स्तर पर ही नहीं, बल्कि जुड़े हुए रूप से भी एक-दूसरे से बंधा होता है। यह मूल मानव स्वभाव है कि आप जिसे प्यार करते हैं, उसके साथ रहना चाहते हैं। मेरी नजर में शादी करना किसी का भी निजी चुनाव होना चाहिए। इस पर किसी तरह की पाबंदी नहीं होनी चाहिए। अभी तक समलैंगिक समुदाय को ऐसे लोगों के तौर पर जज किया जाता है, जैसे वह कोई अपराधी नहीं है।”

पसंद अलग होना अंधेरे में भेजता है

दीपांशु आगे वर्गों पर बात करते हैं, “समाज के संबंध बंधनों से अलग होने के लिए एक तरह के अंधेरे स्थान में जाना जाता है। हालांकि मेरा स्कूल और कॉलेज बहुत अच्छा रहा है। मेरा करियर भी बहुत अच्छा रहा है। पर मैं उन लोगों को भी जानता हूं, जिन्हें अपने पार्टनर के लिए ऐसे डार्क स्पेस में छोड़ दिया गया है।

एंजाइटी किसी को भी मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित कर सकती है। चित्र : एडोबी स्टॉक

सोशल टैबू पर बात करते हुए वे कहते हैं, “हमारे समाज में सेक्स अपने आप में बहुत बड़ा ब्लॉग है। सेम सेक्स को लेकर तो लोग और भी अहसजह हो जाते हैं। जब भी कोई व्यक्ति अपने परिवार या दोस्तों के बारे में अपने यौन रुझान को लेकर आता है, तो वह असामान्य रूप से इसे अपनाने वाले होते हैं और इस तरह ट्रीट करते हैं जैसे कि उन्हें कोई बीमारी होती है। जिसे छुपाया जाना चाहिए और जल्द ही जल्द इलाज किया जाना चाहिए।”

हालात ये हो जाते हैं कि धीरे-धीरे आपका बाहर निकलना, अपनी पसंद के काम करना, प्रोफेशन में आना मुश्किल होने लगता है। इतना ज्यादा कि कभी-कभी सांस लेना भी दूभर हो जाता है। क्योंकि हर व्यक्ति आपको जज कर रहा है। इससे पहले तक सब कुछ ठीक था, पर अपने यौन अभिरुचि के बारे में बात करते ही वह व्यक्ति पूरी तरह ऑड हो जाता है। जबकि यह बहुत स्वभाविक है, बस अपनी-अपनी पसंद का मामला है। जैसे मुझे वनीला आइसक्रीम पसंद है और किसी दूसरे को चॉकलेट।”

सामाजिक दबाव बढ़ जाता है मानसिक तनाव

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में क्लिनिकल साइकोलॉजिकल डिमांड चिब्बर कहते हैं, “मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं किसी के साथ भी पेश की जा सकती हैं, चाहे वह कोई भी हो। ये आनुवंशिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों के कारण ये आय वाले हैं। कोई भी व्यक्ति जो संबंध, अपने आसपास के माहौल, परिवार या सामाजिक परिदृश्यों के कारण संबंध महसूस करता है, उसके मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित जोखिम अधिक रहता है।

वे आगे कहते हैं, “खासतौर से जब कोई व्यक्ति किसी तरह के दायरे, पूर्वाग्रह या भेदभाव का अनुभव करता है, तो यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को और अधिक प्रभावित करता है। यह आपके बारे में उनके विचार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। वे कितना सुरक्षित महसूस करते हैं, उनके रिश्ते की प्रकृति कैसी है, वे बातचीत करते हैं और शामिल होते हैं, उनके मूड और सोच पर सभी नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।

कुल मिलाकर, ऐसी परिदृश्य में लोग लो मिजाज, चिड़चिड़ेपन, चिड़चिड़ेपन, चिड़चिड़े या क्रोधित, चिंतित और अतिचिंतन से ग्रस्त हो सकते हैं। उनकी नींद और भूख की रूपरेखा भी पहचान हो सकती है। साथ ही वे ट्वीट, निराश या खुद को खराब महसूस करते हैं। हालांकि सभी में ये एक सा स्तर हो यह जरूरी नहीं है।”

इन संबंधों की स्वीकृति आपके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार

हाल ही में 6 ब्रॉन्च ने एक ऑनलाइन सर्वे किया। जिसमें LGBTQIA + विवाह समानता कानून के प्रत्याशित प्रभाव (LGBTQIA+ विवाह समानता कानून का भारतीय समाज और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रत्याशित प्रभाव) के बारे में समझने का प्रयास किया गया।

खोज में शामिल 5,825 लोगों में से 95 फीसदी ने यह माना कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 को गैर-अपराधीकरण करने के बाद समुदाय के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। इसी तरह से अगर शादी का समर्थन किया जाता है, तो उनके मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होगा। खोज के परिणाम यह संकेत करते हैं कि समलैंगिक विवाह के समर्थन मिलने के बाद कानूनी अधिकार, सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।

न्यूरोसाइंटिस्ट और शोध की सहलेखिका मेघा शारदा भी मानते हैं,”कवीर जोड़ों और उनके सभी में तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसे मामले बहुत अधिक हैं। जिसके कारण सोशल टैबू हैं। हालांकि समलैंगिक विवाह का सामाजिक स्वीकृति की स्वीकृति नहीं है। यह काफी हद तक उनसे जुड़ी सुरक्षा को बल देता है। इसके बाद शूरवीर जोड़े गरिमा के साथ अपने अभिनय के साथ रहेंगे।

पहले समझिए कि यह कोई बीमारी नहीं है

मनोचिकित्सक, मानसिक स्वास्थ्य और सामग्री क्रिएटर डॉ अग्रवाल कहते हैं, “मैंने कई पेरेंट्स को अपने किशोर और युवा बच्चों को इस उद्देश्य से इलाज के लिए देखा है, जो चाहते हैं कि किन सीमित दवाओं या थेरेपी की मदद से उनकी सामान्य ‘ सीधे’ हो जाओ। जैसे कि यह कोई बीमारी है, जिसे दवाओं और उपचार से ठीक किया जा सकता है।

लोगो को ये समझ ही है कि ये कोई बीमारी नहीं है
लोगों को यह होगा कि यह कोई बीमारी नहीं है। चित्र: अडोबी स्टॉक

वे लोग यह बताते और स्पष्ट करते हैं कि बहुत सारी ऊर्जा, समय और मनोविश्लेषण की आवश्यकता है कि यह भी सामान्य है। उन्हें भी स्वीकार करना चाहिए।”

“मुझे चोट लगती है इस समुदाय के लोगों के लिए, वे सामाजिक दायित्व और दबावों के कारण अपने अधिकारों की इतनी जटिल लड़ाई लड़ रहे हैं कि वे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी शिकार हो रहे हैं। उनमें से अवसाद, एंजाइटी डिसऑर्डर, अनिद्रा और पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसे आतंकवादी बहुत आम हैं।

हालांकि दवा और थेरेपी उनकी मदद करती हैं। जब तक उन्हें सामाजिक स्वीकृति और समर्थन नहीं मिलता, तब तक उनकी निश्चितता समाप्त नहीं होती।

समझिए कि इस तनाव को कम करने के लिए आप क्या कर सकते हैं

सबसे पहली और सबसे बड़ी जरूरत है कि उन्हें जज न करें। उनके बारे में जल्दबाजी में कोई भी राय न बनाएं। क्योंकि ज्यादातर लोग ऐसा ही करते हैं, इसलिए वे जुड़े हुए मुद्रा से बहुत बार चोटिल हो जाते हैं। उन्हें अपनी बात कहने, खुद को व्यक्त करने का स्पेस दें। उनसे उनके स्थ के बारे में बात करें और समझें कि वे उन्हें किस तरह प्रभावित कर रहे हैं।

अगर आप ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं कि आप उन्हें कैसे सपोर्ट कर सकते हैं, तो उनसे इस बारे में बात करें। अगर ऐसा लगता है कि उन्हें किसी पेशेवर हेल्प की जरूरत है, तो इसमें उनकी मदद करें।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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