इन दिनों दृष्टि दोष विशेष रूप से मायोपिया के मामले बड़े तेजी से बढ़ते हैं। कुछ महीने पहले एम्स के एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत में स्कूल जाने वाले 13% से अधिक बच्चे मायोपिक हैं। इलैक्ट्रॉनिक अनुमानों का अत्यधिक उपयोग के कारण पिछले दशक में यह संख्या जुड़ गई है। इसके लिए बन्धन से लेकर Screen Time के बहुत अधिक बढ़ने जैसे कई कारण हो सकते हैं। इनमें से एक कारण जेनेटिक भी बताया जा रहा है। विशेषज्ञ विशेषज्ञ हैं कि यदि बच्चे के मां-पिता को मायोपिया (मायोपिक माता-पिता) है, तो उन्हें बच्चों की आंखों का विशेष ख्याल रखना होगा। इसके लिए हमने बात की नई एडवांस आई केयर, मुंबई के न्यूरो-नेत्र रोग और मुख्य बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशा सुगथन से।
अंधता निवारण सप्ताह (अंधापन निवारण सप्ताह 1-7 अप्रैल)
आंखों की सुरक्षा के प्रति सचेत करने के लिए ही इन दिनों अंधता निवारण सप्ताह (अंधेपन निवारण सप्ताह) मनाया जा रहा है। 1- 7 अप्रैल तक लोगों को अंधा और उनके उपचार के बारे में पकाने के लिए सरकार एक सप्ताह तक अभियान चला रही है। यह वीक ब्लाइंडनेस प्रिवेंशन वीक के रूप में जाना जाता है।
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20 साल तक घट-बढ़ सकता है दमदार
डॉ. सुशा सुगथन बताती हैं, शुरुआती मायोपिया बहुत कम उम्र में दिखाई दे सकता है। संकेतों के दौरान यह धारणा तेजी से बढ़ रही है। उम्र के 20 वें दशक की शुरुआत में मैं एक शक्तिशाली स्थिर हो जाता है। इस दौरान आई बॉल का बढ़ना बंद हो जाता है। हालांकि मायोपिया किसी भी बच्चे को हो सकता है। लेकिन जिन माता-पिता की आंखों पर पहले से ही चश्मा चढ़ा हुआ है, उनके बच्चों की आंखों की देखभाल की जरूरत है।
मायोपिया के मरीजों के बच्चों को मायोपिया हो सकता है
जिन बच्चों के माता-पिता को मायोपिया है, उन्हें यह बच्चों में जा सकता है। ऐसे 40 जीन हैं, जो आंखों के विकास और आकार को प्रभावित करते हैं। इसके कारण लघु साइटेडनेस या निकट दृष्टिदोष (लघु दृष्टिदोष) हो सकते हैं। माता-पिता में से किसी को मायोपिया है, तो बच्चों में यह स्थिति विकसित होने की संभावना 1.5 गुना अधिक होती है। यदि माता-पिता दोनों मायोपिया हैं, तो यह जोखिम तीन गुना बढ़ जाता है।
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बच्चों को मायोपिया से बचाने के लिए माता-पिता को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए
1. रिफ्रेक्टिव एवेल्यूशन
यदि माता-पिता को मायोपिया है, तो स्कूल शुरू करने से पहले प्रत्येक बच्चे का अपवर्तक मूल्यांकन (अपवर्तक मूल्यांकन) करना चाहिए। इसमें डॉक्टर एक मास्क जैसे उपकरण (फोरोप्टर) के माध्यम से देखने के लिए कहते हैं, जिसे जैसा महसूस होता है। इसमें अलग-अलग पावर के लेंस होते हैं, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कौन सा संयोजन तेज साइट देता है।
2. आंखों का ध्यान रखें
यदि माता-पिता को मायोपिया है, तो बच्चे की आंखों का चेकअप अवश्य कराएं। यदि बच्चे की दृष्टि धुंधली हो जाती है और उसे चश्मा लग जाता है, तो माता-पिता को बच्चे को चिपका कर पूरे दिन रहना चाहिए। आंखों पर नहीं और अधिक खराब होने की संभावना बनी रहती है।
3. घटाएं स्क्रीन टाइम
जीन की मौजूदगी की वजह से बच्चे के लेंस की ताकत बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। इस पर सबसे बुरा प्रभाव स्क्रीन का है। इसलिए स्क्रीन देखने या पहुंच का उपयोग करने में लगने वाले समय को कम करना बहुत जरूरी है। इसी तरह के अध्ययन सहित अन्य सभी प्रकार के महान रोशनी में सही सिटिंग पोस्ट्चर के साथ करें। किसी भी सामान को बच्चा लगभग 35-40 सेंटीमीटर की दूरी पर देखे।
4 भौतिक क्रियाएं और योगासन करवाएं
बच्चे को चश्मों पर चढ़ाया जाता है, तो बाहरी गतिविधियों के लिए उसे उभारा जाना चाहिए। खासकर 6-11 बजे के बीच या 4-6 बजे के बीच धूप में रहना चाहिए। इससे विटामिन डी और विटामिन ए मिलता है। धूप में बैठने को कहते हैं। (ज्यादा मात्रा में मध्य गर्मियों को छोड़ें) पर्याप्त मात्रा में फल और पत्तेदार त्वचा ठीक आहार।
5 साल में एक बार आंखों की जांच बहुत जरूरी है
यदि बच्चे को मायोपिया है, तो इसके कारण लेंस पावर न बढ़ जाता है, तो समय-समय पर बाल रोग विशेषज्ञों की क्लिनिक में नियमित अपवर्तक (अपवर्तक) और अक्षीय चौड़ाई (अक्षीय लंबाई मूल्यांकन) का मूल्यांकन करते रहें। माता-पिता को बच्चों को साल में कम से कम एक बार आंखों की जांच के लिए डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
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