कई ऐसे रोग हैं, जो गर्भावस्था के दौरान बच्चे को हो सकते हैं। ऐसा ही एक रोग है, डाउन सिंड्रोम। इसके कारण बच्चे के मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। पहले पता लगाना मुश्किल था। अब स्क्रीनिंग टेस्ट और डायग्नोस्टिक टेस्ट से पता चल सकता है। डाउन सिंड्रोम क्या है और इसके लक्षण क्या हो सकते हैं, इसके बारे में सी के बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम में कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजी एंड पीडियाट्रिक डॉ. श्रेया दुबे बताती हैं (हृदय रोग डाउन सिंड्रोम में) रही हैं।
समझिए क्या है डाउन सिंड्रोम (डाउन सिंड्रोम)
डॉ. श्रेया कहती हैं, ‘डाउन सिंड्रोम क्रोमोक्रोस की गड़बड़ी से होने वाला विकार है। नवजातों में इसकी अनुमान 1:800 से 1:1000 तक है। जैसे-जैसे प्रेगनेंसी की उम्र बढ़ती जा रही है, डाउन सिंड्रोम का जोखिम बढ़ता जा रहा है।
15-29 साल की अवस्था में प्रेग्नेंसी पर यह जोखिम 1:1550 होता है, जबकि 45 साल के बाद इसका खतरा 1:50 तक बढ़ जाता है। अब विज्ञान में प्रगति के कारण गर्भ में ही इस विकार का पता लगाने वाली मुमकिन हो गई है।’
अतिरिक्त क्रोमोसोम के कारण होता है (अतिरिक्त गुणसूत्र)
क्रोमोसोम शरीर में जीन के छोटे पैकेज के समान होते हैं। वे यह तय करते हैं कि गर्भावस्था के दौरान बच्चे का शरीर कैसे बनता है और कैसे काम करता है। जन्म के बाद बच्चे का घर और उसका स्वास्थ्य कैसा होगा। आम तौर पर एक बच्चा 46 क्रोमोक्रोनेट या क्रोमोट्स के साथ पैदा होता है।
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के पास एक अतिरिक्त क्रोमोसोम होता है। क्रोमोक्रोमस 21 की एक अतिरिक्त होता है। क्रोमोक्रोसाइट का अतिरिक्त होने के कारण मेडिकल वर्ल्ड में डाउन सिंड्रोम को ट्राइसॉमी 21 भी कहा जाता है। यह अतिरिक्त प्रतिलिपि बच्चे के शरीर और मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करती है। यह बच्चे के लिए मानसिक और शरीर दोनों तरह का घटक बन जाता है।
40 प्रतिशत बच्चों का जन्म होता है हार्ट डिजीज
डॉ. श्रेया के अनुसार, डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चे के फ्लैट फेशियल प्रोफाइल के कारण अलग से अधिकार हो जाते हैं। उनकी आंख ऊपर की तरफ तिरछी होती है और कान छोटे और हाथ भ्रम होते हैं। डाउन सिंड्रोम से प्रभावित लगभग 40 प्रतिशत बच्चे जन्म में हृदय रोग होते हैं, जबकि 15 प्रतिशत में गैस्ट्रोइंस्टेट्सटिनल संबंधी जोखिम बना रहता है। उन्हें देखने और सुनने से जुड़ी बारीकियां भी हो सकती हैं।
ऐसे बच्चों के बारे में जिज्ञासा, स्कालटल समस्याओं से भी जूझते हैं। इसके अलावा, शारीरिक और बौद्धिक विकास भी मंदिर होता है। डाउन सिंड्रोम से प्रभावित भाई-बहनों में कुछ दुर्भावनाएं भी हो सकती हैं।
बच्चों का कैसे किया जा सकता है उपचार (डाउन सिंड्रोम के बारे में तथ्य)
डाउन सिंड्रोम से गंभीर बच्चे के सामाजिक, मैत्रीपूर्ण, खुशमिजाज होते हैं। उन्हें संगीत अछि छाया लगता है। इन बच्चों की जन्ममजात समस्याओं के मद्देनज़र में इन चार राइडर पर ज़ोर देना ज़रूरी है: अर्ली स्टिम्यूएशन, फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी और अन्य समस्याओं का इलाज।
1. 3 साल की उम्र तक हर साल दो बार बच्चे के विकास का मूल रूप से मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इसके बाद 10 साल तक साल में 1 बार ऐसा करना चाहिए। नियमित रूप से टीकाकरण (टीकाकरण) करें।
2.देखने-सुनने (दृष्टि और श्रवण) की क्षमता की जांच करवाना अनिवार्य है।
शारीरिक रूप
3. वजह की आशंका दूर करने के लिए साल में एक बार जांच जांच करवाएं।
4.पूरे शरीर का हिमोग्राम करवाना जरूरी है। किसी भी तरह की मैलिग्नेंसी की आशंका को दूर करने के लिए धारणायोग के अनुसार उपचार करवाएं।
5. हर साल दांतों की पूरी जांच करवाना महत्वपूर्णवपूर्ण है।
6. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के खेल-कूद में भाग लेने से पहले अटलांटिक एक्सियल सब्लिक्सेशन (अटलांटिक अक्षीय सब्लक्सेशन) की आशंका दूर हो सकती है। इसका मकसद गर्दन की लेटरल एकस-रे जांच की सलाह दी जाती है।
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