लेटेस्ट न्यूज़

लता मंगेशकर का गाना ‘मेरे ख्वाबों में जो आया’ और ‘छोड़ दें’ पर एक्सप्रेशन, ललित ने सुना या मन छू जाने वाला किस्सा

लता मंगेशकर के साथ ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘मोहब्बतें’, ‘फना’, ‘कभी खुशी कभी गम’ जैसी कई सुपर हिट फिल्मों के अमर कहलाने वाले गाने को रचने वाले जाने-माने गिग सूक्ष्म पंडित (जतिन -ललिट) लता के जिक्र पर जज्बाती हुए बिना नहीं रहते। इस खास बातचीत में वे बताते हैं कि कैसे लता जी ने अपने मुश्किल दौर में मदद की

आइकॉनिक लव सॉन्ग
फिल्म ‘डीडीएलजे’ का ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम’ के आज करीब दो दशक हो गए हैं, मगर आज भी ये गाना लोगों की जुबान पर है। फेयरेस्ट मेलोडी, किस होश से और किस खूबसूरती से, जो लता जी ने गाया है। अगर इसे ध्यान से सुनेंगे तो लता मंगेशकर जी का जो पोर्शन है, उसमें शामिल हैं अलग-अलग सुनिश्चित हैं और कुमार सानू का जो पोर्शन है, उनका अलग सुर हैं। उसका जो क्रॉस लाइन दिखाई देता है तो उसका ट्यून थोड़े अलग होते हैं। ये कॉम्पोनिशन बहुत सोच-समझ के बनाया गया था। मुझे आसानी थी कि ये बहुत ही आइकॉनिक लव सॉन्ग बनने वाला है।

‘मेरे ख्वाबों में…’ में मिली सैरी सीख

इसी फिल्म का ‘मेरे ख्वाबों में’ जो गाना था वो सबसे पहला गाना रिकॉर्ड हुआ था। मैं दो-तीन दिन से स्ट्रेस में था कि लता मंगेशकर जी को गाना है और मेरा गाना है। इस गाने के दौरान मुझे उनसे एक बहुत ही कमाल की सीख वाली चीज मिली। वो जब गा रही तो मैं उन्हें बार-बार एक जगह रोकता और कहता, एक टेक और लेता हूं दीदी।’ मुझे लगा कि वो जब गा रहे थे तो थोड़ा सा अलग गा रहे थे, तो मैं काट देता था। जब यह चिल 10-12 बार हो गया, तो वे बैठ गए और माइक पर बोलीं कि सूक्ष्म जरा यहां शिंकर्स केबिन में आ गई। तो मैं थोड़ा घबराया कि मैंने कुछ गलती की तो नहीं किया, कुछ नाराज़ तो नहीं हुए। मैं अंदर गया तो वो बैठी हुई थीं एक पेपर हाथ में ले कर। मैंने कहा, दीदी सब ठीक है ना, आपको बुरा नहीं लगा। वो बोलीं, अरे नहीं, यहां पर बैठो और मैंने अपनी बगल में बिठा दिया फिर वे बोलीं, शोक आके एक काम करो, चाय पीते हैं। फिर यहां-वहां की बातें। सुलक्षणा दीदी (अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित) जैसी हैं। काफी अलग-अलग बात करके फिर वो गाने पर वापस आए, वो पर्ची निकाल कर बोलीं कि देखो बख्शी साहब ने क्या लिखा है, ‘मेरे ख्वाबों में जो आए, आके मुझे छेड़ो, उससे कहो कभी सामने तो आए। ‘छेड़ जाओ’ पर अगर मैं जरा सा भी एक्सप्रेशन दूं, तो वो लड़की स्क्रीन पर एक्सप्रेशन देगी तो बड़ा अच्छा लगेगा, देखने में। मैंने कहा, ‘अरे बाप रे एक्सप्रेशन का तो मुझे पता ही नहीं था, मैं तो सोच ही नहीं पा रहा था। उन्होंने कितनी खूबसूरत और बातें पकड़ ली। मैं बोला, अरे दीदी ये तो आप बहुत अच्छे कर रहे हैं। मैं सोरी हूं, ये तो प्लीज आप करिए, ये तो करना ही है आपको। ये तो बहुत अच्छा लगेगा। वे बोलीं – नहीं, नहीं, तुम जो कर रहे हो वो भी बहुत अच्छा है। एक बार ऐसा गाते हैं, जैसे मैं कह रहा हूं और दूसरी बार जैसा तुम कह रहे हो, वैसा गाते हैं, तो नहीं चलेगा? उनकी इस चार्टर पर मैंने उनके पैर पकड़ने के लिए।

‘कभी खुशी कभी गम’ में सिर्फ एक गाने के लिए राजी करना मुश्किल था

कभी खुशी कभी गम का टाइटल सॉन्ग बना रहा था। उनका ब्रीफिंग बड़ा डिफिकल्ट था। शामिल होना जौहर चाह रहे थे कि ये एक भजन हो। भजन में दो बातें हो सकती हैं कि वो जो लेडी है, वो भगवान के लिए भी गा रही हैं और अपने पति के लिए भी गा रही हैं। उसी म्यूजिक में शाहरुख खान की एंट्री होती है। इनमें एनर्जी भी होनी चाहिए। हम इसके कई संस्करण बना चुके थे, मगर करने को जांच नहीं कर रहे थे। मैं करण को सुझावया कि अगर हम इस गाने को लता दीदी से जलाएंगे, तो ये आप भव्य हो जाएंगे। वो बहुत एक्साइटेड हो गए। अब समस्या ये थी कि लता जी का सिर्फ एक गाना किसी फिल्म में गाती नहीं थी। मैंने दीदी को रात को फोन किया था। मैंने कहा दीदी आपसे अनुरोध है, यदि आप दे तो बहुत ही अच्छा हो जाएं। मैंने जब अपनी बात रखी तो वे बोलीं, बोलीं, जानते ही हो कि एक गाना मैं गाती ही नहीं हूं। मैंने बोला दीदी आपको सोच कर बनाया है। मेरे बहुत अनुरोध पर उन्होंने कहा, अच्छा ठीक है, कल आ जाओ, सुनो। लता जी के पास गया और मैंने गाना सुनाया। उस वक्त वक्ता उषा (उषा मंगेशकर) जी भी बैठीं, वहां पर। वो मराठी में बोलीं, ‘छान (अच्छा) है। आखिरकार वे राजी हो गए। हालांकि मनाने में यश चोपड़ा और उनकी पत्नी पैम चोपड़ा का भी हाथ था।

उन्होंने मेरे लिए महाराष्ट्र के गृह मंत्री को फोन किया

सबकी जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं कि आप बर्दाश्त नहीं कर पाते। तो हमारी फैमिली में भी एक ऐसा हो गया। मेरी जो सिस्टर थे नाम वास्तव में, वो विजयेता (अभिनेत्री विजयेता पंडित) से बड़े थे। उनकी हत्या हो गई थी। मैं बहुत परेशान था। पुलिस स्टेशन में ढाके खा रहा था। बहुत रो रहा था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि निवेश कैसे करवाऊं? जब कुछ समझ में नहीं आ रहा था तो लता दी को फोन किया। खूब रोया फोन पर,उन्हें सारी बातें बताईं। वो समझ गए, क्योंकि वो ईव को बचपन से देखते थे। उन्होंने उस समय के महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटिल को फोन करके इन शब्दों का इस्तेमाल किया कि ये मेरे बेटे जैसा है, ये परेशान करता है। आप उनके करीबी लोगों की मदद करते हैं। बस फिर क्या था, पूरी पुलिस फोर्स कम में लग गई और हमें बहुत बड़ी मदद मिली। उन्होंने मुझे अपने बेटे की तरह प्यार दिया।

Show More

Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
Back to top button

You cannot copy content of this page