भारत भाग्य विधाता

भारत भाग्य विधाता : लालू बोले- तुमको PM बनाकर गलती कर दी : एचडी देवगौड़ा को किस्मत से मिली कुर्सी; चलती मीटिंग में सो जाते थे

1996 की बात है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज 13 दिनों में गिर चुकी थी। दिल्ली स्थित तमिलनाडु भवन में एक बैठक चल रही थी। इसमें जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, CPM के हरकिशन सिंह सुरजीत और ज्योति बसु शामिल थे।

वरिष्ठ पत्रकार सुगत श्रीनिवासराजू अपनी किताब ‘फरोस इन ए फील्ड: द अनएक्सप्लोर्ड लाइफ ऑफ एचडी देवगौड़ा’ में लिखते हैं, ‘ज्योति बसु ने एचडी देवगौड़ा को बुलाया और सीधे कहा- अब आपको आगे बढ़ना चाहिए। बसु का सीधा इशारा देवगौड़ा को PM बनाने का था। देवगौड़ा ने चौंकते हुए कहा- सर! मेरी पार्टी में और भी नेता हैं।’ बसु ने लालू से कहा, ‘लालू, आप फौरन इसकी घोषणा करिए, बाहर पत्रकार इंतजार कर रहे हैं।’

परेशान देवगौड़ा इससे बचना चाहते थे। उन्होंने बसु से कहा, ‘सर! मैं दो साल से भी कम समय से कर्नाटक का CM हूं। मेरा करियर अचानक खत्म हो जाएगा। कांग्रेस ज्यादा दिन सरकार नहीं चलाने देगी। क्या हम नहीं जानते कि कांग्रेस ने चरण सिंह, वीपी सिंह और चंद्रशेखर के साथ क्या किया। मुझे हिंदी भी नहीं आती और मैंने पूरा देश भी नहीं घूमा है। आप मुझसे बड़े हैं। मैं आपसे गुजारिश करता हूं। कृपया कर आप अपना मन बदल लीजिए।’

सुगत श्रीनिवासराजू लिखते हैं कि देवगौड़ा ने PM न बनने के लिए बसु के पैर तक छूकर मनाने की कोशिश की थी। हालांकि बसु नहीं माने। उन्होंने देवगौड़ा को समझाते हुए कहा- क्या मैं बाहर जाकर भारत के लोगों से कहूं कि हमारे पास ‘वाजपेयी’ का कोई सेक्युलर विकल्प नहीं है। आप समझिए यदि आप नहीं मानेंगे तो लोगों को दिखाने के लिए कोई चेहरा नहीं हैं। वक्त भी कम है।

1 जून 1996 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई।

“भारत भाग्य विधाता” के 11वें एपिसोड में किस्मत से प्रधानमंत्री बने एचडी देवगौड़ा के किस्से…

1996 लोकसभा चुनाव में ‘किंगमेकर’ बने क्षेत्रीय दल
1996 में हुए लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। 161 सीटें जीतकर BJP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पहली बार BJP कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीत पाई। कांग्रेस 140 सीटों पर सिमट गई।

दरअसल, चुनाव से पहले कांग्रेस में टूट हुई और कई नेताओं ने अपने क्षेत्रीय दल बना लिए। इनमें माधवराव सिंधिया की ‘मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस’, एन.डी. तिवारी की ‘ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस’ और जी.के. मूपनार की ‘तमिल मनीला कांग्रेस’ शामिल थीं। इसके चलते कांग्रेस को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा।

वहीं क्षेत्रीय दल ‘किंगमेकर’ बने। इनमें से CPM, जनता दल, समाजवादी पार्टी, द्रमुक, तेलुगू देशम पार्टी समेत 13 दलों ने चुनाव के बाद मिलकर यूनाइटेड फ्रंट यानी संयुक्त मोर्चा बनाया। इस मोर्चे को 165 सीटें मिलीं, जिनमें से जनता दल को 46 और CPM को 32 सीटें मिलीं। प्रधानमंत्री बनने के लिए नेताओं ने गणेश परिक्रमा शुरू की।

वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता मिलने से भड़का संयुक्त मोर्चा
तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सबसे बड़े दल BJP के नेता होने के नाते अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया, लेकिन ये बात वामदल और संयुक्त मोर्चे को नागवार लगी।

वरिष्ठ पत्रकार सुगत श्रीनिवासराजू लिखते हैं, ‘वाम नेता सीताराम येचुरी ने बताया कि राष्ट्रपति और संयुक्त मोर्चा के डेलीगेशन के बीच तीखी नोंकझोक हुई। मैं भी वहां मौजूद था। कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत ने कहा कि क्या हमने इसलिए आपको राष्ट्रपति बनाया है कि आप एक संघी (RSS) सरकार को सत्ता में लाएं?’

दरअसल, CPM के महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत, केआर नारायणन को उप-राष्ट्रपति बनाने की शर्त पर तत्कालीन उप-राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को राष्ट्रपति बनाने के लिए सहमत हुए थे। चूंकि कांग्रेस के पास बहुमत नहीं था तो लेफ्ट पार्टियों ने शर्मा के नाम का समर्थन किया और वो राष्ट्रपति बने। सुरजीत की राष्ट्रपति से नाराजगी की वजह यही थी।

16 मई 1996 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को PM पद की शपथ दिलाई।

16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। बहुमत से कम सीटें होने के बावजूद वाजपेयी ने फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करने की बात कही, लेकिन ऐसा न हो सका। सरकार बनने के 13वें दिन वाजपेयी ने इस्तीफा दे दिया।

PM बनाने का प्रस्ताव मिला तो घर से गायब हुए वीपी सिंह
वाजपेयी की सरकार बनने से लेकर गिरने तक संयुक्त मोर्चे में प्रधानमंत्री और सरकार बनाने के लिए रस्साकशी जारी रही। सुगत श्रीनिवास लिखते हैं, ‘संयुक्त मोर्चे की पहली पसंद वीपी सिंह थे, लेकिन बसु इससे नाखुश थे, फिर भी उन्होंने वीपी सिंह से बात करने को कहा।

1996 में एचडी देवगौड़ा पूर्व PM वीपी सिंह से मुलाकात करने उनके आवास पहुंचे।

इसके बाद देवगौड़ा, आंध्रप्रदेश के CM चंद्रबाबू नायडू, द्रमुक नेता करुणानिधि और मुरासोली मारन वीपी सिंह के आवास 1, राजाजी मार्ग पहुंचे। इन नेताओं को लॉन में बैठाया गया और चाय-कॉफी व बिस्कुट परोसे गए। वीपी आए और सभी से मिलकर वापस अंदर चले गए।

लगभग दो घंटे बाद वीपी की पत्नी सीता कुमारी सिंह आकर बोलीं, ‘उन्होंने (वीपी) कहा है कि आप लोग इंतजार न करें। PM के प्रस्ताव पर मैं राजी नहीं हूं।’ इस पर सभी वहां से रवाना हो गए। दरअसल, वीपी पिछले दरवाजे से कहीं चले गए थे।

खुद की पार्टी ने नहीं चाहा ज्योति बसु को PM बनाना
वाम नेता ज्योति बसु चाहते थे कि वो PM बनें, लेकिन उनकी पार्टी में ही इस पर सहमति नहीं थी। वरिष्ठ पत्रकार उल्लेख एनपी अपनी किताब ‘वाजपेयी’ में लिखते हैं, ‘1977 से पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमे हुए ज्योति की दोस्ती बड़े-बड़े लोगों से थी। उनके दोस्त कांग्रेस में भी थे, लेकिन उनकी ही पार्टी CPM के युवा और विचारधारा के पक्के प्रकाश करात और सीताराम येचुरी जैसे सदस्यों ने उन्हें PM बनाने के प्रस्ताव के खिलाफ बगावत कर दी और इसे सीधे तौर पर खारिज कर दिया।’

1996 में नई दिल्ली में हुई एक बैठक में लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और एचडी देवगौड़ा।

संयुक्त मोर्चे में शामिल लालू यादव और मुलायम सिंह यादव एक-दूसरे को PM नहीं बनने देना चाहते थे। जबकि आंध्रप्रदेश के CM चंद्रबाबू नायडू की उम्र कम थी। तमिलनाडु की 37 सीटों पर कब्जा करने वाले जी.के. मूपनार और एम. करुणानिधि को दिल्ली की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। दोनों तमिल नेताओं ने एक-दूसरे को सत्ता के खेल से बाहर कर दिया।

जनता दल 46 सीटें जीतकर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। इसलिए देवगौड़ा को PM के लिए बेहतर समझा गया। इसके बाद देवगौड़ा को PM बनाने की कवायद शुरू हुई।

एचडी देवगौड़ा और पूर्व PM पीवी नरसिम्हा राव।

नरसिम्हा राव से देवगौड़ा की दोस्ती काम आई और सरकार में समर्थन मिला
कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चे को सरकार से बाहर रहते हुए समर्थन देने की बात कही। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव और देवगौड़ा अच्छे दोस्त थे। दोनों ही ज्योतिष और ग्रहों की चाल के बारे में एक-दूसरे से चर्चा करते थे। इसके अलावा देवगौड़ा ने राव की अल्पमत की सरकार बचाने में मदद की थी। इस तरह संयुक्त मोर्चे और कांग्रेस के बाहरी समर्थन से देवगौड़ा को 318 सांसदों का साथ मिला।

सुगत श्रीनिवासराजू लिखते हैं, ‘बिहार भवन में बैठक शुरू हुई। इसमें ओडिशा के बीजू पटनायक, कर्नाटक के पूर्व CM रामकृष्ण हेगड़े, एचडी देवगौड़ा, लालू यादव, शरद यादव, श्रीकांत कुमार जेना समेत कई नेता मौजूद रहे। पटनायक खड़े हुए और देवगौड़ा को PM बनाने का प्रस्ताव रखा। हालांकि, पटनायक से किसी ने ऐसा करने को नहीं कहा। जैसे ही देवगौड़ा का नाम बैठक में गूंजा, वैसे ही हेगड़े नाराज होकर बाहर चले गए। श्रीकांत ने इसके सभी आधिकारिक काम पूरे किए। देवगौड़ा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चे का डेलीगेशन राष्ट्रपति भवन पहुंचा।’ हालांकि लेखक ने तारीख का जिक्र नहीं किया।

देवगौड़ा बोले- बिना परिवार के एक सूटकेस लेकर दिल्ली चलेंगे
सीएम देवगौड़ा के प्रधान सचिव एसएस मीनाक्षीसुंदरम अमेरिका से बेंगलुरु लौटे थे। उन्हें सीएम आवास ‘अनुग्रह’ से फोन आया। सुंदरम को लगा कि निर्वाचित हुए PM द्वारा राज्य के अधिकारियों के लिए विदाई रात्रिभोज का आयोजन किया गया है। जब सुंदरम अनुग्रह पहुंचे तो देवगौड़ा की पत्नी चेन्नम्मा उनका इंतजार कर रहीं थीं और किसी अन्य अधिकारी को डिनर के लिए नहीं बुलाया गया था।

सुंदरम और चेन्नम्मा के बीच पहले कभी बात नहीं हुई थी, लेकिन जब उन्होंने बात करना शुरू किया तो उनकी चिंता साफ झलक रही थी। वो इस बात से कम खुश थीं कि उनके पति देश की सरकार चलाएंगे।

चेन्नम्मा ने कहा, ‘वह (देवगौड़ा) लंबे संघर्ष के बाद कर्नाटक के CM बने थे और अच्छा काम कर रहे थे। हम यहां खुश थे, लेकिन उन्होंने ये जिम्मेदारी क्यों स्वीकार की? मैं और मेरा परिवार घबराया हुआ है। न जाने दिल्ली में हमारा क्या इंतजार कर रहा है? हम वहां किसी को नहीं जानते और न ही हमें वहां की भाषा (हिंदी) आती है। जब भी मैं किसी से दिल्ली के बारे में बात करती हूं तो मुझे वो डरा देते हैं। अब जब उन्होंने (देवगौड़ा) दिल्ली जाने का मन बना लिया है तो मैं चाहती हूं कि आप उनके साथ जाएं।’

20 मिनट की बातचीत के बाद दोनों डाइनिंग रूम गए जहां देवगौड़ा बैठे थे। देवगौड़ा ने सुंदरम से कहा, ‘सुंदरम-अवारे, कृपया आप PMO में शामिल हों। हमारा कार्यकाल लंबा नहीं होगा। अपना परिवार शिफ्ट मत करना, मैं भी नहीं कर रहा हूं। हम सिर्फ एक सूटकेस लेकर जाएंगे।’

1 जून 1996 को एचडी देवगौड़ा ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। देवगौड़ा के मंत्रिमंडल में CPM के वरिष्ठ नेता इंद्रजीत गुप्ता गृहमंत्री, पी. चिदंबरम वित्तमंत्री और मुलायम सिंह रक्षामंत्री बने। वहीं इंद्रकुमार गुजराल विदेश मंत्री, मुरासोली मारन उद्योग मंत्री और रामविलास पासवान रेल मंत्री बने।

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में लिखते हैं, ‘आंतरिक दबाव व विरोधाभासों के बावजूद देवगौड़ा ने गरीबों, किसानों, भूमिहीन मजदूरों तथा गरीब बस्तियों में रहने वालों के लिए खूब काम किया। इनके लिए विशेष योजनाएं बनवाईं और कोशिश की कि इनका लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचे। देश की इकोनॉमी में आमूलचूल परिवर्तन करने के लिए 1997-98 के बजट में बहुत से आर्थिक सुधार शुरू किए।’

6 जनवरी 2000 को एक कार्यक्रम में अटल बिहारी वाजपेयी, हरकिशन सुरजीत और एचडी देवगौड़ा आपस में बात करते हुए।

देवगौड़ा अक्सर मीटिंग्स में सो जाते थे, ऐसा ही एक किस्सा…
DLF चेयरमैन के.पी. सिंह अपनी आत्मकथा ‘वेटर द ऑड्स: द इनक्रेडिबल स्टोरी बिहाइंड डीएलएफ’ में लिखते हैं, ‘देश की लगातार बिगड़ती अर्थव्यवस्था के बारे में PM देवगौड़ा को बताने के लिए बड़े व्यापारियों का एक डेलिगेशन उनसे मिलने पहुंचा। मीटिंग शुरू हुई और प्रेजेंटेशन पेश किया गया। जब प्रेजेंटेशन पूरा हुआ तो हमें ऐसा लगा कि देवगौड़ा कुछ सुन नहीं रहे हैं। वो अचानक जगे और एकाएक बोलने लगे कि मुझे बहुत खुशी है कि देश की अर्थव्यवस्था ठीक-ठाक चल रही है।’

किंगमेकर लालू को ही देवगौड़ा ने मिलने का समय नहीं दिया
संयुक्त मोर्चा सरकार में बहुमत का गणित, किताबी गणित से कहीं ज्यादा कठिन था। हर दिन सरकार को बचाने या गिराने की कवायद जारी रहती थी। रशीद किदवई लिखते हैं, ‘PM देवगौड़ा को अपनी कुर्सी बचाने के लिए बार-बार दौड़कर बिहार भवन जाना पड़ता था। फिर बाजी पलटी और लालू चारा घोटाले में घिर गए। इस मामले में CBI ने लालू से पूछताछ की अनुमति मांगी। तब लालू को देवगौड़ा ने पांच मिनट की मुलाकात के लिए कई दिनों का इंतजार करवाया।’

वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर अपनी किताब ‘द ब्रदर्स बिहारी’ में लिखते हैं, ‘1997 में लालू से पहले राउंड की पूछताछ हुई। इस पर उन्होंने देवगौड़ा को फोन लगाया और उन पर भड़क गए। लालू ने कहा, ‘यह सब अच्छा नहीं हो रहा है, जो आप करवा रहे हैं। इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा। कॉन्स्पिरेसी करनी है तो BJP के खिलाफ करो हमारे पीछे क्यों पड़े हो?’

एचडी देवगौड़ा और लालू यादव।

देवगौड़ा ने लालू से अपनी मजबूरी बता दी। हालांकि देवगौड़ा चाहते तो उनके द्वारा नियुक्त किए गए CBI डायरेक्टर जोगिंदर सिंह के जरिए लालू की मदद कर सकते थे। एक बार तो लालू ने PM आवास में देवगौड़ा पर तंज कसा, ‘का जी इसीलिए आपको प्रधानमंत्री बनाया था? बहुत गलती किया तुमको PM बना के।’

देवगौड़ा ने भी इसी लहजे में जवाब दिया, ‘भारत सरकार और CBI कोई जनता दल थोड़े ही है कि जब चाहा जिसे चाहा भैंस की तरह हांक दिया। आप पार्टी को भैंस की तरह चलाते हैं, लेकिन मैं भारत सरकार चलाता हूं।’

घोटालों की जांच से नाराज कांग्रेस ने जल्दबाजी में सरकार से हाथ खींचा
कुलदीप नैय्यर अपनी किताब ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में लिखते हैं, ‘कांग्रेस का जल्दी ही देवगौड़ा से मोहभंग हो गया और तीसरे मोर्चे पर कोई नया नेता चुनने के लिए जोर डालने लगी।’

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपनी किताब ‘द कोएलिएशन ईयर्स’ में लिखते हैं, ‘देवगौड़ा सरकार जानबूझकर कांग्रेस पर निशाना साध रही थी। पूर्व PM नरसिम्हा राव समेत कई कांग्रेसी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप में पुलिस द्वारा मुकदमा चलाया जा रहा था। बोफोर्स कांड के बारे में फिर से चर्चा शुरू कर दी गई थी। यहां तक कि देवगौड़ा सरकार के कई मंत्री खुले तौर पर कांग्रेस के शासन की आलोचना करते थे।

22 जनवरी 1997 को तत्कालीन CBI डायरेक्टर जोगिंदर सिंह जिनेवा से अपने साथ एक बॉक्स लाए, जिसमें कथित तौर पर बोफोर्स से जुड़े दस्तावेज थे। हालांकि जांच में कभी इन ‘बोफोर्स दस्तावेजों’ का जिक्र भी नहीं हुआ।’

इन आरोपों के चलते कांग्रेस में सरकार से समर्थन वापस लेने की बात होने लगी। मार्च, 1997 में जल्दबाजी दिखाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने संयुक्त मोर्चे पर दबाव डाला कि वे अपना PM बदलें।

हालांकि उल्लेख पीएन लिखते हैं, ‘चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के चलते राव को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और उनकी जगह सीताराम केसरी ने ली। केसरी और देवगौड़ा के बीच छत्तीस का आंकड़ा था। 1997 में केसरी ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रोमेश भंडारी को हटाने की मांग की, लेकिन देवगौड़ा ने इसे खारिज कर दिया।’

रशीद किदवई लिखते हैं, ‘कांग्रेस अध्यक्ष केसरी कई मामलों में सरकार को दबाना चाहते थे और अक्सर ही प्रधानमंत्री से खुन्नस खाए रहते थे। उन्हें तो मंत्रियों की गाड़ियों के हूटर सायरन तक से दिक्कत थी। बताते हैं, केसरी कहा करते थे कि इन मंत्रियों ने अपने ड्राइवरों को हिदायत दे रखी है कि दिल्ली के 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय के सामने से गुजरते समय अपनी गाड़ियों में लगे हूटर सायरन खूब तेज बजाया करें, जिससे विपत्तियों में फंसे ‘चचा केसरी’ को और परेशानी हो।’

सरकार जाने पर देवगौड़ा बोले- कांग्रेस को कोई नहीं पूछ रहा
11 अप्रैल 1997 को संसद में देवगौड़ा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। कांग्रेस के हाथ खींचने से सरकार अल्पमत में आ गई। अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 292 और खिलाफ 158 वोट पड़े। जबकि 6 सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।

11 अप्रैल 1997 को इस्तीफा देने के बाद संसद के बाहर निकल देवगौड़ा ने हाथ हिलाकर अभिवादन किया।

इस मौके पर देवगौड़ा बोले, ‘यह मेरी नियति है। मैं मिट्टी से उठकर फिर यहां विराजमान होने वाला हूं। मुझे तुम्हारे अध्यक्ष (केसरी) के प्रमाण-पत्र की जरूरत नहीं है। अपनी राजनीतिक यात्रा में मैं 10 चुनावों का हिस्सा रहा हूं। केसरी ने अब तक कितने चुनाव लड़े हैं? यहां जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे की बातें बहुत स्पष्ट हैं… कांग्रेस और उसके अध्यक्ष की आज कोई कद्र नहीं है, उन्हें कोई पूछ नहीं रहा। इसलिए यह बुजुर्ग व्यक्ति जल्दी में है कि किसी तरह मुझे यहां से रवाना किया जाए।’

11 अप्रैल 1997 को एचडी देवगौड़ा ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। देवगौड़ा केवल 10 महीनों तक ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज रह पाए। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर लिखते हैं, ‘देवगौड़ा एक प्रधानमंत्री के रूप में किसी त्रासदी से कम नहीं थे। उन्होंने भारत के किसानों के लिए चमत्कार दिखाने के दावे किए थे, लेकिन वे संदिग्ध सौदों में फंसकर रह गए।’

 


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