एस.एस. किंगमौली की बैलॉक बस्टर फिल्म ‘आर आर आर’ के गीत ‘नाटू-नाटू’ को गोल्डेन ग्लॉब अवार्ड मिला है। इस दौरान किंगमौली का एक बयान सामने आया है, जिसमें वो कह रहे हैं ‘आरआरआर’ कोई बॉलीवुड फिल्म नहीं है, बल्कि एक योजना फिल्म है, जो भारत के दक्षिण से आती है। मैं फिल्मों में ब्याह गाने नहीं लगाता, मैं स्टोरी को आगे बढ़ाने के लिए बोलने का यूज करता हूं।’ देश राजामौली और उनकी टीम के लिए शुक्रगुजार और इच्छुक हैं कि उन्नीस देश को सीना फुलाने का अवसर दिया। यह वास्तविक देश के लिए गर्व की बात है। प्रधानमंत्री सहित पूरा देश इस पर गर्व कर रहा है, करना भी चाहिए। किंगमौली की फिल्म के गानों ने देश को ‘पहला गोल्डन ग्लोब अवार्ड’ दिया है।
लेकिन थोड़ा रुके, क्या यह देश का पहला गोल्डन ग्लोब पुरस्कार है? जवाब है – हां, और नहीं भी! बेशक ये ‘सर्वश्रेष्ठ मूल गीत-मोशन पिक्चर’ के लिए मिला पहला गोल्डन ग्लोब अवार्ड है, लेकिन इससे पहले ‘सर्वश्रेष्ठ मूल संगीत’ के लिए 2009 में भारत के संगीतकार को यह अवार्ड मिला है। वो फिल्म थी ‘स्लमडॉग मिलिनियर’ और संगीतकार ए.आर. रहमान। स्पॉट किए हुए किस फिल्म के गुलजार और रहमान की जोड़ी सबसे पॉपुलर सॉन्ग ‘जय हो’ को बेस्ट ओरिजिनल सांग का अस्कर भी मिला था। ग्रैमी अवार्ड भी मिला था। ये अलग बात है कि ये फिल्म भारतीय नहीं थी। लेकिन इसके कलाकार और गीत-संगीतकार तो भारतीय ही थे, इसकी कहानी भी भारतीय पृष्ठभूमि पर थी। लेकिन ‘बॉलीवुड बनाम दक्षिण भारत की जंग’ में बॉलीवुड के लिए जीत का सांग रचने वाले रहमान भी मूल रूप से दक्षिण भारतीय संगीतकार ही हैं। ये अलग बात है कि वो बाद में बॉलीवुड में ही पहुंच गए। इसके अलावा 1959 में फिल्म ‘दो आंखों बारह हाथ’ को प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
हिन्दोस्तान पर छिड़ी बहस
राजामौली आगे कहते हैं कि वे फिल्म में गाना नहीं रखेंगे, स्टोरी को आगे बढ़ाने के लिए अटैचमेंट को यूज करते हैं। वे पूरी तरह से सही हैं. ‘नाटू-नाटू’ को ही देखें, गीत उनकी कसौटी पर खरा उतरता है। राजामौली की बात से सहमत होते हुए भी इतना कहना कहते हैं कि अपवाद को छोड़ दें तो बेशक इन दिनों हिंदी गीत फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने वाले नहीं होते। लेकिन बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों के हिंदी गाने फिल्म की कहानी को बा कोएड बूस्ट अप करने वाले थे। ये सदाबहार पुराने गाने पूरी तरह सिचुएशन को और कहानी को सपोर्ट करने वाले थे, आगे बढ़ाने वाले थे। किंगमौली इक्की सातवीं सदी की फिल्म हैं। उनकी पैन इंडिया इमेज ‘बाहुबली’ (2015) के बाद ही बनी है।
हम यह तो नहीं कहते कि किंगमौली ने ये तरकीब बॉलीवुड से ही सीखी है, लेकिन ये कहने में संशय नहीं है कि कहानी को आगे बढ़ाने वाले हर गाने का इस्तेमाल बॉलीवुड स्ट्रीमिंग से करता है और भरपूर करता है। इन गानों में इश्क-मोहब्बत की बातें तो होती ही थीं, डीप फिलॉसफी भी हुई थी। बॉलीवुड का गीत, संगीत और पोषण से गहरा नाता है। हिंदी फिल्मों के नए हो या पुराने गाने, पूरे भारत में गाए, गुणुनाए और पसंद किए जाते हैं। पुराने सदाबहार गानों का तो कहना ही क्या? हिंदी गीतों में वो ताकत है कि हिंदी के धुर विरोधी दक्षिण लय के लोग भी हिंदी गीतों के मुरीद रहे हैं। लेकिन ये सब बातें नहीं जबरदस्त, क्योंकि राजामौली की टीम ने जो जादू किया है वो झटका बेमिसाल है। देश का नाम दुनिया में राज करने के लिए किंगमौली, कम्पोजर एम. एम. किरावानी बहुत-बहुत आनंद और बधाई के पात्र हैं। अभिनेता रामचरण और जूनियर एनटी रामाराव ने भी कमाल किया है। उन्नी ने बहुत फास्ट स्टेप्स के साथ डांस किया है। बकौल, रामचरण ‘मेरे घुटने अभी भी लड़खड़ा रहे हैं’।
‘नाटू-नाटू’ की कहानी
वे आगे कहते हैं, ‘उन्नी कोई और उनके सह-कलाकार एनटी रामाराव जूनियर ने ‘नाटू-नाटू’ में जो काम किया वो रंग लाया।’ डांस की एक बहुत सी ये भी थी कि इसमें कलाकारों के स्टैप्स और मूवमेंट बहुत फास्ट हैं कि शंका होने लगती है कि ये ओरिजनल हैं या ‘कम्प्प्यूटर ट्रिक’ का इस्त्तेमाल करके इसे फास्ट दिखाया गया है। डांसर के पीछे के लोग और क्राउड्स के स्टेप्स/मूवमेंट्स गौर से देखने पर शंका दूर हो जाती है कि ये डांस अकाउंटी फास्ट स्टेटप्स वाला डांस है और फास्ट दिखाने के लिए इसमें किसी ट्रिक का इस्तेमाल नहीं किया गया है, कोई लोचा नहीं है। इस डांस के लिए एक और शेख को बधाई देना जरूरी है वो कोरियोग्राफरक्षित है, उनके क्रिएशन के बिना ये संभव नहीं था। फ़िल्म हो या सांग पिक्चराइज़ेशन ये एक सामूहिक अभियान है, इसलिए गायक जोड़ी राहुल सिप्लीगंज और काले भैरवा को भी याद किया जाना चाहिए।
जनता ने भी ‘नाटू-नाटू’ को खूब पसंद किया
हां, पूरा सांग न सिर्फ दिलचस्प है, बल्कि किंगमौली के कथन को सही सिद्ध करते हुए कहानी को साफ-साफ आगे बढ़ाने वाला साबित होता है। कहते हैं न पूत के पांव तो पालने में ही दृष्टि आ जाती है ये सांग भी ऐसा ही है। पुस्कार से तो इसे अभी नवाजा गया है, जनता की अदालत ने तो इसे ताज बहुत पहले ही पहना दिया था। करोड़ से ज्यादा वुज और लाइक के साथ। स्पॉट किए गए किसी फिल्म की दुनिया में गोल्डेन ग्लोब को एक यूनिक अवार्ड दिया गया है, जिसे पहली फिल्म के लिए दिया गया था। बाद में ये टीवी सीरियल्स के लिए भी दिया जाने लगा। 1944 में ये अवार्ड हॉलीवुड फॉरेन प्रेस एसोसिएशन द्वारा दिया गया। इसमें पाराज़िन के समूह द्वारा सर्वेक्षण किया जाता है। गोल्डन ग्लोब पर भी यह आरोप लगाया गया था कि किए गए नस्लभेद से प्रभावित हुआ है। बाद में इसकी ज्यूरी में आंशिक सुधार का दावा किया गया।
पुरस्कार से और भी मिली प्रतिष्ठा
गोल्डन ग्लोब्स में 105 सदस्यीय मतदान करते हैं, आस्कर में 9,000, एमी में 20,000 और बाफ्टा में 6,000 सदस्यीय मतदान करते हैं। ‘आरआरआर’ के गाने को तो ये अवार्ड ही मिला है। इस फिल्म को भी गोल्डन ग्लोब अवार्ड में नॉन इंग्लिश मूवी के लिए नॉमिनेशन मिला था। दुर्भाग्यवश उसे पुरस्कार नहीं मिला और वह ‘द बेस्ट पिक्चरिन ए फॉरेन लैंगवेज’ के पुस्कार में ‘अर्जेंटीना 1985’ से पिछड़ गया। ‘आरआरआर’ को एक और जगह सम्मान मिला है। इसे सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्म के लिए LA का ‘क्रिटिक्स च्वाइस अवार्ड’ मिला है। ‘नाटू-नाटू’ यूक्रेन से दिलचस्प कनेक्शन है। इसे यूक्रेन के राष्ट्रवादी जेनेंस के अधिकारिक भवन के सामने गाया गया था। बता दें कि जैलेंस्की खुद एक कलाकार हैं, एक कॉमेडी आर्टिस्ट.
‘नाटू-नाटू’ को यह प्रतिष्ठा पुस्कार इसलिए भी बहुत मायने रखता है क्योंकि इस सांग के कांपीटीशन में जो सांगस थे उन्हें यूएसए की दिग्गज चक्करों ने स्वर दिए थे। इनमें टेलर स्विफ्ट, लेडी गागा और रिहाना शामिल थीं। ये सभी भ्रांतियां अमेरिकी और पश्चिम की म्यूजिक इंडस्ट्री की आईकॉन हैं। इनसे मुकाबला जीतना आसान नहीं था, ‘नाटू-नाटू’ ने तो इनहेंजेस मैदान में दौड़ लगाई है। इसलिए भी ये महान एचीवमेंट है।
शकील खानफिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला तथा समीक्षक स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेखक और निर्देशक हैं। एक फैक्ट फिल्म लिखी है। एक सीरियल सहित कई पोस्ट्युमेंट्री और टेलीफिल्में लिखी और निर्देशित की गई हैं।