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स्यामंतक मणि से कोहिनूर: ब्रिटेन ने कंबोडिया को वापस किए चोरी के गहने, क्या वापस आएगा कोहिनूर, क्या है इसका भगवान कृष्ण संग संबंध?

कहा जाता है कि ये हीरा उसके गिरने के करीब आने के बाद ही हुआ। कोहिनूर फारसी भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब होता है रोशनी का पहाड़। कहते हैं कि कोहिनूर जहां भी वहां बर्बादी मचाई। चाहे सुल्तानों की सल्तनत हो या राजाओं के राज।

ब्रिटेन ने कंबोडिया को पुराना ज्वेलरी कलेक्शन दिया है। करीब 700 साल पुराना ये ज्वैलरी कलेक्शन अंक या वंश के शाही घराने का है। कंबोडियाई संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि कंबोडिया से चुने गए अंगकोरियन क्राउन ज्वैलरी के टुकड़े टुकड़े, जिन्हें जनता ने कभी नहीं देखा है, उन्हें वापस कर दिया गया है। अब इस आभूषण को राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शनी के लिए रखा जाएगा। वहीं ब्रिटेन के इस कदम के बाद अब कोहिनूर को लेकर फिर चर्चा तेज हो गई है।

ब्रिटेन ने कंबोडिया को चोरी के गहने वापस लिए

कंबोडियाई मंत्रालय ने कहा कि उन्हें ब्रिटिश पुरोशेष व्यापारियों डगलस लैचफोर्ड के परिवार से 77 टुकड़े मिले। संयुक्त राज्य अमेरिका में लैचफोर्ड की 2020 में कला विज्ञान के प्रमाण की प्रतीक्षा के दौरान मृत्यु हो गई। उस समय अमेरिका में आर्ट ट्रैफिकिंग का मुकदमा चल रहा था। इसमें उनके परिवार ने शिकायत किए गए संग्रह को कंबोडिया को लौटाने का वादा किया था। मंत्रालय ने एक बयान में कहा, संग्रह, जो शुक्रवार को कंबोडिया में सावधानी से सूचित करें, में “मुकुट, हार, इशारा, बेल्ट, झूमके और ताबीज सहित पूर्व-अंगकोरियन और अंगकोरियन काल के सोने और अन्य कीमती धातुओं के टुकड़े शामिल हैं”।

दुनिया में हर चीज की एक कीमत होती है लेकिन एक ऐसी चीज भी है जिसकी आज तक कोई कीमत नहीं पाई जाती। ये एक हीरा है जिसका नाम है कोहिनूर। कोहिनूर का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा और इससे जुड़ी कई कहानियां भी सुनी होंगी। लेकिन कोहिनूर से जुड़ी एक ऐसी अनसुनी कहानी है जो शायद ही आपको पता हो। जिस कोहिनूर को भारत की शान के तौर पर देखा जाता है। वहीं कोहिनूर ब्रिटेन के लिए शापित साबित हो रहा है। ये बात और है कि अंग्रेज हमसे हमारा कोहिनूर हीरा कंठ कर गए लेकिन कोहिनूर कभी उन्हें नहीं मिला।

कोहिनूर जड़ा ताज नहीं गिनेगी कैमिला

ब्रिटेन का नया राजा बनने जा रहे किंग चार्ल्स-III का ताजपोशी के दौरान महारानी के ताज में कोहिनूर नहीं लगेगा। कैमिला पार्कर महारानी एलिजाबेथ का ताजपोशी के दौरान किंग चार्ल्स-तृतीय का ताजपोशी का ताजपोशी नहीं लिया जाएगा। बकिंगम पैलेस ने यह घोषणा की है। ताजपोशी से करीब 3 महीने पहले शाही राजघराने ने ये फैसला लिया है। इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब ब्रिटेन के महारानी के ताज से कोहिनूर लापता होंगे। ब्रिटिश मीडिया में कहा गया कि इसका मकसद है कि भारत से रिश्ते न बिगड़ें। कहा जा रहा है कि शाही परिवार के रिश्ते से दूर रहना चाहते हैं। वो भी ऐसे समय में जब भारत और ब्रिटेन के संबंध अच्छे हैं तो शाही परिवार नहीं चाहता कि ताजपोशी के समय भारत के साथ किसी का भी कूदना विवाद हो। क्योंकि ये बात किसी से छिपी नहीं है कि ये नायाब हीरा भारत की विरासत है। किस वापसी को लेकर भारत की ओर से समय पर मांग हो रही है।

हीरा जिसका गिरते-गिरते बच गया

कहा जाता है कि ये हीरा उसके गिरने के करीब आने के बाद ही हुआ। कोहिनूर फारसी भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब होता है रोशनी का पहाड़। कहते हैं कि कोहिनूर जहां भी वहां बर्बादी मचाई। चाहे सुल्तानों की सल्तनत हो या राजाओं के राज। सब खत्म हो गया। लेकिन असली कोहिनूर की दीदार दुनिया में पहली बार हुआ। इस प्रश्न की हमें खोज महाभारत काल में ले जाती है। महार्षि व्यास के लिए लिखित महाकाव्य के 56वें ​​स्कंद के 10वें अध्याय में एक अत्यंत तेजपुंज मणि का वर्णन है। सल्तनत काल, मुगल काल और अंग्रेजों की गुलामी के दौर में सत्ता, शासन, वैभव के साथ युद्ध और छल कपट का प्रतीक रहा कोहिनूर पौराणिक काल में भी स्यमंतक मणि के रूप में अनगिनत महत्वपूर्ण वर्गों के केंद्र में रहा।

भगवान कृष्ण के साथ संबंध

मिथकीय करार तो कृष्ण ने द्वारका नगरी बसाई। इसी नगरी में सतराजित यादव रहा था। सतराजित सूर्य का उपासक था। उनके साधना और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर ने अपनी ही तरह प्रकाश पुंज स्यमंतक मणि दी। मिथकीय करार तो कृष्ण ने द्वारका नगरी बसाई। इसी नगरी में सतराजित यादव रहा था। सतराजित सूर्य का उपासक था। उनके साधना और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर ने अपनी ही तरह प्रकाश पुंज स्यमंतक मणि दी। मणि पाकर सत्राजित यादव जब समाज में गए तो श्रीकृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजित को दिया। एक दिन प्रसेनजित घोड़ों पर चढ़ने के लिए शिकार के लिए गया। वहां एक शेर ने उसे मार डाला और मणि ले ली। रीछों का राजा जामवन्त उस सिंह को मार कर मणि लेकर चला गया। जब प्रसेनजित कई दिनों तक शिकार से न लौटा तो सत्राजित को बड़ा दुख हुआ। उसने सोचा, श्रीकृष्ण ने ही मणि प्राप्त करने के लिए उसका वध कर दिया होगा। इसलिए बिना किसी प्रकार की जानकारीए अभियान दिया कि श्रीकृष्ण ने प्रसेनजित को प्रभावित स्यमन्तक मणि छू ली है। इस लोक-निंदा की रोकथाम के लिए श्रीकृष्ण बहुत से लोगों के साथ प्रसेनजित को वन में ढूंढने गए। वहां पर प्रसेनजित को लायन द्वारा मार डाला और शेर को रीछ द्वारा मारकर उन्हें मिल गए। रीच के पैर की खोज करते-करते वे जामवन्त की छुट्टी पर पहुंचे और छुट्टी के अंदर चले गए। वहां उन्होंने देखा कि जामवन्त की बेटी उस मणि से खेल रही है। श्रीकृष्ण को देखते ही जामवन्त युद्ध के लिए तैयार हो गए।युद्ध छिड़ गए। शेष के बाहर श्रीकृष्ण के साथियों ने वे सात दिन तक प्रतीक्षा की। फिर वे लोग मर गए यह देखकर पश्चाताप करते हुए द्वारिकापुरी लौट गए। शोक इक्कीस दिन तक लगातार युद्ध करने पर भी जामवन्त श्रीकृष्ण को पराजित न कर सका। तब उसने सोचा, कहीं वह अवतार तो नहीं जिसके लिए मुझे रामचंद्रजी का वरदान मिला था। यह पुष्टि होने पर उसने अपनी कन्या का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और मणि दहेज में दी। श्रीकृष्ण जब मणि लेकर वापस आए तो सत्राजित अपने किए पर बहुत लज्जित हुआ। इस लज्जा से मुक्त होने के लिए उसने भी अपने पुत्र का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया। मूल रूप से ये 793 कैरेट का था। लेकिन अब ये 105.6 कैरेट का रह गया है।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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