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जानिए हाइपरएक्टिव बच्चों को कैसे कंट्रोल करें।-जानिए हाइपरएक्टिव बच्चों को कंट्रोल करने के तरीके।

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इन दिनों बच्चों में एंजाइटी (चिंता) बढ़ रही है। अति सक्रिय हो रहे हैं। सामान्य बच्चों में भी हाइपरएक्टिविटी देखी जा सकती है। विशेषज्ञ विशेषज्ञ हैं कि इसके माध्यम से इंटरनेट पर अत्यधिक समय लगने का कारण हो सकता है। बच्चा खेलने की बजाय स्क्रीन पर ही रहने लगे। कामकाजी माता-पिता के लिए यह समस्या और परेशान करने वाले भी हो सकते हैं। स्कूल से लौटने पर उनसे बात करने के लिए कोई नहीं मिलता। परिणाम अधिक आक्रामक हो जाते हैं। चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट गगनदीप कौर पाहवा अपने पोस्ट में बताते हैं कि 4 टिप्स से बच्चों की अति सक्रियता को कम किया जा सकता है।


पर्यावरण(पर्यावरण) और भ्रंश (खान-पान) भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं

बच्चों के हाइपरएक्टिव बिहेवियर जर्नल में हेल्थ साइकोलॉजी रिसर्च जर्नल में डॉ। अजय सिंह और उनके साथियों ने रिसर्च किया। वे अपने शोध में कहते हैं, हालांकि अति सक्रिय विकार (एडीएचडी) एक जटिल विकार है। यह स्कूल चल रहा है या प्री स्कूल बच्चों में विकसित होता है। इसके लक्षण वयस्क होने पर भी दिख सकते हैं। पर्यावरण, विषमता और क्रिया इसकी जोखिम को बढ़ाते हैं। साथ ही मिलीभगत की गलत आदतें, आहार में जंक फूड और बताए गए खाद्य पदार्थों की अधिकता का भी प्रभाव में शामिल हो सकते हैं। फ़ूड एडिटिव, रिफाइंड शुगर और फैटी एसिड की अधिकता भी लक्षणों से जुड़ी हुई हैं।

यहां जानकार के बताएं 4 उपाय, जो बच्चों की सक्रियता को कम कर सकते हैं (ADHD चाइल्ड को नियंत्रित करने के टिप्स)

चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट गगनदीप कौर बताती हैं कि 4 टिप्स से बच्चों की हाइपरएक्टिविटी को कम किया जा सकता है।

1 फिजिकल एक्टिविटी (शारीरिक गतिविधि) सबसे अधिक जरूरी है

कोरोना महामारी के दौर ने सबसे अधिक बच्चों की शारीरिक गतिविधियों को प्रभावित किया है। चिल्ड्रन होम से बाहर निकलकर बहाना-कूदने की बजाय ऑनलाइन गेम से अधिक जुड़े हुए हैं। इसकी वजह से न सिर्फ उनकी फिजिकल एक्टिविटी प्रभावित हुई है, बल्कि मेंटल हेल्थ भी प्रभावित हुआ है। अति सक्रिय बच्चों की सक्रियता को कम करने के लिए सबसे पहले नियमित रूप से उनसे 40 मिनट शारीरिक गतिविधि करवाएं।


अच्छी आदतन सीखते हैं माता-पिता से
अति सक्रिय बच्चों की गतिविधियों को कम करने के लिए नियमित रूप से उनसे भौतिक गतिविधि करवाएं।चित्र: विभिन्नस्टॉक

इसके अंदर खुले मैदान (आउटडोर खेल) और व्यायाम (व्यायाम) भी हो सकते हैं।

2 सोने से 3 घंटे पहले हाई शुगर प्रोडक्ट्स (हाई शुगर प्रोडक्ट) नहीं दें

रिसर्च से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि हाई शुगर मेंटल हेल्थ को प्रभावित करते हैं। बच्चे को सोने से 3 घंटे पहले हाई शुगर प्रोडक्ट देना बंद कर दें। आर्टिफिशियल शुगर से तैयार केक, पेस्ट्री या किसी भी प्रकार की आकर्षित देना बंद कर दें।

3 सोने से 1 घंटे पहले स्क्रीन कांटेक्ट (स्क्रीन संपर्क) बंद कर दें

अक्सर माता-पिता बच्चों को सोने के लिए कहते हैं। वे खुद टीवी-मोबाइल से जुड़े रहते हैं। यदि आपको अपने बच्चों की हाइपरएक्टिविटी पर असर पड़ता है, तो सोने से 1 घंटे पहले घर में चल रहे दें- मोबाइल को बंद कर दें।

स्क्रीन से आप अपना संपर्क हटा लें। टीवी- मोबाइल से निकली किरणें (रे) उनके दिमाग को प्रभावित कर सकती हैं। सभी मोबाइल को एक कोने में रखें। कोई अच्छी किताब खुद पढ़ें और बच्चों को भी पढ़ें। यदि बच्चे पढ़ने में आनाकानी करता है, तो उसे पढ़कर कुछ प्रेरणा देने वाली कहानियाँ सुनाएँ। अच्छी बातें सुनें।


4 हमिंग साउंड (गुनगुनाहट की आवाज)

पहले माएं बच्चों को लोरी सुनाकर सुलाती थीं। आजकल की कमी के कारण मैं लोरी नहीं सुनता। पर आज भी यह हानिकारक नायब है। आपका बच्चा भी जब सोने जाए, तो उसे 5-10 मिनट तक हमिंग की आवाज जरूर सुनाई देगी। आप इस आवाज को खुद निकाल भी सकते हैं।

बच्चों में विकसित करें हेल्दी स्लीपिंग पैटर्न
बच्चों को सुलाने के लिए वे ध्वनि सुनाते हुए हमिंग करते हैं। चित्र : उजागर करें

यदि आप इस ध्वनि को निकालने में असमर्थ हैं, तो कई तरह की हमिंग ध्वनि मोबाइल एप पर भी उपलब्ध हैं। यह ध्वनि समुद्र की आवाज़ या चिड़ियों की धीमी आवाज़ में चहहाहट भी हो सकती है। इससे उसका दिमाग सकारात्मक रूप से प्रभावित होगा। वह शांत हो जाएगा।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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