
किस्सा कुर्सी का विशेषांक : छत्तीसगढ़ की माटी ने चुनावी दाव पेज में बहुत सी सियासी कुर्सी की लड़ाई, बदलाव झेली है | इस सियासी दाव पेज में छत्तीसगढ़ की 27 विधानसभा सीटें ऐसी थीं जहां एक ही सीट पर दो उम्मीदवारों का निर्वाचन किया जाता था। एक उम्मीदवार सामान्य वर्ग से और दूसरा आरक्षित यानी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग का होता था। द्विसदस्यीय निर्वाचन की यह व्यवस्था 1957 तक जारी रही। दोहरी निर्वाचन वाली सीटों में मनेंद्रगढ़, सूरजपुर, सारंगढ़, कोटा, मुंगेली, मस्तूरी, अकलतरा, चंद्रपुर, आरंग, भाटापारा, भटगांव, महासमुंद, धमतरी, कांकेर, बेमेतरा, भिलाई, डोंगरगढ़ और घरघोड़ा थीं।
इन सीटों पर 1952 और 57 के चुनाव में दो-दो प्रत्याशी चुने गए थे पाल भी इसी श्रेणी में थी। 1962 में यह सीट अनाराक्षित रखी गई, किंतु उसके बाद से अजजा वर्ग के लिए सुरक्षित घोषित हुई। अंबिकापुर सीट भी इसी वर्ग में शामिल थी। मगर यहां कुछ उल्लेखनीय भी है। मसलन 1962 से 77 के मध्य हुए चुनावों में यह सीट सामान्य, 1980 से 2003 तक अजजा और फिर 2008 में पुनरू सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित घोषित की गई।
दोहरे निर्वाचन में शामिल धर्मजयगढ़ सीट 1962 और 1972 में सामान्य और फिर 1977 से यह सीट अजजा वर्ग के लिए सुरक्षित रखी गई। इसी तरह कटघोरा 1962 अजजा के लिए थी तो 1967 से सामान्य हो गई। इस श्रेणी में की बिन्द्रानवागढ़ सीट 1952 में देवभोग के नाम से जानी जाती थी। द्विसदस्यीय निर्वाचन समाप्त होने के बाद 1962 में महासमुंद अजा वर्ग के लिए आरक्षित हुई थी। लेकिन 1967 से उसे सामान्य घोषित किया गया। दो सदस्यों वाले जगदलपुर को 1962 से 72 तक के चुनावों में अजजा वर्ग के लिए आरक्षित रखा गया, 1980 में यह सीट सामान्य हुई तो 1985 से 2003 के मध्य अजजा के लिए आरक्षित किया गया, मगर 2008 में एक बार फिर जगदलपुर सीट सामान्य वर्ग के लिए खोली गई।
धमधा 1952 में द्विसदस्यीय थी, मगर उसका नाम बोरई देवकर था। धमधा सीट 1962 तक सामान्य वर्ग के लिए थी तो 1967 और 72 में अजा के लिए सुरक्षित घोषित की गई। 2008 के परिसीमन में धमधा सीट खत्म कर दी गई। यह जानकार आश्चर्य होगा कि प्रथम विधानसभा चुनाव में भिलाई नाम की कोई विधानसभा सीट नहीं थी। कुथरेल उस उक्त विधानसभा सीट थी। 1957 में उसी का नाम बदल कर भिलाई रखा गया। 1957 में यह सीट दोहरी सदस्यता वाली थी। 1962 में अजजा वर्ग के लिए भिलाई सीट आरिक्षत थी। इसी तरह डोंगरगढ़ 1957 में दोहरे प्रतिनिधित्व वाली सीट थी। 1962 से 72 से अजा वर्ग के लिए सुरक्षित की गई। घरघोड़ा भी 1952 और 57 में द्विसदस्यीय सीट थी।
1977 के बाद यह सीट समाप्त हो गई। 1962 में मनेंद्रगढ़ सीट से अलग हो कर बैंकुठपुर सीट का निर्माण किया गया। 1962 में ही प्रेमनगर सीट बनी। 1952 में यह क्षेत्र सामरी के नाम से अस्तित्व में थी, जिसे 1957 में समाप्त कर दिया गया था। मजेदार तथ्य है 1962 में इस विधानसभा क्षेत्र का नाम भैयाथान था। 1967 में प्रेमनगर विधानसभा क्षेत्र का जन्म हुआ। 1957 में सूरजपुर सीट का गठन हुआ। 1962 से 77 तक यह सीट सामान्य वर्ग के लिए खुली थी। सामरी सीट का जन्म भी 1962 में हुआ, इसी साल लूंड्रा भी नई सीट बनी जो अजा वर्ग के लिए रखी गई किंतु 1967 से अजजा वर्ग के लिए सुरक्षित है। 1967 में पिलखा को लखनपुर क्षेत्र के नाम से पहचान मिली, 1977 से वह वर्तमान नाम से जाना जा रहा है। गौरतलब है 1962 से पूर्व इसका अस्तित्व नहीं था। 1952 और 57 में बगीचा विधानसभा नहीं थी। 1962 में यह सीट बनी तब यह अनारक्षित थी। 1972 से अजजा वर्ग के लिए आरक्षित किया गया। यद्यपि 1952 के चुनाव में रामपुर सीट थी, मगर 1952 में उसे खत्म कर दिया गया, 1962 में उसे बरपाली का नाम दिया गया। 1967 से पुनरू रामपुर नाम प्रतिष्ठित हुआ।
1952 से 1962 के मध्य हुए तीन चुनावों में अनेक सीटों का अस्तित्व नहीं था। कुछ का उल्लेख ऊपर हो चुका है, शेष हैं, तपकरा, पत्थलगांव, लैलूंगा, (इस सीट को 1962 व 1972 के चुनाव में समाप्त कर दिया गया था।) खरसिया, (1962, 67 और 72 में इस सीट का नाम पुसौर था), सरिया, तानाखार (यह सीट 1957 में सामान्य थी), कोंडागांव, जरहागांव, बिल्हा, मालखरौदा, बलौदाबाजार, पलारी, भानुप्रतापपुर, भानपुरी (1962 में सामान्य वर्ग के लिए खुली थी), केशलूर, मारो, साजा, गुंडरदेही, खेरथा, खुज्जी (खुज्जी को 1962 में लालबहादुर नगर का नाम दिया गया था। इस वर्ष वह सीट अजजा वर्ग के लिए आरक्षित थी 1967 से पुनरू सामान्य वर्ग के लिए खुली)।
2008 में समाप्त हुई वीरेंद्र नगर को 1952 में गंडई के नाम से गठित किया गया था। 1952 की तखतपुर सीट 1957 में समाप्त कर दी गई थी किंतु 1962 में उसका पुनर्जन्म किया गया। इसी तरह 1952 में सुकमा विधानसभा थी जो 1957 में कोंटा हो गया। इस वर्ष कोंटा सामान्य वर्ग की सीट थी। 1952 में पाटन को पंधर/पंढर विधानसभा कहा गया तो अगले दो चुनाव में यह सीट समाप्त कर दी गई थी। 1967 और 1972 में पाटन सीट भाठागांव के नाम से अस्तित्व में आई, 1977 में उसे पाटन नाम पुनरू प्राप्त हुआ। 1952 में खल्लारी पिथौरा विधासभा क्षेत्र में शामिल था, 1957 में उसका अस्तित्व समाप्त हुआ। 1962 से 72 तक पिथौरा क्षेत्र से संयुक्त रहा। 1977 से खल्लारी स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में है। इसी तरह 1952 में अस्तित्व में रही राजिम सीट 1957 में समाप्त हो गई थी लेकिन 1962 से यह सीट निरंतर है।
1952 में सीपत क्षेत्र का नाम बाराद्वार, 57-62 मे जांजगीर, 62-72 में बलोदा था। 1977 में क्षेत्र को सीपत नाम दिया गया। इसी तरह 1952 में पामगढ़ क्षेत्र का नाम नरगोदा, 57-62 में नवागढ़ तथा 1972 से पामगढ़ नामकरण हुआ। यह सीट 1952 से 62 तक सामान्य थी। 1967-72 में अजा वर्ग के कोटे में पामगढ़ को रखा गया। 1977 से 2003 तक यह सीट पुनरू सामान्य वर्ग को दी गई। 1952 में कसडोल क्षेत्र का नाम कोसमंदा था तो 1957 में यह सीट ही खत्म कर दी गई। 1962 से कसडोल सीट अस्तित्व में है। इसी प्रकार बस्तर की नारायणपुर सीट 1952 में सामान्य रखी गई तो 1957 में अजजा वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई। 1952 में लोरमी पंडरिया विधानसभा क्षेत्र कहलाता था। मरवाही विधानसभा क्षेत्र को 1952 में पेंड्रा, 57-62 में गौरेला कहा जाता था।
1967 से मरवाही नाम अस्तित्व में आया। बस्तर की चित्रकोट, दंतेवाड़ा सीट 1952 में, बीजापुर, केशकाल 1952 और 57 के चुनाव में सामान्य वर्ग की सीटें थीं। यहीं की केसलूर सीट 1977 में बनाई गई। जिससे 2008 में समाप्त कर दिया गया। 2008 के विधानसभा चुनाव नए परिसीमन के आधार पर हुए। 2003 तक रही अनेक सीटों का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया जिनमें चांपा, जरहागांव, भानपुरी, केशलूर, मारो, धमधा, वीरेंद्र नगर और मंदिर हसौद की सीटें हैं। जबकि जांजगीर-चांपा, भरतपुर-सोनहट, भटगांव, प्रतापपुर, कोरबा, बेलतरा, बिलाईगढ़, रायपुर उत्तर, रायपुर दक्षिण, रायपुर पश्चिम, दुर्ग शहर, दुर्ग ग्रामीण, वैशाली नगर, अहिवारा, नवागढ़ पंडरिया, अंतागढ़, बस्तर, मोहला मानपुर जैसी नई सीटों का अस्तित्व कायम हुआ। चौकी विधानसभा सीट पर 1952 से 1957 के मुख्य चुनाव के बाद तीन उपचुनाव भी हुए। 1952 में सुजनीराम ने लाल श्याम शाह को हराया, उप चुनाव में लाल श्याम ने सुजनीराम को पराजित किया अगले चुनाव में भी यही परिणाम रहा, तीसरे उपचुनाव में कनक कुमारी ने त्रिवेणी सिंह को हराया था।
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