बाबूबली अतीक अहमद को उमेश पाल के अपहरण के मामले में कैद की सजा सुनाई गई है। उमेश पाल 25 जनवरी 2005 को सुलेमानराय में आम आदमी राजू पाल की हत्या के मामले में मुख्य गवाह थे। साल 2006 में उमेश पाल का अपहरण कर हत्या करने का प्रयास किया गया था।
पूर्वांचल का खूंखार गुणदा अतीक अहमद जो अभिलेख में बहुत फलाफूला था, आज उसके कर्मों की होश हो गई। प्रयागराज के एमपी-लॉ कोर्ट ने अतीक अहमद सहित उसके दो साथियों दिनेश पासी और खान सौलत हनीफ को उम्र कैद की सजा सुनाई। अतीक का भाई अशरफ और अन्य सात दशक निश्चित रूप से काफी हो गए। इसके साथ ही यह भी साफ हो गया कि सौ कदमों के बावजूद उसके खतरे के कारण कोई गवाह सामने नहीं आया, लेकिन एक मामला उस पर भारी पड़ गया, जिसमें उसकी उम्र कैद हो गई, जबकि जोखिम यह था कि अतीक अहमद के काले कारनामों और जघन्य फोल्डिंग की लिस्ट थी और उनके इस रोटर पर कई लोगों की नजरें टिकी थीं।
अतीक का खतरा ही ऐसा था कि कोई गवाह देने की हिम्मत नहीं कर पाया, जिसने हिम्मत की तो उसे साम-दाम-दंड से ‘तोड़’ दिया। न जाने गवाह ऐन गवाहों की गवाही से मुकर गए, लेकिन कहते हैं कर्मों का होश तो होता ही है, इसलिए 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में गवाही देते हुए उमेश पाल नाम का एक शख्स सामने आता है तो अतीक और उसके गुर्गे उसे सबमिट करने के लिए उसके अपहरण कर लेते हैं। उसे गवाही देने की धमकी देते हुए मरणासन कर छोड़ देते हैं, लेकिन उमेश पाल बच जाता है, लेकिन पूरे मामले में अस्पष्ट सरकार सोती रहती है। क्योंकि उसका हाथ अतीक के साथ था।
सपा नेतृत्व अतीक अहमद और मुतार अंसारी जैसे गुंडों के मानदंड मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी नजर जमाए रखते थे। स्पा के लिए यह गुंडे वोट बैंक के सौदागर नहीं थे। आज भी कहीं न कहीं अखिलेश यादव और उनकी पार्टी अतीक के पक्ष में नजर आ रही है। वैसे तो बसपा भी समय-समय पर अतीक और मुख्तार के साथ रहती है। कुछ समय पूर्व ही बसपा ने अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन को पार्टी की सदस्यता दी थी। शाइस्ता को बसपा ने नगर निकाय चुनाव में प्रयागराज से मेयर पद के चुनाव लड़ने का भी फैसला किया था।
खास सियासत के पुराने पन्ने पलटे जाएं तो किसी एक समय जैसा नहीं रहता। समय बदला तो उमेश पाल ने लिखा दिया। 2007 में मायावती की सरकार बनने के बाद उमेश पाल की ओर से इस मामले में अतीक अहमद सहित 11 लोगों के खिलाफ धूमनगंज थाने में खड़ा किया गया था। 15 साल बाद इस मामले की सुनवाई 23 मार्च को पूरी तरह से ठप हो गई थी और 28 मार्च को आज फैसला सुनाया गया, लेकिन इससे पहले ही उमेश पाल की प्रयागराज में दहाड़े बाजार और बमों से छलनी हो गई और उमेश की हत्या का आरोप अतीक और उसके बेटे-भाइयों और बीवी पर लग गया था।
यही वही (उमेश पाल का अपहरण और हत्या का प्रयास) अतीक के लिए ‘काल’ बन गया जिसमें आज अतीक और उसके गुर्गों को सजा सुनाई गई। इस मामले में कुछ दिनों पहले कोर्ट और उनके साथियों के खिलाफ कोर्ट ने प्रोडक्शन वारंट जारी किया था। इस पर यूपी पुलिस ने साबरमती को अतीक को वारंट तामिल के बाद उसके गुजरात के साबरमती जेल से प्रयागराज वापसी के लिए प्रक्रिया पूरी कर दी। अतीक और उनके भाई को 27 मार्च 2023 यानी कल ही साबरमती और बरेली जेल से प्रयागराज जेल लाया गया था। दोषी ठहराए गए अतीक अमहद ने वर्ष 2006 में राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल का न केवल अपहरण किया था बल्कि उसके पक्ष में हलफनामा भी लिखा था।
दरअसल, राजू पाल हत्याकांड में गवाह बनने के कुछ देर बाद उमेश पाल के ऊपर खतरा मंडराने लगा। अतीक ने कई लोगों से उमेश पाल को कहा था कि वह मामले से हट जाएंगे तो उन्हें दुनिया से हटा दिया जाएगा। उमेश नहीं माने तो 28 फरवरी 2006 को उसका अपहरण कर लिया गया। उसे प्रयागराज में अतीक के कर्बला स्थित कार्यालय में ले जाकर रात भर मारापीटा था। उससे हलफनामा पर तबाही भी करवा के लिए थे, लेकिन उमेश नहीं झुके। ऐसी ही दुर्घटना में पैरवी कर 24 फरवरी को उमेश घर लौटे थे, तभी उनकी हत्या कर दी गई। आज अदालत ने 2006 में उमेश पाल के अपहरण और उसकी हत्या के प्रयास के मामले में सजा सुनाई।
आरोपीब हो, 25 जनवरी 2005 को सुलेमानसराय में मतदाता राजू पाल की हत्या हुई थी। इससे कुछ माह पूर्व ही राजू पाल ने विधान सभा चुनाव में अतीक के भाई को परास्त किया था, जिससे अतीक चिढ़ा हुआ था। इसी हत्याकांड के मामले में उमेश पाल मुख्य गवाहों में से एक थे। जब उमेश का अपहरण हुआ तो उस समय उमेश पाल को लगा कि यह उनकी आखिरी रात है। अतीक ने उससे हलफनामा पर दस्तखत करने के लिए। हलफनामा पर लिखा था कि वह पैड पर मौजूद नहीं था। न ही उसने किसी को वहाँ देखा था। अगले दिन यानि एक मार्च को अतीक ने अदालत में उमेश के हलफनामा को पेश कर कोर्ट के सामने गवाही भी दिलवा दी थी। उस समय प्रशासन में अतीक की फूटी बोलती थी।
2007 में जब बसपा सरकार बनी तो स्थिति बदलने लगी। अतीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई। पांच जुलाई 2007 को उमेश ने अतीक, अशरफ और उनके गुर्गों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। उमेश ने लगकर अपने केस में पैरवी की। उसे मुकाम तक लगभग बता दिया गया था, लेकिन निर्णय आने से एक महीने पहले ही उमेश की मौत हो गई। इस तरह से घेरे हुए राज में हुए उमेश पाल के अपहरण और उसके एक साल बाद माया राज में इस अपहरण कांड की स्थिति दर्ज होने के 15 साल बाद योगी राज में इस मामले में अतीक और उसके साथियों को सजा सुनाई गई। इसके साथ ही अन्य कई मामलों में भी अतीक के खिलाफ गवाह सामने आ सकते हैं, जिससे अतीक को सजा मिल सकती है। बहरहाल, अतीक और उनके साथियों को सजा के साथ ही योगी आदित्यनाथ का भरा हुआ सदन में माफियाओं को मिट्टी में मिला देने का संकल्प आगे बढ़ता हुआ दिखा, जो आगे भी जारी रहेगा।
अतीक पर यूपी के पूर्व डीजीपी ओपी सिंह ने खुलासा करते हुए कहा कि अतीक अहमद को सियासी संरक्षण नहीं मिला, तब वह अपना आतंक का खात्मा कर देता है। पूर्व डीजीपी ने दावा किया कि जब वह 1989-90 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के एसपी सिटी के रूप में रुके हुए थे, तब उन्होंने अपनी प्राथमिकी के जवाब में पुलिस की एक टीम के साथ एक नोट पर छापा मारा था। उस समय अतीक के हजारों लोगों ने उन्हें गोली मारने के लिए तैयार पुलिस दल को केश ले लिया था। सिंह ने दावा किया कि माफिया के आदमियों द्वारा पूरी पुलिस पार्टी को मार गिराया जा सकता है, अगर उन्होंने अतीक को चेतावनी नहीं दी कि अगर उनके कारोबार ने पुलिस पार्टी को एक भी गोली भेजी, तब अतीक और उनके समर्थक दोनों को पुलिस द्वारा गोली मार दी गई मार दी जाएगी।
यूपी के पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने कहा कि वह अटीक और उनके गुट को वहीं गिरफ्तार करना चाहते थे, लेकिन राजनीतिक दबाव ने उनकी टीम को बिना किसी गिरफ्तारी के वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर पुलिस के खिलाफ कार्रवाई के बाद अतीक को गिरफ्तार कर लिया जाता है या उसे मार दिया जाता है, तो इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा नहीं होता। सिंह ने कहा कि उस समय उनके काम की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेताओं और इलाहाबाद के लोगों ने सराहना की थी, लेकिन सत्ताधारी दल माफिया का समर्थन कर रहा था, जिसके कारण उनका उदय सबसे खूंखार के रूप में हुआ।