
शौर्य और स्वाभिमान के प्रतीक, सनातन धर्म रक्षक, युग पुरुष महाराणा प्रताप की 485 वी जयन्ती मनाई गई
UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा । भारत के शौर्य और स्वाभिमान के प्रतीक, सनातन धर्म रक्षक, युग पुरुष महाराणा प्रताप की 484 वी जयन्ती ग्राम खैरझिटी में मनाई गई। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, सांसद संतोष पाण्डेय और पंडरिया विधायक भावना बोहरा ने विधि-विधान से पूजा अर्चना कर सनातन धर्म के रक्षक, युग पुरुष महाराणा प्रताप की भव्य मूर्ति का अनावरण किया। इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह ने महाराणा प्रताप की वीरता को याद करते हुए जयघोष के नारे भी लगाए, जो पूरे क्षेत्र में गूंज उठे। अतिथियों ने महाराणा प्रताप के भव्य मूर्ति में दीप प्रज्ज्वलित और पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह आज कबीरधाम जिले के ग्राम खैरझिटी में महाराण प्रताप जयंती कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सिंह रमन सिंह के पहुंचने पर राजपूत क्षत्रिय समाज के पदाधिकारियों ने महाराणा प्रताप की स्मृति चिन्ह, शस्त्र भेटकर और पगड़ी पहनाकर स्वागत अभिनंदन किया। कार्यक्रम में पूर्व संसदीय सचिव सियाराम साहू, कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष सुरेश चंद्रवंशी, जिला पंचायत अध्यक्ष ईश्वरी साहू, उपाध्यक्ष कैलाश चंद्रवंशी, कवर्धा के युवराज मैकलेश्वर राज सिंह, चंद्रशेखर वर्मा, जिला पंचायत सदस्य डॉ. बीरेन्द्र साहू, रोशन दुबे, जनपद अध्यक्ष सुषमा बघेल, उपाध्यक्ष गणेश तिवारी, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष अनिल सिंह, पांचो परिक्षेत्र के अध्यक्षगण विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए।
छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने महाराणा प्रताप के संघर्ष और वीरता को याद करते हुए कहा कि उनके अद्वितीय साहस और बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने विशेष रूप से महाराणा प्रताप के जीवन की संघर्षों का जिक्र करते हुए बताया कि महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि के लिए जो अनगिनत त्याग किए, वह कभी भुलाए नहीं जा सकते। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप सिंह ने अरावली की पहाड़ियों और मेवाड़ के घने जंगलों में रहकर अपने लोगों को संगठित किया और अकबर की सत्ता को चुनौती दी। उनकी वीरता का वास्तविक कारण यह नहीं था कि उन्होंने अकबर को हराया, बल्कि वे इस वजह से महान हैं क्योंकि उन्होंने कभी भी अकबर के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया। उन्होंने आगे कहा कि महाराणा प्रताप सिंह के सेना में ऐसी शक्ति थी, कि वह अपनी एक छोटी सी सेना के साथ लाखों सैनिकों को चुनौती देने की क्षमता रखते थे। उनका साहस और संघर्ष न केवल उनके समय में बल्कि आज भी प्रेरणा देता है।
छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने महाराणा प्रताप के संघर्ष और वीरता पर प्रकाश डालते हुए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि बिकानेर के राजकुमार पृथ्वीराज ने महाराणा प्रताप को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उसने समर्पण की पेशकश की थी, लेकिन महाराणा प्रताप ने जिस साहस और सम्मान के साथ उस चिट्ठी का जवाब दिया, वह इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में दर्ज हुआ है। इसके साथ ही विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी सराहना की, जिनकी पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए कदमों को उन्होंने ऐतिहासिक बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के “मिशन सिंदूर“ का जिक्र करते हुए कहा कि यह मिशन पाकिस्तान की नापाक हरकतों का मुंहतोड़ जवाब है, और देश की सुरक्षा के प्रति प्रधानमंत्री की दृढ़ निष्ठा को दर्शाता है।
सांसद संतोष पाण्डेय ने अपने संबोधन में महाराणा प्रताप की वीरता और उनके अद्वितीय साहस को याद करते हुए कहा कि जब भी हम महाराणा प्रताप का नाम लेते हैं, तो सबसे पहले उनके घोड़े चेतक, उनकी तलवार और भाले का ख्याल आता है। महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास में उस वीरता और साहस का प्रतीक है, जिसे हम कभी भी नहीं भूल सकते। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप ने पराधीनता को कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अकबर की सत्ता को न सिर्फ चुनौती दी, बल्कि उसे नकारते हुए घास की रोटी खाना स्वीकार किया, लेकिन कभी भी अपनी मातृभूमि और स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। उन्होंने आगे कहा कि एक बार जब राणा प्रताप का तलवार चलता था, तो यह किसी भी युद्ध भूमि को संजीवनी शक्ति दे देता था। उनका एक-एक कदम सशक्त और देशभक्ति से प्रेरित था। महाराणा प्रताप ने कभी भी अकबर के सामने सिर नहीं झुकाया और उनका यह संघर्ष हमेशा प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
सांसद पाण्डेय ने कहा कि आज हमें अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ियों को इन महान शूरवीरों की वीरता और त्याग के बारे में बताना चाहिए। अगर हमें अपने समाज में साहस और समर्पण की भावना को मजबूत करना है, तो हमें महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज और हमारे अन्य महापुरुषों को अपना आदर्श बनाना चाहिए। उन्होंने राजपूत क्षत्रिय समाज की अग्रणी भूमिका को भी सराहा और कहा कि राजपूत समाज हमेशा से ही अपनी वीरता और राष्ट्रभक्ति के लिए जाना जाता है। उनका इतिहास प्रेरणा से भरा हुआ है, और उन्होंने हमेशा अपने धर्म और कर्तव्य के प्रति निष्ठा निभाई है।
पंडरिया विधायक भावना बोहरा ने महाराणा प्रताप के जयघोष के नारे से अपना संबोधन शुरू किया। उन्होंने कहा कि आज जिस भव्य मूर्ति का अनावरण हम देख रहे हैं, वह केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि महाराणा प्रताप के साहस, वीरता और उनके द्वारा की गई महानतम संघर्षों का प्रतीक है। यह मूर्ति हम सभी को प्रेरणा देती है और हम सभी के मन में एक अलग ही उर्जा उत्पन्न करती है। जब हम महाराणा प्रताप की मूर्ति को देखते हैं, तो उनका संघर्ष, उनकी निष्ठा, और उनका बलिदान हमारे दिलों में एक नई जागरूकता और गौरव का अनुभव कराता है। विधायक बोहरा ने आगे कहा कि महाराणा प्रताप का इतिहास हम सभी को जानना चाहिए और हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी यह बताना चाहिए कि किस प्रकार महाराणा प्रताप सिंह जी ने अपनी 20 हजार की सेना के साथ 80 हजार की विशाल मुग़ल सेना से वीरता से लड़ा।
यह केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि यह कर्तव्य, सम्मान, और मातृभूमि के प्रति अडिग निष्ठा थी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हमें अपने इतिहास पर गर्व करना चाहिए और उन वीरों को आदर्श मानकर अपने जीवन में उनके जैसे साहस, समर्पण और संघर्ष को अपनाना चाहिए। हम सभी हिंदुओं को एकजुट होकर कंधे से कंधा मिलाकर अपने समाज और राष्ट्र की भलाई के लिए काम करना है।
चंद्रशेखर वर्मा ने सभी को महाराणा प्रताप की जयंती बधाई एंव शुभकामनाएं दी। उन्होंने संबोधित करते हुए कहा कि संगठित रहना सबसे जरूरी है। उन्होंने महाराणा प्रताप के जीवन से हमें यह सिखने को मिलता है कि सत्य और धर्म की राह पर चलने का कभी भी कोई मूल्य नहीं होता, भले ही वह कितनी भी कठिन क्यों न हो। मेवाड़ में हमेशा भगवा लहराता रहा और इस भगवे की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप ने जंगलों में घास की रोटियां खाईं, फिर भी अपने धर्म और मातृभूमि की रक्षा के लिए कभी भी समझौता नहीं किया।
उन्होंने कहा कि हमें अपने इतिहास से प्रेरणा लेकर अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और किसी भी स्थिति में अपने गौरवशाली अतीत को कभी नहीं भूलना चाहिए। कार्यक्रम में योगेश्वर दिलीप सिंह, संतोष सिंह ठाकुर, केदार सिंह ठाकुर, चंद्रिका सिंह ठाकुर, मनोज सिंह, ठाकुर पीयूष सिंह, वंदना बाला ठाकुर, सौरभ सिंह, रवि राजपुत, योगेंद्र सिंह ठाकुर, अमन ठाकुर, जीवेन्द्र सिंह, हेमलाला सिंह ठाकुर, रामसिंह, कल्याण सिंह, केहर सिंह, दुर्गेश सिंह, सहित राजपूत समाज के पदाधिकारीगण और नागरिक उपस्थित थे।
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