
UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा | नगर पालिका चुनाव में इस बार वार्ड 09 का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदलता नजर आ रहा है। जहां पारंपरिक रूप से कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशी चुनावी जंग में आमने-सामने होते थे, वहीं इस बार निर्दलीय प्रत्याशी कमलकांत सिन्हा ने अपने दमदार प्रचार अभियान और सामाजिक कार्यों से मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। युवा जोश, जनता के बीच सीधा संवाद और शिक्षा सुधार की प्रतिबद्धता के साथ वे कांग्रेस और बीजेपी को कड़ी चुनौती दे रहे हैं।
ब्लैक बोर्ड छाप: शिक्षा का संदेश, बदलाव की पुकार
कमलकांत सिन्हा ने अपने चुनाव चिन्ह के रूप में ब्लैक बोर्ड छाप को चुना है, जो उनकी प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। उनका कहना है, “शिक्षा ही असली विकास की कुंजी है। जब हर बच्चा शिक्षित होगा, तभी वार्ड और शहर का असली विकास संभव होगा।” उनका यह संदेश न सिर्फ युवाओं को बल्कि माता-पिता और बुजुर्गों को भी आकर्षित कर रहा है।
वार्ड में लंबे समय से शिक्षा व्यवस्था की उपेक्षा होती आई है। सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता है, और छात्रों को बेहतर शिक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है। कमलकांत सिन्हा इस स्थिति को बदलने का वादा कर रहे हैं। उनका मानना है कि पार्षद सिर्फ सड़क और नाली बनाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि शिक्षा और सामाजिक बदलाव के लिए भी जिम्मेदार होना चाहिए।
जनता के बीच से निकला नेता, परंपरागत राजनीति को झटका
कमलकांत का चुनाव प्रचार अनोखा और प्रभावशाली है। वे न महंगे पोस्टर-बैनर लगा रहे हैं, न बड़े मंचों से भाषण दे रहे हैं। बल्कि वे सीधे जनता के बीच जा रहे हैं, उनके घर-घर जाकर समस्याओं को सुन रहे हैं और समाधान का वादा कर रहे हैं। उनकी ईमानदार छवि और सरल स्वभाव ने वार्ड के हर वर्ग को प्रभावित किया है।
जहां कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशी पार्टी के भरोसे चुनावी गणित साधने में लगे हैं, वहीं कमलकांत सिन्हा जनता के भरोसे चुनाव लड़ रहे हैं। यही वजह है कि लोग उन्हें एक वास्तविक विकल्प के रूप में देख रहे हैं, जो सत्ता में आने के बाद भी उनके बीच रहेगा, उनकी समस्याओं को समझेगा और समाधान देगा।
क्या वार्ड 09 से निकलेगा बदलाव का संदेश?
वार्ड 09 का यह चुनाव अब सिर्फ एक पार्षद पद का चुनाव नहीं रह गया है। यह परंपरागत राजनीति बनाम जननेतृत्व की लड़ाई बन चुकी है। ब्लैक बोर्ड छाप केवल एक चुनाव चिन्ह नहीं, बल्कि शिक्षा क्रांति और सामाजिक बदलाव का प्रतीक बन गया है।
अब देखना यह है कि क्या जनता इस युवा प्रत्याशी पर भरोसा जताकर इतिहास रचेगी, या फिर राजनीति की पुरानी परंपराओं को ही आगे बढ़ाएगी। 9 फरवरी को मतदाता अपना निर्णय देंगे, लेकिन हवा इस बार बदलाव की बयार के संकेत दे रही है।
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