
UNITED NEWS OF ASIA. श्रीदाम ढाली, भानुप्रतापपुर (कांकेर)। जहां एक ओर शहरी क्षेत्रों में तकनीकी संसाधनों की भरमार है, वहीं ग्रामीण अंचलों में लोग सीमित साधनों के बावजूद अपनी सूझबूझ और परंपरागत ज्ञान से जीवन को सहज बनाने की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण इन दिनों कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखंड के कराठी गांव में देखने को मिला है, जहां एक महिला ने मानसून की मार से अपने रसोई स्थान को बचाने के लिए नवाचार की राह चुनी है।
गांव की तुसरी बाई कोर्राम ने बारिश में चूल्हे को बचाने के लिए जो तरीका अपनाया है, वह न केवल आसान है बल्कि बेहद प्रभावी भी है। उन्होंने चूल्हे के ऊपर एक छतरी को रस्सी की मदद से इस तरह टांग दिया है कि बारिश का पानी चूल्हे तक नहीं पहुंचता और चूल्हा सूखा रहता है। इससे वे आराम से लकड़ी जलाकर भोजन, चाय और रोटियाँ बना लेती हैं, वो भी बिना किसी बाधा के।
चूल्हे की बारिश से रक्षा, अब भूखे नहीं सोना पड़ता
ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर चूल्हे कच्चे आँगनों या घरों के खुले हिस्सों में बनाए जाते हैं। ऐसे में बारिश के मौसम में सबसे बड़ी समस्या भोजन पकाने की होती है। कई बार चूल्हा गीला हो जाने से खाना बनाना संभव नहीं होता और परिवार को भूखे पेट सोना पड़ता है। लेकिन तुसरी बाई की यह तकनीक इस चिंता को दूर कर रही है।
तुसरी बाई कहती हैं, “बारिश में बहुत दिक्कत होती थी। चूल्हा गीला हो जाता था, खाना नहीं बना पाते थे। अब छत्तरी लगा दिए हैं, तो आराम से खाना, सब्जी, चाय बना लेते हैं, रोटी भी सेक लेते हैं।”
जुगाड़ बना नवाचार की मिसाल
यह छोटा-सा समाधान बड़ी राहत लेकर आया है। बिना किसी खर्च के, उपलब्ध संसाधनों से तैयार यह तरीका ग्रामीण नवाचार का आदर्श उदाहरण बन गया है। इस जुगाड़ में न बिजली की जरूरत है, न मशीन की – पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल और स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप।
यह पहल साबित करती है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है। तुसरी बाई कोर्राम का यह समाधान उन हजारों ग्रामीण परिवारों के लिए प्रेरणा बन सकता है, जो मानसून में रसोई की इसी समस्या से जूझते हैं।
ग्रामीण जीवन में नवाचार की जरूरत
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि ऐसे छोटे लेकिन प्रभावशाली नवाचारों को पहचानकर प्रोत्साहित करें। यदि यह मॉडल अन्य ग्रामीण इलाकों में प्रचारित किया जाए, तो बारिश के मौसम में हजारों परिवारों को राहत मिल सकती है।
कराठी गांव की तुसरी बाई ने यह दिखा दिया है कि जब इच्छाशक्ति हो और समस्या का हल निकालने की लगन हो, तो कम साधनों में भी जीवन को आसान बनाया जा सकता है। उनकी यह जुगाड़ तकनीक आने वाले समय में ग्रामीण नवाचार के उदाहरण के रूप में देखी जाएगी।
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