
UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा । भोरमदेव अभ्यारण क्षेत्र में इससे पहले जहां बाघ का शिकार किया जा चुका है । वही इस बार फिर बाघ की चहल कदमी भोरमदेव अभ्यारण क्षेत्र में बनी हुई है । वैसे तो वन विभाग के द्वारा जहां ज्यादातर वन्य प्राणियों के चहल कदमी बने रहते हैं ऐसे स्थानों को चिन्हाकित कर ट्रैप कैमरा लगाये गये है। अब बाघ की तस्वीरें सामने आने के बाद शिकारी भी सक्रिय हो सकते हैं ? हालांकि विभाग बाघ की सुरक्षा को लेकर अलर्ट मोड में आने की बात कह रहा । भोरमदेव अभ्यारण क्षेत्र की हम बात करें तो इस वन में अनेक वन्य जीवों के प्रजातियां निवास करती है ।
भोरमदेव अभ्यारण वर्ष 2001 में जहां पहला बाघ देखा गया वही अधिसूचित भी हुआ । वर्ष 2007 में इसका विस्तार किया गया ,हम आपको बता दे की भोरमदेव अभ्यारण क्षेत्र में 200 से ज्यादा प्रकार की चिड़ियों की प्रजाति देखी जा चुकी है । इसके साथ ही इस क्षेत्र में दुर्लभ प्रकार के छिपकली भी पाए गए हैं ,भोरमदेव अभ्यारण क्षेत्र अनेक पहलुओं को लेकर काफी चर्चित रहा है । वर्तमान समय में एक बार फिर से बाघ की उपस्थिति ट्रैप कमरे में कैद हुई है । बताया जा रहा है कि वन विभाग के द्वारा लगाए गए ट्रैक कमरे में बाघ की यह तस्वीर कैद हुई है । वही अब बाघ की सुरक्षा को लेकर वन विभाग अलर्ट मोड में आने की बात कह रहा ।
अब कहीं हम पिछले वर्षों की बात करें तो कबीरधाम जिले में एक बाघ की हत्या हो चुकी है । वहीं अब इस विभाग को बाघ की सुरक्षा को लेकर काफी मशक्कत भी करना पड़ रहा है । फिलहाल विभाग की माने तो बाघ के हर एक मूवमेंट पर उनके द्वारा नजर रखा जा रहा है। जानकारों की माने तो कहा जाता है कि बाघ के लिए भोरमदेव अभ्यारण क्षेत्र की और ज्यादातर ठंड के समय आते हैं। दरअसल कबीरधाम जिले का एक हिस्सा कान्हा नेशनल पार्क के एरिया से लगा हुआ है । इस कारण बाघ भी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ बॉर्डर में प्रवेश करते हैं। फिलहाल बाघ ने एक भैंस का शिकार किया है और बाघ की सुरक्षा को लेकर अब विभाग अलर्ट मोड में आने की बात कह रहा।
वर्ष 2010 व 2011में राष्ट्रीय पशु का हो चुका है शिकार
जिले में बाघ और एक बाघिन का शिकार किया जा चुका है। पहला मामला वर्ष 2010 का है। अमनिया के जंगल में बाघ को जहर देकर मार दिया गया। वहीं दूसरा मामला वर्ष 2011 में भोरमदेव अभयारण्य के जामुनपानी में हथियार से बाघिन की हत्या हुई। दांत, नाखून व मूंछ के बाल निकाल लिए गए।
बाघ ही नहीं तेंदुए का भी किया जा चुका है शिकार
जिले में केवल बाघ ही नहीं तेंदुए का भी शिकार किया गया है । मई 2020 में सहसपुर लोहारा वन परिक्षेत्र के बीट क्रमांक 291 में कर्रानाला डूबान क्षेत्र में मादा तेंदुए का शव मिला। मार्च 2019 में पंडरिया ब्लॉक के नेऊर अंतर्गत बीट क्रमांक 478 के जंगल में शिकारियों ने 11केव्ही तार में कच्चा तार के जरिए तेंदुआ का शिकार किया। इसमें दो मवेशी के मौत हुई थी। वहीं अक्टूबर 2018 में भोरमदेव अभयारण्य के बफर एरिया में झलमला से जामुनपानी के बीच शीतलपानी के पास पानी से भरे एक स्टॉपडैम नुमा डबरी में तेंदुए का शव झाडिय़ों में फंसा मिला था।



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