‘कापा’ फिल्म समीक्षा: केरला एंटी-सोशलिटी एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट यानी कापा एक विचित्र मलयालम फिल्म है। इस फिल्म का अभिनय बस इतना ही लेना है जितना एक बॉल बॉय का क्रिकेट मैच से। कापा की चर्चा मलयालम फिल्म बाजार में काफी गर्म थी। पृथ्वीराज फिल्म के हीरो थे। केरला कैफे और कुडुवा जैसी फिल्मों का निर्देशन शाजीस कैल का निर्देशन था और मलयाला मनोरमा के सीनियर सब-एडिटर जीआर इंदुगोपन की लिखी कहानी और स्क्रिप्ट पर बनी फिल्म थी। क्राइम का आधार था। पृथ्वीराज है तो Action भी अच्छा होगा। अब जब फिल्म नेटफ्लिक्स रिलीज़ हुई और दर्शकों ने देखा तो उन्हें ठीक ही एहसास हुआ कि खराब पिच की वजह से मैच रद्द हो गया।
कापा की कहानी कुछ खास नहीं है। मधूर कोट्टा (पृथ्वीराज) शहर का बड़ा गुंडा है। उनकी पत्नी प्रमिला (अपर्णा बालमुरली), कलेक्टर के अभियुक्त हैं। उसी समय आनंद (आसिफ अली) और उनकी पत्नी बीनू (एना बेन) नए-नए बैंगलोर आते हैं, जहां आनंद को पुलिस के मार्फत पता चलता है कि उनकी पत्नी का भाई गैंगवार में मारा गया था, क्योंकि उसने मधु को चुनौती दी थी। बीनू के पडोसी लतीफ (दिलीश पोथन) एक अखबार चलाते हैं और अक्सर मधु की खिलाफतें छापते रहते हैं कि क्यों उनका बेटा भी मधु के डर से दुबई में रहता है।
घटनाएं कुछ यूं रंग लाती हैं कि आनंद अपनी पत्नी का नाम कापा सूची से हटाने के लिए शहद की मदद करता है लेकिन असली में शहद को उसी बच्चे के हाथों बम के माध्यम से उड़ाया जाता है जिसका उपयोग कर के शहद शहर का सबसे बड़ा गुंडा बना था। मद्य के मरने के बाद बीनू, प्रमिला को कॉल कर के कहता है कि अब तक तो जो हुआ वो छोटी मोटी बात अब शहर पर बीनू का राज चला। वहीं प्रमिला उसे प्रत्युत्तर देने की धमकी देने वाला कॉल काट देती है। दर्शकों को स्पष्ट करने के उद्देश्य से सीक्वल निश्चित रूप से आएगा।
पृथ्वीराज के कांधे पर सलीब डाल के फिल्म को ड्रैस कहा गया है। वो काफी हद तक लगभग भी होते हैं लेकिन कौन सी फिल्म पृथ्वीराज के लिए बनी हुई थी। पृथ्वीराज की भूमिका पूरी तरह से नकारात्मक है लेकिन फिल्म में ऐसा दिखाई देने वाले दर्शक नाकार देते हैं जिससे थोड़ी मानवता भी जुड़ जाती है। फिल्म में पृथ्वीराज के प्रति कोई भावना नहीं जागती, ना ही उनसे घृणा होती है न ही कोई प्रेम जागता है और न ही किसी तरह की आत्मीयता लगती है। उनकी पहचान से ज्यादा तो आसिफ अली के चरित्र का भ्रम और अपनी पत्नी के लिए दौड़ते हुए धूप में सहानुभूति जाग्रत हो जाती है।
आसिफ और अपर्णा बालमुरली के चरित्र के बीच की केमिस्ट्री अटपटी है। एक ही मुलाक़ात में एक बड़े डॉन की बीवी कैसे एक शख्स की मदद करने को राजी हो जाती है और अंत में उसी शख्स की पत्नी को खत्म करने की साजिश रची जाती है। लेखक ने डाकिया जरूरी नहीं समझा और दर्शकों को इसका हर्जाना पड़ा। दिलीश पोथन का विवरण पता नहीं इतना आधा अधूरा क्यों बनाया गया है। वो पत्रकार है, ऐसे अखबार का मालिक है जिसे कोई पढ़ता नहीं है और वो मध को मारने की कोशिश करता रहता है जो कि विफल ही है। जिस चरित्र से उम्मीद की जा सकती है कि उसे ऐसा क्यों दिया गया।
पिछले कुछ समय से रोहित शेट्टी के साथ काम कर रहे सिनेमेटोग्राफर जोमोन का काम बहुत ही अच्छा है। स्लो मोशन फुटेज में उनका कैमरा वर्क अच्छा नजर आता है और इफेक्ट डालता है। बिना बात का अँधेरा नहीं रखा गया है और विशेष रूप से एक्शन सीक्वेंस में हर सीन के साथ पूरा न्याय किया गया है। इसके अलावा बदलाव करना भी ठीक है। शाजी और पृथ्वीराज की पिछली फिल्म थी कडुवा यानी टाइगर जो मलयालम भाषा में बनी हुई परफेक्ट मैजिक इंटरटेनर की फिल्म थी। कापा में दोनों ही फेल हो गए। फिल्म में मनोरंजन तो है लेकिन कुडुवा की तुलना में आधा भी नहीं है।
विस्तृत रेटिंग
कहानी | : | |
स्क्रिनप्ल | : | |
डायरेक्शन | : | |
संगीत | : |
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पहले प्रकाशित : 14 फरवरी, 2023, 09:30 IST