कबीरधामछत्तीसगढ़पड़ताल

महज 15 माह पहले कवर्धा में मानवता हुयी थी शर्मशार.. बच्चों के परिणाम को लेकर स्कूल करते है अपना गुणगान, लेकिन मापदंड में खुद नहीं है उत्तीर्ण “सुरक्षा और व्यवस्था पर बड़ा सवाल ?” … या है कोई नयी घटना की आहट ?

शासकीय स्कूल से बदतर स्थिति में कई दर्जन निजी स्कूल

जिला शिक्षा विभाग कर रहा नजरअंदाज, छत की जगह टीन शेड और खेलने के लिए न सामग्री और न ही मैदान

UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा जिले में सैकड़ो प्राइवेट स्कूल हैं। इसमें प्रायमरी स्कूलों की हालत बेहद खराब है। वहां पढ़ने के लिए कक्षाएं तो हैं लेकिन स्कूल नहीं। क्योंकि कई दर्जन स्कूल किराए और उधार के भवन में संचालित हो रहे हैं। कई स्कूल तो पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं। छत नहीं है, टीन शेड के सहारे छाया मिलती है। बच्चों के लिए खेल सामग्री है न ही मैदान। वहीं कई स्कूल में ती बैठने के लिए उचित कमरे नहीं हैं। एक ही कमरे दो कक्षाएं संचालित होती है, बावजूद अधिकारी खामोश बैठे हैं। जिले में संस्थानों को सस्थान को निजी स्कूल संचालित करने के पश्चात शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारी निजी स्कूल की ओर मुड़कर भी नहीं देखते। मान्यता कार्यालय में बैठकर दी जाती है।

सुरक्षा के इंतजाम नहीं

अधिकारियों को तो यह भी नहीं पता कि निजी स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक है या नहीं। पढ़ाई होती भी या नहीं। भवन के साथ अन्य सुविधाएं मौजूद है या नहीं। देश के कई प्रायवेट स्कूल में कई घटनाएं हो चुकी है। इसके चलते निजी स्कूल में सुरक्षा के इंतजाम के लिए कड़े निर्देश दिए गए हैं। इसके बाद भी जिले के अधिकतर स्कूल में सुरक्षा की दृष्टिकोण से न गार्ड है और न ही सीसीटीवी कैमरा। बाउंड्रीवाल भी नहीं है।

कभी जांच में निकले अधिकारी तो चले पता

निजी स्कूल की क्या हालत है अधिकारियों को तब पता चले जब वह निरीक्षण पर निकले। जिला प्रशासन द्वारा तो पहले अधिकारियों की क्लास लेनी चाहिए कि वह निजी स्कूल की जांच क्यों नहीं करते।

90 फीसदी स्कूल में डिग्रीधारी शिक्षक नहीं

शासकीय स्कूल में बालक, बालिका और दिव्यांगों के लिए अलग-अलग शौचालय हैं। लेकिन निजी स्कूलों पर दौरा करें तो यह दिखाई ही नहीं देगा। अधिकतर प्रायमरी व मिडिल स्कूल तक बच्चों के लिए एक ही शौचालय हैं। इस पर अधिकारियों की नजर ही नहीं है। 90 फीसदी स्कूल में जो टीचर हैं वह प्रशिक्षित और डिग्रीधारी नहीं है। प्राथमिक की कक्षाओं के बाद तो बीएड, डीएड टीचर होने चाहिए, लेकिन अधिकतर निजी स्कूल में 12वीं पास, स्नातक में अध्ययनरत विद्यार्थी ही बच्चों को अध्यापन करा रहे हैं। वहीं उन्हें प्रशिक्षण के लिए भी नहीं भेजा जाता।

जरा सोचिये कवर्धा में 15 माह पहले हुयी घटना ने सबको हिला कर रख दिया था…  आज भी जिम्मेदार अधिकारी सुप्प्तावस्था में है ..

ऐसे में आपके बच्चे कितने सुरक्षित हैं ??

 


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