<पी शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"झारखंड समाचार: ऐतिहासिक उर्दू पुस्तकालय पर असामाजिक तत्वों ने कब्जा कर लिया है। अंग्रेजी हुकूमत में कुछ बुद्धिजीवियों ने उरु के प्रचार प्रसार या कहा कि उरु को जाबन की वजह के लिए उरु पुस्तकालय की स्थापना की थी। 1945 में स्थापित उर्दू पुस्तकालय आज कपड़ों के दस्तावेजों में जाम हो गया है। वली मोहम्मद के वंशज काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि हमारे फोटो ने बच्चों के जीवंत भविष्य की मंशा से उर्दू लाइब्रेरी की बुनियाद रखी थी। अब एकमात्र परिणाम सामने आ रहा है।
<p style="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"असामाजिक तत्वों ने उर्दू पुस्तकालय पर जमाया कब्जा
अवैध कब्जा हटाने के लिए पंचायत भी बुलाई गई थी। मगर का कोई हल नहीं निकला। कुछ लोग अब पैसे कमाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब प्रशासन की मदद लेने की सोची है। हमारी मांग सिर्फ इतनी है कि पुस्तकालय का सही इस्तेमाल हो सके।
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<p स्टाइल="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"अलमारियों में दम तोड़ते नामी शायरों की किताबें
वली मोहम्मद के बेटे हदीबवाले मोहम्मद ने कहा कि आज हमें हमारे सपने टूटता नजर आ रहा है। उन्होंने एबीपी न्यूज को बताया कि सन 1946 को उर्दू पुस्तकालय का बाइलॉज बना था। उनके पिता ने किताबों की खरीद पर 5000 रुपए खर्च किए थे। उर्दू पुस्तकालय में नामचीन शायरों जैसे मीर तकी मीर, मिर्जा गालिब, अल्लामा इकबाल की पुस्तकें उपलब्ध कराई गईं।
बच्चों की बड़ी तादाद नामचीन शायरों की किताबें पढ़ने आया था। लोगों की मांग पर अखबार भी मांगवाना शुरू किया गया। लोग रोज़ उर्दू पुस्तकालय में अखबार थे। पिछले 10 सालों से माहौल बिल्कुल बदल गया है। अवैध कब्जे वाले बच्चों को प्रभावित कर पुस्तकालय से वायस करते हैं। पुस्तकालय की पाठक में मौजूद पुस्तकें दम तोड़ती नजर आ रही हैं।
<p style="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"झारखंड सरहुल महोत्सव: झारखंड झारखंड में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है सरहुल, जानिए क्यों मनाया जाता है ये त्योहार