
इसके अलावा सवाल यह भी उठाये जा रहे हैं कि क्यों ब्रिटिश शासन की तरह आज भी हमारी अदालतों में लंबी लंबी छुट्टियां होती हैं? देश में एक तरफ की अदालतों पर काम का भारी बोझ है लेकिन आप सुप्रीम कोर्ट का होलीडे कैलेंडर देखते हैं तो चौंक जाएंगे।
नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम जन गण मन में आप सभी का स्वागत है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली को मंजूरी देकर ऐतिहासिक निर्णय लिया है क्योंकि यह देखने में आता है कि विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से अपनी हार की कुंठा में चुनाव आयोग पर निशाना साधा जाता है है। अब प्रधानमंत्री, दशक में निर्णय के नेता और भारत की मुख्य न्यायाधीश समिति की सलाह पर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति होने से चुनाव आयोग जैसी संस्था और पात्रता होगी। प्रत्यक्ष यह एक बड़ा काम हुआ है, लेकिन अब एक और अस्पष्ट काम को लेकर पहुंच शुरू हो गए हैं। खासकर देश में यह बात बढ़ती जा रही है कि क्यों नहीं उच्च और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का चयन करने वाले कॉलेजियम में सरकार का प्रतिनिधि हो? मांग यह भी हो रही है कि जज का इलेक्शन कॉलेजियम के बजाय फुल कोर्ट करें।
इसके अलावा सवाल यह भी उठाये जा रहे हैं कि क्यों ब्रिटिश शासन की तरह आज भी हमारी अदालतों में लंबी लंबी छुट्टियां होती हैं? देश में एक तरफ की अदालतों पर काम का भारी बोझ है लेकिन आप सुप्रीम कोर्ट का होलीडे कैलेंडर देखते हैं तो चौंक जाएंगे। आप चाहे होली पर एक या दो दिन की छुट्टी मना कर दें लेकिन सुप्रीम कोर्ट में होली के एक हफ्ते की छुट्टी है। एक पात्र दिया जा रहा है कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में साल भर में सप्ताहांत के अलावा सिर्फ 11 छुटि्टयां होंगी लेकिन भारतीय सुप्रीम कोर्ट साल भर में 100 दिन बंद रहेगा। यह स्थिति तब है जब अदालतों से लेकर ऊपरी अदालतों तक लगभग 4.9 करोड़ के मुकदमे दायर हैं। भारत में यह स्थिति है कि अगर एक जज दिन में 100 मामले जड़ता है तो 200 नए मामले आ जाते हैं।
जहां तक कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधि होने की मांग से संबंधित बात है तो हम आपको बताते हैं कि केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था और मांग की थी कि उच्च और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का चयन करने वाले कॉलेजियम में सरकार का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए। कुछ न्यायविद् इसे एनजेएसी अधिनियम की वापसी बताते हैं तो उसी समय सरकार से जुड़े लोगों का कहना है कि हमने कोई गैर-अपेक्षित मांग नहीं की है क्योंकि पूरी दुनिया में ऐसा ही होता है। कानून मंत्री का यह भी मानना है कि कॉलेजियम प्रणाली में सरकार के प्रतिनिधि होने से इसमें अधिष्ठाता और सार्वजनिक प्रतिष्ठान भी शामिल होंगे।
देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली पर विवाद का नाम नहीं लिया जा रहा है। हाल ही में केंद्रीय कानून के बयान के बाद कुछ पूर्व न्यायाधीशों ने भी इस मुद्दे पर दिए गए दावों को न्यायालय ने नाखुशी भी बताया था। लेकिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जिस तरह एनजेएसी अधिनियम को हाल ही में रद्द कर दिया है, संसद में चर्चा नहीं हो रही है, उससे अंदेशा हो गया था कि सरकार कोई कदम उठा सकती है। केंद्रीय कानून मंत्री ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कॉलेजियम में सरकार का प्रतिनिधित्व रखने की जो मांग की उससे स्पष्ट हो गया कि सरकार न्यायाधीशों के चयन के मुद्दों को सिर्फ कॉलेजियम के भरोसे में भर्ती को तैयार नहीं है। हम आपको याद दिलाते हैं कि 2015-16 में संसद ने एनजेएसी कॉलेजियम प्रणाली को पलटने का प्रस्ताव दिया था, हालांकि उच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक फैसले को रद्द कर दिया था।
न्यायपालिका और सरकार के बीच कॉलेजियम प्रणाली पर उस समय भी सामने आएं थे जब हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केशवानंद भारती मामले में अदालत के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया था, जिसमें कहा गया था कि न्यायपालिका, संसद की संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकता। उल्लेखनीय है कि उस निर्णय ने देश को ‘संविधान के सिद्धांतों का सिद्धांत’ दिया था। धनखड़ ने जयपुर में शैक्षणिक अधिकारियों के सम्मेलन को संदेश देते हुए राष्ट्रीय निर्धारण निर्धारण आयोग अधिनियम को रद्द किया जाने पर एक बार फिर सवाल किया गया था कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए स्वायत्तता और स्वायत्तता सर्वोपरि है।
इसके अलावा, न्यायपालिका और सरकार के बीच सूचनाओं की खबरों के बीच, केंद्रीय कानून मंत्री ने हाल ही में एक टीवी समाचार चैनल पर साक्षात्कार के दौरान न्यायपालिका पर हमलों के झूठ के बारे में पूछा था कि मोदी जी के पिछले आठ वर्षों में के शासन में एक उदाहरण बताएं, जब हमने न्यायपालिका के अधिकारों को कम करने की कोशिश की या उसे दिखाने की कोशिश की? उनका कहना था कि मैंने जूडिशरी के बारे में जो कुछ भी कहा है, वह सिर्फ एक प्रतिक्रिया है। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि सरकार अनिवार्य है, तो लोकतंत्र में मेरे लिए जवाब देना जरूरी है। उन्होंने कहा था कि हम फाइल लेकर ऐसे ही बैठे नहीं हैं, बल्कि प्रक्रिया के तहत जो काम करना चाहिए, वह कर रहे हैं। रिजिजू ने कहा था कि कोर्ट को भी डाक भेजा जाना चाहिए कि कोई ऐसी बात न कहे जिससे लोगों में गलत संदेश जाए। उनका कहना था कि अपनी बात अगर मैं सही तरीके से कहता हूं, तो उस पर हमला नहीं होना चाहिए। जूडिशरी को हम सब मान्यता देते हैं और भारत का लोकतंत्र अगर कोई विवाद चल रहा है तो उसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि भारत की न्याय प्रणाली मजबूत है। उनका कहना था कि हमारे बीच में एक लक्ष्मण रेखा है। यह हमें अपने संविधान से प्राप्त हुआ है। इस लक्ष्मण रेखा को कोई पार न करें, इसी में देश की कमी है।
वहीं दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और भारत के पीक मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय का कॉलेजियम मुद्दे पर कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में 34 जज हैं लेकिन किससे जज कर रहे हैं, यह फैसला केवल 5 जज करते हैं। उनका कहना है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में 160 जज हैं लेकिन किस जज से फैसला लेते हैं, यह फैसला सिर्फ 3 जज करते हैं। उन्होंने कहा कि जज का चुनाव 3 या 5 जज के कॉलेजों के बजाय फुल कोर्ट को दिया जाना चाहिए।
बहरहाल, यह भी एक तथ्य है कि भारत में जज ओवरटाइम काम भी करते हैं। भारत के जजों जितनी कड़ी मेहनत दुनिया में कोई भी जज नहीं करता है। भारत में एक जज औसत 100 मामले करता है, जबकि अमेरिका में एक जज केवल एक केस का सब्सट्रेट करता है। आमतौर पर एक भारतीय जज प्रतिदिन 50 से 60 मामलों को देखता है। अदालतों में सुविधाओं और संसाधनों की भी भारी कमी है जिसे दूर करने के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है जब तक सुविधाओं और संसाधनों में वृद्धि होगी तब तक मामलों का नया अंबार लग जाएगा।
-नीरज कुमार दुबे
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