जो लोग सवाल उठा रहे हैं कि नई संसद की क्या जरूरत थी, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें हमेशा गुलामी का दर्जा प्राप्त है। ऐसे लोगों ने अपने कार्यकाल में कुछ नहीं किया और अब वह दूसरों को भी कुछ नहीं करना चाहते।
वैसे तो आपने अक्सर सुना होगा कि संसद में भारी फैसला हुआ है लेकिन अभी संसद के नए भवन का उद्घाटन भी नहीं हुआ है कि भारी सख्ती शुरू हो गई है। किसी भी संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करने का दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय कर देश के उत्साह से जुड़े रंग में उसे भंग कर दिया जाता है जिससे उसका हर भारतीय स्तम्भ है। देखा जाए तो लोकतंत्र की सुंदरता इसी में है कि सभी राजनीतिक दल किसी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसर पर एक साथ खड़े हों लेकिन संबंधित ने अपने आचरण से एक बार फिर लोकतंत्र का अनादर किया। आधिकारिक डाकिया को जिस तरह उसने राष्ट्र के एक बड़े दावे का बहिष्कार किया है यदि आप देखते हुए जनता आगामी चुनावों में इन पार्टियों का बहिष्कार करेंगे तो उन नेताओं का क्या होगा जो 28 मई के बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं का मन दुखाया है।
उठाने वालों से कुछ सवाल
जो लोग सवाल उठा रहे हैं कि नई संसद की क्या जरूरत थी, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें हमेशा गुलामी का दर्जा प्राप्त है। ऐसे लोगों ने अपने कार्यकाल में कुछ नहीं किया और अब वह दूसरों को भी कुछ नहीं करना चाहते। ऐसे लोगों को हम बताते हैं कि लोकतंत्र की जननी भारत के संसद भवन की कार्यवाही को देखने के लिए देश-दुनिया के लोग सीधे आते हैं। वह जब देखते हैं कि संसद भवन की दीवारें टूट रही हैं, कहीं पानी गिर रहा है तो कहीं कोई परेशानी है तो सोचिये हमारी मजबूत छवि के बारे में क्या संदेश जाएगा। यही नहीं, कुछ साल पहले इस तरह की भी खबर थी कि 26 जनवरी की परेड से पहले जब राष्ट्रपति की ओर से तिरंगा फहराये जाने के बाद सामूहिक राष्ट्रगान का जमावड़ा होता है तब तोपदा जाने से जो कंपनियां संसद भवन की दोषियों से कहती हैं नुकसान पहुंच सकता है। यही नहीं, अभी हाल ही में कोरोना महामारी के दौरान जब हमने देखा कि सीमित स्थान की वजह से सामाजिक गड़बड़ी की चेतावनी का पालन नहीं हो सकता था तो दो पालियों में दोनों घरों की कार्यवाही संचालित की गई थी। इसके अलावा, कांग्रेस नेत्री मीरा कुमार जब 16 अक्टूबर को अध्यक्ष थीं तब उन्होंने ही सबसे पहले नए संसद भवन की आवश्यकता को रेखांकित किया था और इस संबंध में केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को एक पत्र लिखा था।
संबंधित चाहता है क्या है?
दूसरी ओर, उन सभी ने अपने बहिष्करण के संदर्भ में, जो उन्हें दिए गए कारणों से जायज नहीं ठहराया जा सकता। सरकार का विरोध करना है तो फ्रैंक करिये लेकिन जब देश के लिए कुछ बड़ा होने वाला है तो देश के साथ खड़ा होना चाहिए। देश के साथ खड़ा होने से यह संदेश नहीं जाता कि कोई विपक्षी दल सरकार के साथ खड़ा है। यही नहीं, उन सभी की दुर्भाग्यपूर्ण हरकत के बारे में जब आना पीढ़ियां पढ़ेंगी और जानेंगी तो यकीनन वह भी ऐसे नेताओं को कोसेंगी ही। कोई भी बात लोकतंत्र की होती है, लेकिन उसका आचरण लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था में उसकी आस्था नहीं है। राष्ट्र के महत्वपूर्ण अवसरों पर देश के साथ नहीं होना, मन-मुताबिक न्यायिक निर्णय पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करना और संवैधानिक पहल के खिलाफ अमर्यादित पहल करना अब एक रिश्ते की शुमार हो गई है।
किसी भी वित्तीय नुकसान के कारण बताएं?
जहां तक संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम से बहिष्कार के कारणों की बात है तो आपको बता दें कि निर्णय के 19 दलों ने संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह का सामूहिक रूप से बहिष्कार करने का घोषणा करने का आरोप लगाया है कि इस सरकार के कार्यकाल में संसद से लोकतंत्र की आत्मा को खारिज कर दिया गया है और समारोह से राष्ट्रपति को दूर रखना ‘अशोभनीय कार्य’ एवं लोकतंत्र पर सीधा हमला है। निर्धारक 19 दल जहां संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से नहीं करने जा रहे हैं, उसका विरोध कर रहे हैं तो दूसरी ओर एमआईएम के प्रमुख के रूप में दुदीन ओवैसी का कहना है कि राष्ट्रपति को नहीं बल्कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को नए संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए। उद्रर, सरकार ने इस फैसले को लेकर दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा है कि विरोधियों को अपने इस फैसले पर रुकना चाहिए। सरकार का कहना है कि लोकसभा अध्यक्ष संसद के संरक्षक हैं और वे ही प्रधानमंत्री को संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित करते हैं।
कांग्रेस जरा अपने गिरेबां में झांके
संसद के नए भवन का उद्घाटन करने वाले राष्ट्रपति की खुली सलाह देने वाले कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि उनके कार्यकाल के दौरान प्रधान मंत्रियों ने अपनी कितनी संभावना परियोजना का उद्घाटन राष्ट्रपति से खुलासा किया था? दरअसल, नए संसद भवन के उद्घाटन अध्यक्ष से कांग्रेस की कोशिश है कि किसी तरह नरेंद्र मोदी का नया इतिहास रचने से रोक दिया जाए। कांग्रेस को पता चला है कि जब आने वाले लोग नए संसद भवन का इतिहास जानेंगे और जब उन्हें नए संसद भवन के द्वार पर यह लिखा जाएगा कि यह परियोजना मोदी सरकार के कार्यकाल में बनी और पूरी तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने की थी तो उनके मन में सवाल उठेगा ही कि कांग्रेस ने दशकों के राज में देश को क्या दिया? सवाल उठेगा ही कि कांग्रेस के राज में गुलामी के बादशाही पर गर्व क्यों किया गया?
शुरुआत से अटके अटके हुए हैं
निर्धारक यह भी कहते हैं कि राष्ट्रपति न केवल राष्ट्राध्यक्ष होते हैं, बल्कि वे संसद के अधिशासी निकाय भी होते हैं क्योंकि वही संसद उनका अनादर करती है और वर्षों के पहले सत्र के दौरान दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को भी परामर्श देती है। हैं। संक्षेप में, राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकता है। फिर भी, प्रधानमंत्री ने अपने बिना नए संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया है। लेकिन यहां भी सभी को यह संभावना होगी कि सरकार की सलाह पर ही राष्ट्रपति संसद फैसला करने या सत्र अवसान करने का फैसला लेती है। साल की शुरुआत में राष्ट्रपति का जो अभिभाषण होता है वह भी सरकार की उपलब्धियां और देश के शनिवार का वर्णन होता है। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि राष्ट्रपति प्रमुख संवैधानिक हैं, लेकिन प्रधानमंत्री लोकतंत्र का प्रतीक होते हैं और जब लोकतंत्र के मंदिर का उद्घाटन होता है, तो यह प्रधानमंत्री से ही बेहतर होगा कि हर पांच साल में अपने कामकाज का रिपोर्ट कार्ड जनता के विशिष्ट प्रधानमंत्री को ही होता है। मजदूर देश को नया संसद भवन देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अदालत में कई बार विवाद किया और निर्णय की ओर से समय-समय पर बाधाओं को जाने वाली बाधाओं पर विजय पाई उसे देखते हुए नए संसद भवन का उद्घाटन करने का पहला हक सिर्फ प्रधानमंत्री का ही बनता है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के विरोध में जैसे तर्कों की ओर से बड़े-बड़े दावेदार कहते थे कि कई बार देश को लगता था कि नए संसद भवन का इंतजार होगा लेकिन जब मोदी किसी संकल्प को सिद्ध करने का प्रण लेते हैं तो उसे पूरा करके रहो। यहां सवाल यह भी उठता है कि किस प्रोजेक्ट को रोकने के लिए हर तरह का प्रयास करने के लिए उन्हें खोलने को लेकर कोई सुझाव देने का नैतिक हक है?
कांग्रेस की सलाह की असल मंशा क्या है?
दूसरी ओर, राष्ट्रपति से नए संसद भवन के उद्घाटन की सिफारिश कांग्रेस ने इसलिए नहीं दी है कि देश के संवैधानिक प्रमुख के लिए उनके मन में बहुत सम्मान है। विशेष राष्ट्रपति की आड़ लेकर विरोध की राजनीति कर रहा है। देश को कांग्रेस नेताओं के वह अमर्यादित जमात याद हैं जो उन्होंने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाने के लिए जाने पर और उनके मतदाताओं के बाद दिए थे। कांग्रेस यदि राष्ट्रपति और संविधान का बहुत सम्मान करती है तो उन्हें बताना है कि साल 2021 में संसद के सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा संबोधित किए जाने वाले संविधान दिवस समारोह का बहिष्कार क्यों किया गया था? कांग्रेस के अलावा जो अन्य दल नए संसद भवन के राष्ट्रपति पद का चुनाव करने की सलाह देते हुए मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वह देश के संवैधानिक प्रमुखों के प्रति सम्मान जता रहे हैं कि वह दल बताएं कि उन्हें इस साल संसद का बजट क्यों मिला सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया था?
लोकतंत्र के मंदिर के नए भवन से खुश है जनता
बहरहाल, देखा जाए तो संसद का नया भवन नया भारत की नई उम्मीदों का केंद्र बनने वाला है। यह वक्त देश की एकता के साथ भारत में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन की नई इमारत के उद्घाटन अवसरों को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना है। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। वैसे भी नेता चाहे राजनीतिक कारणों से अपना अपना राग अलाप रहे हों लेकिन जनता संसद के नए भवन को लेकर काफी प्रसन्न है। जहां एक तरफ देश का हर आम से लेकर खास नागरिक इस बात को लेकर उत्सुक है कि नई संसद दिखती है तो वहीं वह इस बात को लेकर खुश भी है कि यह हमारी अपनी बनाई हुई संसद है जिसमें भारत की संस्कृति, कला, इतिहास और विज्ञानियों की झलक देखें। आम आदमी इस बात को लेकर खुश है कि नई संसद के भवनों के निर्माण में कार्यस्थलों के प्रधानमंत्री सम्मान करेंगे और इस भवन के इतिहास में उनका नाम भी खुल जाएगा। देश इस बात को लेकर भी प्रसन्न है कि ब्रिटिश हुकुमत द्वारा भारत को अधिनायक दिया गया सत्ता के प्रतीक ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। भारत के नए और आधुनिक संसद भवन को प्राचीन बेरोजगारों और भारत के गौरवशाली इतिहास से जोड़ कर आधुनिकता और संसदीयता का समावेश हुआ है, उनकी जनता दिल खोलकर स्वागत कर रही है।
-नीरज कुमार दुबे