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बाल यौन शोषण का नया जरिया बना इंटरनेट, अश्लील सामग्री…तस्करी का भी जोखिम, POCSO एक्ट में क्या बदलाव होगा?

नई दिल्ली: ऑनलाइन बाल यौन शोषण और अधिभोग (OCSEA) के मामले देश में तेजी से हैं, विशेषकर कोरोनाकाल के दौरान। समाज में इस तरह के पहल का विस्तार धीरे-धीरे गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस जमाने के छोटे-दादा बच्चे भी इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा-चढ़कर करने लगे हैं। बच्चों की इंटरनेट एक्टिविटी बढ़ने से एक नया खतरा भी सामने आया है। अपराध को अंजाम देने की नीयत से अपराधी इंटरनेट पर भी सक्रिय रहते हैं। बच्चों को इस तरह के अपराधी कैसे बचाए जा सकते हैं, इस पर हाल ही में एक रिसर्च रिपोर्ट सामने आई है, जो चौंकाने वाली है। बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) और पुणे की चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (CNLU) ने संयुक्त रूप से इस मसले पर अध्ययन किया है। यह लैंगिक अपराध अधिनियम, 2012 से बच्चों की सुरक्षा पॉक्सो वाइल्यूशन को लागू होने के 10 साल पूरे होने के उप लक्ष्य में किया गया है, जिसका शीर्षक है ‘पॉक्सो एंड बियॉन्ड: अंडरस्टैंडिंग ऑन ऑनलाइन वर्क इश्यू’।

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अध्ययनों के लिए क्राई और सीएनएलयू के सूत्रों ने एक सर्वे किया, जिसमें 424 फैट ने शिरकत की। इनमें से 33 फाइबर्स का मानना ​​है कि डायरेक्ट सर्फिंग के दौरान इंटरनेट पर अपने बच्चों से संपर्क करने की कोशिश की। उन्होंने बच्चों से दोस्ती करने की कोशिश की और उनकी निजी और परिवार की जानकारी भी खींची। जांच ने बताया कि इशारे ने बच्चों को सेक्स से संबंधित जानकारी भी दी और अश्लील सामग्री भी साझा की। इस सर्वे में महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के 384 शिक्षकों के अलावा 424 जुड़े और तीन राज्यों (पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र) के 107 लोगों ने भी हिस्सा लिया। सर्वे में शामिल के मुताबिक ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार होने वाले बच्चों में 40% लड़कियां थीं। इनकी उम्र 14 से 18 साल के बीच थी। वहीं ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार होने वाले इस उम्र के लड़कों की तदाद 33 प्रतिशत रही है।

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नाबालिग राइट्स एंड यू (CRY) और पुणे की चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (CNLU) के संयुक्त अध्ययन के अनुसार जिन बच्चों को ऑनलाइन बाल यौन शोषण और अधेड़ (OCSEA) का शिकार होना पड़ा है, उनमें से शहरों की तुलना में ग्रामीण बच्चों की तादाद ज्यादा है . सर्वे के दौरान यह पूछा गया कि अगर उनके बच्चे को ऑनलाइन यौन उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा तो वे क्या करेंगे? इस सवाल के जवाब में सिर्फ 30 फीसदी ने कहा कि वे पुलिस में शिकायत दर्ज कराएंगे, जबकि 70 फीसदी ने पुलिस स्टेशन जाने की बात को खारिज कर दिया। सर्वे में शामिल होने से केवल 16 प्रतिशत बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न होने पर ली जाने वाली कानूनी मदद की जानकारी थी। अध्ययन में ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार होने वाले बच्चों में 2 संकेत सबसे ज्यादा मिले। ऐसे में ज्यादातर बच्चे (26 प्रतिशत) बिना किसी कारण के लगातार स्कूल से घिरे रहते हैं। कुछ मामलों में पाया गया कि पीड़ित बच्चों (20.9 प्रतिशत) ने स्कूल में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

बच्चे तस्कर के लिए भी कर रहे हैं इंटरनेट का इस्तेमाल-रिपोर्ट
इसका विश्लेषण यह विवरण देता है कि कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के दौरान स्कूलों में लंबे समय तक रहने और ऑनलाइन शिक्षा के चलन में आने से बच्चों की इंटरनेट तक आसान पहुंच मिलती है और वे सोशल मीडिया का अनियंत्रित उपयोग करते हैं। इससे ऑनलाइन अपराधियों के लिए बच्चों की व्यक्तिगत डिटेल प्राप्त करना और उन्हें आसानी से हो गया। इस खोज में यह बात भी सामने आई है कि भारत में किशोरों द्वारा तस्करों के लिए भी इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा रहा है। अपराधी कम उम्र के बच्चों को निशाना बनाते हैं। क्राई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पूजा मारवाह ने कहा, ‘ठीक इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए अध्ययन में कोविड महामारी की शुरुआत से अभी तक की अवधि में बाल यौन शोषण में बदलाव को ऑनलाइन मोड में ट्रैक करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।’ CRY के कवरेज डायरेक्टर सोहा मोइत्रा ने इन घटनाओं के लिए स्ट्रेस का फिर से मूल्यांकन करने की आवश्यकता बताई।

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अध्ययन में माता-पिता से लेकर 58 वर्षीय ने बताया कि वे अपने बच्चों द्वारा देखे जाने वाले ऑनलाइन सामग्री से अवगत थे, जबकि 40 प्रतिशत को इसके बारे में पता नहीं था। 44 प्रतिशत माता-पिता ने जवाब दिया कि वे अपने बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का उपयोग करने और ऑनलाइन काम करने के बारे में आशंकित थे। अध्ययन के अनुसार शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन बाल यौन शोषण और आरोपित की किसी भी घटना के बारे में कुल 497 घटनाओं की जानकारी दी गई थी, जिसमें बदमाशी, यौन सामग्री साझा करना, अनावश्यक या अश्लीलता आदि शामिल थे। अधिकांश मामले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (27 प्रतिशत) और व्यक्तिगत फोन नंबर (26 प्रतिशत) पर हुए, इसके बाद ऑनलाइन आवेदन के दौरान ऐसे 11 प्रतिशत मामले, स्कूल द्वारा बनाए गए अधिकृत वाट्सऐप लाइव में 21 प्रतिशत और स्कूल के छात्रों के बीच चैट रूम में 15 प्रतिशत मामला सामने आया।

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बाल यौन शोषण को रोकने के लिए पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता- सोहा मोइत्रा
CRY के कवरेज डायरेक्टर सोहा मोइत्रा ने कहा, ‘यह शोध में पाया गया है कि इंटरनेट का उपयोग भारत में बच्चों के लिए तस्कर के लिए किया जा रहा है। अब, तस्करों में इंटरनेट के उपयोग के साथ, विशेष रूप से छोटे बच्चों के बीच, जैसा कि इस अध्ययन में संकेत दिया गया है, प्रकृति का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता हो सकती है। आईटी अधिनियम और व्यापार रोकथाम अधिनियम, 1956 के तहत प्रावधान विशेष रूप से बच्चों के बारे में बात नहीं करते हैं, लेकिन प्रकृति में सामान्य हैं और इसलिए बच्चों के मामले में भी लागू होते हैं। कई पॉक्सो अपराधी तस्कर होने के कारण या उसके परिणामस्वरूप हो जाते हैं। आईपीसी और पॉक्सो के तहत ओसीसी ईए फ़ोर्स की शर्तों में इस तरह के अंतर्संबंधों के साथ स्पष्ट रूप से जुड़ाव की आवश्यकता है।’

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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