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चाइल्डहुड कैंसर एक बहुत बड़ी समस्या है। बचपन में होने वाला कैंसर जितना पीड़ित बच्चे के लिए घातक होता है, उतना ही उनके मां-बाप के लिए भी। चाइल्डहुड कैंसर (बचपन का कैंसर) बच्चों की मौत का नौवां सबसे बड़ा कारण है।
वहीं नेटवर्क (WHO) द्वारा 2021 में प्रकाशित डेटा के अनुसार उच्च आय वाले देशों में लगभग 80% तक कैंसर से पीड़ित बच्चों की जान बच गई है। वहीं लो और मिडल इनकम वाले देशों में 30% से भी कम बच्चों की जान बची है। ऐसे में भारत के लिए यह एक बड़ी चिंता का विषय है। ऐसे में चाइल्डहुड कैंसर डे (इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर डे) के मौके पर आज सेल्फीशॉट के साथ जानेंगे भारत में क्या है बचपन कैंसर की स्थिति, साथ ही इसके कारण, लक्षण और इससे बचाव के कुछ महत्वपूर्ण उपाय।
इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर डे (इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर डे)
हर साल 15 फरवरी को इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हॉस्पिटल, स्कूल, कॉलेज, एनजीओ और अन्य वर्कशॉप में तरह-तरह के कैंपेन और प्रोग्राम के जरिए बच्चों में होने वाले जानलेवा कैंसर के जोखिम, कारण और उपाय को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाती है।
इसके साथ ही इस दिन कैंसर से पीड़ित बच्चे और उनके पेरेंट्स के लिए अलग-अलग तरह के पेज बनाए जाते हैं। साथ ही कई एनजीओ है जो बच्चाहुड कैंसर के इलाज को बढ़ावा देने के लिए फंड संघ करते हैं और इसे प्रविष्टियां तक पहुंचाते हैं।
इस दिन का खास मकसद लोगों को कैंसर के कारणों के बारे में जागरुक करना है। ताकि इन कारणों से लाइव कंट्रोल पोजीशन लाखों बच्चों की जान बचाई जा सके। बच्चों को इसके प्रति जागरूक होने के साथ-साथ मां-बाप को भी इस बारे में अधिक जीवित रहने की आवश्यकता है।
बच्चों में कैंसर के बढ़ते आंकड़े देखते हुए रूबी हॉल क्लिनिक की पीडियाट्रिक, हेमेट एसोसिएट्स, ऑन्क एसोसिएट्स डॉक्टर लीजा बुलसारा से बातचीत की। उन्होंने इससे जुड़ी कई अहम जानकारियां दी हैं। तो जानिए, क्या है बच्चों का बढ़ना कैंसर के प्रमुख कारणों के साथ ही जाने इससे बचाव के कुछ महत्वपूर्ण उपाय।
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पहले जानें बच्चों में होने वाले कुछ आम कैंसर के बारे में (बच्चों में होने वाला सामान्य कैंसर)
बच्चों में होने वाला सबसे आम कैंसर (ल्यूकेमिया) है। यह एक तरह का ब्लड कैंसर है। इसके बाद बच्चों में ब्रेन कैंसर होने का खतरा सबसे अधिक होता है। इस स्थिति में बच्चों के दिमाग में ट्यूमर हो जाता है। इसके अलावा दिमाग के अलग-अलग अलग-अलग प्रकार के कैंसर की संभावना भी बनी रहती है।
इसके बाद बच्चों में सबसे आम कैंसर “लिंफोमा” (लिम्फोमा) होता है जिसे गर्दन का कैंसर कहते हैं। यह बच्चों में तीसरा सबसे आम कैंसर है।
उसके बाद न्यूरोब्लास्टोमा यानी किडनी के ऊपर के हिस्से में स्थिर एड्रिनल ग्लैंड में होने वाला कैंसर, रेटिनोब्लास्टोमा यानी आंखों का कैंसर और हड्डियों के कैंसर भी आम तौर पर देखते हैं।
जानिए क्या हैं अल्पहुड कैंसर के कारण (बचपन के कैंसर के कारण)
दूषित, भोजन में मिलावट, जंक फूड का अधिक सेवन, कम उम्र से सिगरेट पीने की आदत या पैसिव स्मोकिंग का शिकार होना, डाउन सिंड्रोम, लाइफस्टाइल हैंग बच्चों में बढ़ते रहे कैंसर के कुछ सामान्य और प्रमुख कारण हैं।
वहीं केमिकल, कीटनाशक, फर्टिलाइजर और प्लास्टिक के संपर्क में आने से भी बच्चों में कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। यह सभी चीजें जेनेटिक म्यूटेशन का कारण बनती हैं, जिसकी वजह से शरीर में मल्टीपल सेल डिवीजन होने लगता है और यह कैंसर का कारण बनता है। वहीं महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर जेनेटिक भी हो सकता है, लेकिन आमतौर पर कैंसर जेनेटिक नहीं होते हैं। कई वैज्ञानिक शोधों के बाद भी बच्चों में जोखिम वाले कैंसर के कारणों पर अभी और अध्ययन की आवश्यकता है।
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अब जानिए बच्चों में कैंसर होने पर नजर आने वाले कुछ शुरुआती लक्षणों के बारे में (बचपन के कैंसर के लक्षण)
डॉक्टर लीजा के अनुसार यदि बच्चों में कैंसर के लक्षणों का पता शुरू में ही लग जाए और समय पर इसका इलाज शुरू हो जाए तो बच्चों की जान बचाई जा सकती है। शुरुआती लक्षणों में शामिल हैं :
1. बिना संक्रमण के यदि 1-2 सप्ताह से अधिक समय तक बुखार बना रहे।
2. हड्डियों एवं कमर में दर्द रहना।
3. पेट, गर्दन और हड्डियों में दर्द अनुपयोगी सूजन।
4. बेवजह वजन घटाना।
5. नील पड़ना/नाक से खून आना।
6. आंख और शरीर का पीला पड़ना।
7. किसी भी चीज को एकटक ध्यान से देखने की कोशिश करना।
8. पुतली यानी कि आंखों के फलाव में सफेद रंग नजर आता है।
9. ब्रेन ट्यूमर में बार-बार सिरदर्द महसूस होना। वहीं उल्टी या चक्कर आना।
डॉक्टर बता रहे हैं रोकथाम और उपचार के लिए पेरेंट्स को किन बातों का ध्यान रखना है
हर मां को गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में फॉलिक एसिड दिया जाना चाहिए।
यह जरूरी है कि हर मां अपने बच्चों को ब्रेस्टफीड करवाएं।
बच्चों को सही समय पर और सही वैक्सीन लगवाना नहीं भूलें।
जरूरत से ज्यादा सूरज की खतरे के संपर्क में न जाने दें।
एक उचित समय के बाद मेडिकल चेकअप करवाते रहना जरूरी है।
बचपन में बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करें।
बच्चों के आस-पास एक सुरक्षित माहौल बनाए रखें। साथ ही साथ घर का माहौल भी खुशनुमा रखने की कोशिश करें।
प्रेग्नेंसी के दौरान स्मोकिंग और फीलिंग्स से दूरी बनाए रखें। यह केवल मां नहीं बल्कि दोनों माता-पिता की जिम्मेदारी है।
बच्चे के आसपास धूम्रपान न करें और उन्हें धूम्रपान का शिकार न बनने दें।
ट्रैफिक में होने वाले वायु प्रदूषण से बच्चों को उतना ही महत्व देने की कोशिश करें।
प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले मेडिकल टेस्ट में रेडिएशन से उतना ही ज्यादा महत्व की कोशिश करें।
पारिवारिक इतिहास की जानकारी होना बहुत जरूरी है। यदि किसी प्रकार की समस्या हो रही है तो गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर से बात करें।
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