
15 अगस्त 1973 की सुबह। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लाल किले के सामने पहुंचीं। उनके पास क्रेन के जरिए एक टाइम कैप्सूल लाया गया और एक 32 फीट गहरे गड्ढे में दबा दिया गया। इंदिरा का कहना था कि इसमें आजादी के बाद देश की 25 साल की उपलब्धियां लिखी हैं। वहीं, विरोधियों ने कहा इसमें सिर्फ नेहरू-इंदिरा परिवार का महिमामंडन है।

हजारों सालों के लिए दफनाया गया ये टाइम कैप्सूल महज 4 साल बाद ही खोदकर बाहर निकलवा लिया गया। इसे बाहर निकालने का आदेश दिया था भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने।
भारत भाग्य विधाता “the political chair” के चौथे एपिसोड में मोरारजी देसाई के किस्से। दो बार मात खाने के बाद आखिरकार वो प्रधानमंत्री की कुर्सी तक कैसे पहुंचे…
आपातकाल के बाद इंदिरा की हार, PM के लिए एक अनार सौ बीमार
करीब 2 साल के आपातकाल के बाद PM इंदिरा गांधी ने 1977 में आम चुनाव कराए। इंदिरा को सत्ता से हटाने के लिए जल्दबाजी में एक हुए विपक्षी नेताओं वाले जनता पार्टी गठबंधन को कुल 345 सीटें मिली थीं। देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनने जा रही थी।
उस समय रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार अखिल राज बताते हैं कि ये एक सामूहिक जीत थी। हर पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनना चाहता था। हालात एक अनार सौ बीमार जैसी हो गई थी। PM पद के लिए मुख्य रूप से मोरारजी देसाई, बाबू जगजीवन राम, चौधरी चरण सिंह और चन्द्रशेखर ने दावा किया था।
मोरारजी देसाई तीसरी बार PM बनने का ख्वाब देख रहे थे। उन्होंने नेहरू और शास्त्री के निधन के बाद भी दावा किया था, लेकिन हर बार कांग्रेस सिंडिकेट के हाथों उनकी हार हुई थी। जनता पार्टी में भले ही सिंडिकेट नहीं था, लेकिन वहां से टूटकर आए नेता जरूर थे।
जगजीवन का दावा मेरे इस्तीफे से कांग्रेस हारी, इसलिए मैं PM बनूंगा
तत्कालीन भारतीय जनसंघ गुट को जनता गठबंधन में 345 में से 102 सांसद मिले थे, लेकिन उसने प्रधानमंत्री पद के लिए दावा नहीं किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाई थी।
‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ ने केवल 28 सीटें जीती थीं। जगजीवन राम को भारतीय जनसंघ के 102 सांसदों के साथ सोशलिस्ट ब्लॉक के 35 सांसदों का समर्थन था। जगजीवन राम का कहना था कि उन्हें पूरे देश में हरिजनों और दलितों का समर्थन प्राप्त है। जब उन्होंने इंदिरा सरकार से इस्तीफा देकर कांग्रेस छोड़ी तो कांग्रेस हारी है। यही कारण है कि उन्हें मौका दिया जाना चाहिए।
जगजीवन राम ने अटल बिहारी वाजपेयी से वादा किया कि यदि वो उन्हें समर्थन देंगे तो जगजीवन राम, वाजपेयी को उपप्रधानमंत्री बना देंगे।
सभी नेता PM बनने के लिए अपना-अपना जुगाड़ लगा रहे थे। चौधरी चरण सिंह ने आचार्य जेबी कृपलानी को बुलाया। उस समय जयप्रकाश नारायण व जेबी कृपलानी मार्गदर्शक और निर्णायक की भूमिका में थे। सरकार और PM बनाने का सारा काम चार गांधीवादी सर्वोदयी नेता केएस राधाकृष्ण, नारायणभाई देसाई, सिद्धराज ढड्ढा और गोविंद राव देशपांडे कर रहे थे।

चरण सिंह बोले- मेरी वजह से कांग्रेस का सफाया हुआ, इसलिए मुझे PM बनाओ
चरण सिंह ने कहा कि जनता गठबंधन की राजनीति पूरी तरह से उनके दिमाग की उपज है। उत्तर भारत में जनता पार्टी को क्लीन स्वीप उनकी वजह से मिला है। इसीलिए उन्हें PM होना चाहिए।
राजनीतिक विश्लेषक लेखक रवि विश्वेश्वरैया शारदा प्रसाद बताते हैं, ‘मेरे मामा केएस राधाकृष्ण गांधी शांति प्रतिष्ठान के प्रमुख थे। वे दशकों तक जय प्रकाश नारायण के सबसे करीबी सलाहकार थे। उन्होंने अपने सर्वोदय साथियों नारायणभाई देसाई, सिद्धराज ढड्ढा और गोविंद राव देशपांडे के साथ मिलकर सोचा कि जगजीवन राम या चरण सिंह में से कोई भी प्रधान मंत्री के रूप में देश के लिए विनाशकारी हो सकता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि चरण सिंह और जगजीवन राम एक-दूसरे से नफरत करते थे। यदि दोनों में से किस एक को PM बनाया जाता तो दूसरा उसे सत्ता से हटाने के लिए खूब षडयंत्र रचता रहेगा। यही कारण था कि आचार्य जेबी कृपलानी और जेपी ने इनके नाम पर सोचना बंद कर दिया था। इस कारण जेपी और सर्वोदय टीम ने मोरारजी देसाई के नाम पर विचार करना शुरू किया।
मोरारजी के साथ भी कुछ दिक्कतें थीं, लेकिन उन्हें दरकिनार किया गया
मोरारजी और जेपी के बीच दशकों से व्यक्तित्व को लेकर टकराव चल रहा था। मोरारजी जेपी से छह साल बड़े थे। मोरारजी का जन्म 1896 में और जेपी का 1902 में हुआ था। चरण सिंह का जन्म भी 1902 में और जगजीवन राम का 1908 में हुआ था।
मोरारजी खुद को जवाहरलाल नेहरू का असली उत्तराधिकारी मानते थे। हालांकि, फरवरी 1974 के बाद से मोरारजी और जेपी ने इंदिरा गांधी को हराने के लिए कड़वाहट को किनारे रख दिया था।
राजनीतिक विश्लेषक और लेखक रवि विश्वेश्वरैया शारदा प्रसाद बताते हैं कि सर्वोदय गांधीवादी चौकड़ी ने ये भी तय किया कि नानाजी देशमुख को उपप्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए। यह नानाजी ही थे जिन्होंने समाजवादियों, कांग्रेस ओ, बीएलडी लोक दल, जनसंघ और कई आजाद गुटों को जनता गठबंधन बनाने के लिए एकजुट किया था।
नानाजी बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, पिलानी, से स्नातक होने के साथ-साथ उनका आधुनिक तकनीकी दृष्टिकोण भी था। वे ये सोचते थे कि मिलनसार और एकजुट करने वाले नानाजी घमंडी, अहंकारी, कठोर मोरारजी की कमियों को दूर करने में सहायक होंगे।

जगजीवन राम और मोरारजी में हुई आखिरी टक्कर
जगजीवन को भरोसा था कि उन्हें 345 में से कम से कम 165 सांसदों का समर्थन प्राप्त है। जगजीवन राम ने कहा कि PM पद के लिए खुला चुनाव होना चाहिए। जिसके पास ज्यादा सांसद होंगे वो PM बन जाएगा।
सर्वोदय गांधीवादियों की टीम ने जगजीवन राम को समझाया कि यदि PM पद के लिए आंतरिक चुनाव हुआ तो जनता पार्टी गठबंधन में दरार आ जाएगी और ये टूट जाएगा।
रवि विश्वेश्वरैया शारदा प्रसाद बताते हैं, ‘समय समाप्त हो रहा था, क्योंकि 24 मार्च 1977 तक नई सरकार का गठन होना था। 23 मार्च की शाम को मेरे मामा केएस राधाकृष्ण ने मीडिया को बताया कि कोई आंतरिक चुनाव नहीं होगा। आचार्य जेबी कृपलानी और जेपी नए PM और कैबिनेट का ऐलान करेंगे।’
सर्वोदय गांधीवादियों की टीम ने मोरारजी देसाई के पक्ष में सर्वसम्मति सुनिश्चित करने के लिए पूरी रात काम किया।
शांति भूषण जो इंदिरा गांधी के खिलाफ अपनी चुनाव याचिका में राज नारायण के वकील थे; कांग्रेस ओ के कोषाध्यक्ष भी थे, उन्होंने भी जगजीवन राम का कड़ा विरोध किया। चौधरी चरण सिंह ने बयान दिया कि यदि जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनाया, तो वह तुरंत जनता गठबंधन छोड़ देंगे।
इसके बाद भारतीय जनसंघ के लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाकात की गई। आडवाणी ने उन्हें बताया कि जनसंघ समूह जगजीवन राम का समर्थन केवल इसलिए कर रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह जेपी की पसंद हैं। चारों ने जनसंघ गुट को तीन वरिष्ठ कैबिनेट पदों की पेशकश की। RSS के नानाजी देशमुख को उप-प्रधानमंत्री बनने की बात कही।
जगजीवन राम को इन घटनाक्रमों की जानकारी नहीं थी। वे जिन्हें अपना समर्थक मान रहे थे, वे रातोंरात मोरारजी के साथ खड़े हो गए थे। इस तरह से बाबू जगजीवन राम, चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर को पछाड़कर मोररजी देसाई PM बने।

गांधीवादी उसूलों के कारण अड़ियल कहे जाने वाले प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के कुछ सुने-अनसुने किस्से…
जब एक रॉ अधिकारी की PM मोरारजी से मुठभेड़ हुई
मोरारजी देसाई एक अड़ियल PM थे। उन्हें लेकर रॉ के अफसर सर्तक रहते थे। बी. रमन अपनी किताब ‘काऊ बॉयज ऑफ रॉ’ में लिखते हैं, ‘मोरारजी देसाई UK और फ्रांस की यात्रा पर आए थे। लंदन में उन्होंने रॉ के स्टेशन चीफ से उनके काम के बारे में पूछा। रॉ ऑफिसर ने एक रिटर्न डिटेल नोट बनाया ताकि वो UK में रॉ के काम के बारे में जान सकें।
मोरारजी ने वो नोट अपनी जेब में रख लिया और कहा, ‘मैं इसे वापसी की फ्लाइट के दौरान विमान में बैठकर पढ़ूंगा।’ तब ऑफिसर ने कहा कि सर इसे पढ़कर तुरंत वापस कीजिए। इस नोट में बेहद सेंसटिव जानकारी है। आप ऐसा नहीं कर सकते।
मोरारजी ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘मैं बंबई प्रांत का CM रह चुका हूं। दिल्ली में कई सालों तक केंद्रीय मंत्री रहा हूं। तुमसे ज्यादा अच्छे से जानता हूं। मुझे सिक्योरिटी के बारे में मत सिखाओ।’
अफसर अड़ा रहा कि उसे वो नोट वापस चाहिए। आखिरकार आंखों से नाराजगी जताते हुए मोरारजी ने वो नोट वापस रॉ अफसर को दे दिया।’
बी. रमन लिखते हैं कि अफसर ने मुझे फोन किया और बताया कि कैसे उसकी मुठभेड़ PM के साथ हुई। मैंने उस अफसर से कहा कि अगली बार PM आएं तो उन्हें लिखकर कुछ न दें सब मौखिक ही बताएं।

बड़बोलेपन का खामियाजा रॉ एजेंट्स को भुगतना पड़ा
BBC के वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल एक स्टोरी में लिखते हैं कि रॉ के जासूसों ने पता लगा लिया था कि पाकिस्तान कहूटा में परमाणु प्लांट लगा चुका है। एक रॉ एजेंट को 1977 में पाकिस्तान के कहूटा परमाणु प्लांट का डिजाइन भी मिल गया था। वो उसे दस हजार डॉलर में भारत को देना चाहता था।
तब PM मोरारजी देसाई ने इस डिजाइन को खरीदने की पेशकश ठुकरा दी। मोरारजी ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक को बड़बोलेपन में फोन करके बता दिया कि हमे आपके परमाणु प्लांट की पूरी जानकारी है।
बताया जाता है कि इसके बाद जिया उल हक ने न सिर्फ उस रॉ एजेंट को पकड़ा, बल्कि पाकिस्तान में मौजूद कई रॉ एजेंट्स को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
जब इंटरनेशनल मीडिया से कहा- मैं अपना मूत्र पीता हूं
मोरारजी देसाई ने स्वमूत्र आंदोलन चलाया था। इसका मतलब था कि वे अपना मूत्र पीते थे। उनका दावा था कि इसे पीने से वे बेहद सेहतमंद हैं। जून 1978 में मोरारजी अमेरिका यात्रा पर PM के तौर पर गए थे। यात्रा के दौरान अमेरिका के वीकली न्यूज पेपर ‘60 मिनट्स’ के पत्रकार डैन राथर ने एक इंटरव्यू लिया था।
राथर ने पूछा कि आप 82 की उम्र इतना सेहतमंद कैसे रहते हैं। तब मोरारजी ने कहा था कि वे फलों और सब्जियों के रस, ताजा और प्राकृतिक दूध, सादा दही, शहद, कच्चे मेवे, पांच लौंग लेता हैं। इसके बाद उन्होंने बताया कि वे रोज करीब 100 ग्राम अपना ही मूत्र पीते हैं।
ये सुनते ही रिपोर्टर ने कहा- ‘यक! क्या आप अपना मूत्र पीते हैं? यह सबसे गंदी बात है, जो मैंने आज तक नहीं सुनी।’ मोरारजी ने कोई रिएक्शन नहीं दिया, बल्कि उन्होंने कहा कि खुद का मूत्र पीना एक नेचर थैरेपी है।
उन्होंने तर्क दिया कि यदि आप जानवरों को देखेंगे तो वे भी खुद का मूत्र पीते हैं और सेहतमंद रहते हैं। हिंदू दर्शन में… गाय के मूत्र को पवित्र माना गया है और हर अनुष्ठान में इसका प्रयोग किया जाता है। लोगों को इसे अवश्य पीना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अमेरिकी वैज्ञानिक दिल की समस्याओं के लिए मूत्र अर्क तैयार कर हैं। आप दूसरों का मूत्र पी रहे हैं अपना नहीं। आपके वैज्ञानिकों के मूत्र अर्क की लागत हजारों डॉलर है, जबकि खुद का मूत्र मुफ्त है। जब ये साक्षात्कार छपा तो पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हुई।

जब राजदूत की पत्नी ने कहा- सारे ग्लास फिंकवा दो
1978 में मोरारजी देसाई लंदन के बाद फ्रांस यात्रा पर पेरिस पहुंचे। वे भारतीय राजदूत आरडी साठे के घर पर ही रुके थे।
पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी बी रमन अपनी किताब ‘काऊ बॉयज ऑफ रॉ’ में लिखते हैं, ‘जब मोरारजी देसाई दिल्ली लौट गए तो मैं साठे के घर गया था। मेरी आवभगत में उनका नौकर हमें ड्रिंक्स सर्व कर रहा था। तभी साठे की वाइफ ने नौकर से कहा कि तुम ये जो ग्लास उपयोग कर रहे हो ये नए हैं ना?
फिर मिसेज साठे ने मेरी तरफ देखा और कहा मुझे नहीं पता मोरारजी ने अपना मूत्र पीने के लिए कौन सा ग्लास यूज किया है। इस कारण मैंने सभी पुराने ग्लासों को बाहर फिंकवा दिया है।’
बेटे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, लेकिन मोरारजी देखते रहे
कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘बियॉन्ड द लाइंस’ में लिखते हैं कि इंदिरा सरकार हो या मोरारजी सरकार कुछ बदला नहीं था। इंदिरा सरकार में संजय गांधी मनमानी करते थे। मोरारजी सरकार में उनका बेटा कांतिभाई। मैंने मोरारजी भाई से शिकायत की कि उनका बेटा मोटी रकम लेकर सौदे और ठेके निपटा रहा है।
ये सब PM हाउस में रहकर कर रहा है। कम से कम उसे PM हाउस से बाहर निकालिए। मोरारजी ने कहा कि मैंने एक बार अपनी बेटी को डांटा था तो उसने खुदकुशी कर ली थी। अब मैं अपने बेटे को नहीं खोना चाहता। यही कारण था कि मोरारजी अपने बेटे के करप्शन को बर्दाश्त करते रहे।

मोरारजी बोले- मैं चरण सिंह को चूरण सिंह बना दूंगा
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी बायोग्राफी ‘बियॉन्ड द लाइंस’ में लिखते हैं कि चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई के बीच पुरानी दुश्मनी थी। बस इंदिरा को हटाने के लिए एक हो गए थे। सत्ता मिलते ही इनकी दुश्मनी फिर जाग गई थी।
जब चौधरी चरण सिंह ने नाराज होकर समर्थन वापस लेने बात कही तो मैंने मोरारजी से कहा कि आप चरण सिंह से बात करके उन्हें मना लीजिए। तब मोरारजी ने कहा कि मैं चरण सिंह काे चूरण सिंह बना दूंगा। उसे नहीं मनाऊंगा।
इसके बाद चरण सिंह ने समर्थन वापस ले लिया और मोरारजी ने राष्ट्रपति को 28 जुलाई 1979 को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इस तरह मोरारजी देसाई ने 2 साल 126 दिन प्रधानमंत्री के रूप में काम किया।
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