
1991 में लोकसभा चुनाव से पहले राजीव गांधी अपने दिल्ली वाले दफ्तर में बैठे थे। उनके सचिव विंसेंट जॉर्ज ने अंदर आकर कहा- बाहर नरसिम्हा राव काफी देर से इंतजार कर रहे हैं। थोड़ी देर में नरसिम्हा राव कमरे में आए और राजीव उनसे मुखातिब हुए, ‘आप बूढ़े हो गए हैं। मेरे ख्याल से आपको इस बार चुनाव नहीं लड़ना चाहिए..’
उम्र के 70 बसंत देख चुके नरसिम्हा राव आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे। केंद्र की पिछली सरकारों में गृहमंत्री, रक्षामंत्री और विदेश मंत्री का जिम्मा संभाल चुके थे। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह लिखते हैं, ‘राजीव ने दरकिनार किया तो नरसिम्हा काफी आहत हुए। चूंकि वो ज्यादा बोलते नहीं थे इसलिए उन्होंने राजनीति छोड़कर चुपचाप हैदराबाद वापस जाने की तैयारी शुरू कर दी। कोई हायतौबा नहीं मचाई।’
मार्च 1991 में उन्होंने अपनी किताबों के 45 कार्टन हैदराबाद भिजवा दिए। इसी दौरान ज्योतिष का शौक रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने राव से कहा था- मुझे लगता है कि आपका भाग्य बदलने वाला है। कुछ महीने और रुक जाइए, वरना वापस दिल्ली लौटना पड़ेगा।
दुर्भाग्य से 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या हो गई और तमाम उतार-चढ़ाव के बाद रिटायरमेंट की तैयारी कर चुके नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने।

“भारत भाग्य विधाता” के नौवें एपिसोड में पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से…
शरद पवार के PM बनने का हल्ला था, लेकिन पीवी नरसिम्हा ने बाजी मारी
राजीव गांधी की हत्या के बाद आए लोकसभा नतीजों में कांग्रेस ने 232 सीटें जीती थीं। सोनिया गांधी राजनीति में आने से इनकार कर चुकी थीं। बड़ा सवाल था कि कांग्रेस किसे अपना प्रधानमंत्री चुनेगी।
17 जून के टाइम्स ऑफ इंडिया में महाराष्ट्र के CM और तब कांग्रेसी नेता शरद पवार के हवाले से खबर छपी थी कि महाराष्ट्र के सांसद तय करेंगे कि दिल्ली में देश का नेतृत्व कौन करेगा। 18 जून को फिर शरद पवार को PM प्रोजेक्ट करने वाली खबर छपी। महाराष्ट्र से दिल्ली तक चर्चा थी कि शरद पवार PM पद के लिए ‘सूटेबल बॉय’ हैं।
पीवी के पुराने दोस्त और लेखक संजय बारू अपनी किताब ‘1991 हाऊ पीवी नरसिम्हा राव मेड हिस्ट्री’ में लिखते हैं, ‘20 जून को मैं पीवी नरसिम्हा राव के सरकारी बंगले पर गया। पीवी के पर्सनल सेक्रेटरी राम खांडेकर मुझे पीवी के लिविंग रूम में ले गए।
पीवी कॉटन की लुंगी और बनियान पहने कांग्रेस के भगवत झा आजाद और कीर्ति आजाद से चर्चा कर रहे थे। मैंने बैठते ही टाइम्स ऑफ इंडिया की उन खबरों को लेकर सवाल दागा कि क्या शरद पवार PM बन रहे हैं।
पीवी बोले- टाइम्स ऑफ इंडिया के एडिटर दिलीप पडगांवकर, राजदीप सरदेसाई सब महाराष्ट्र के हैं। इसलिए अपने आदमी को बढ़ा रहे हैं, लेकिन असल में दिल्ली में शरद पवार की कोई हवा नहीं है।’
पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह अपनी किताब ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ में लिखते हैं कि 10 जनपथ में सोनिया गांधी ने अपने सलाहकार पीएन हक्सर से पूछा कि कांग्रेस की तरफ से PM बनने के लिए कौन सबसे ज्यादा काबिल है। तब हक्सर ने कहा कि वरिष्ठता के अनुसार तो उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा PM पद के लिए परफेक्ट हैं।’
नटवर लिखते हैं, ‘मुझे और अरुणा आसफ अली को जिम्मेदारी दी गई कि हम शंकरदयाल शर्मा से बात करें। क्या वो इस जिम्मेदारी के लिए तैयार हैं? मैं और अरुणा शंकरदयाल से मिले और उन्हें सोनिया गांधी का ऑफर बताया। शंकर दयाल बोले- प्राइम मिनिस्टरी फुल टाइम जॉब है। मेरी खराब सेहत और बढ़ती उम्र मुझे देश के सबसे महत्वपूर्ण ऑफिस काे संभालने की अनुमति नहीं देती। इसके बाद पीएन हक्सर ने सोनिया को पीवी नरसिम्हा राव का नाम सुझाया।’
सोनिया गांधी के लिए पॉलिटिकल टूल थे राव?
नटवर सिंह लिखते हैं, “पीवी नरसिम्हा राव एक साधारण परिवार से आए व्यक्ति थे। अध्यात्म और धर्म में उनकी गहरी पैठ थी। वो कई भाषाओं को जानने वाले इंटेलेक्चुअल और बेहतरीन चिंतक थे।”
राव की एक और खूबी थी, जो उनके पक्ष में जाती थी। विनय सीतापति के मुताबिक सोनिया गांधी को लगता था कि राव अपनी जगह जानते हैं। सरकार और संगठन में लंबे समय तक रहने के दौरान उन्होंने कभी गांधी परिवार के खिलाफ बगावती तेवर नहीं दिखाए। शरद पवार और एनडी तिवारी इस पैमाने पर खरे नहीं उतरते थे।
राजीव गांधी के खास दोस्त सतीश शर्मा ने भी इन्हीं खूबियों की वजह से राव का नाम सोनिया को सुझाया। 29 मई 1991 को एक बार फिर CWC की मीटिंग हुई, जिसमें पीवी नरसिम्हा राव सर्वसम्मति से कांग्रेस प्रेसिडेंट चुन लिए गए। कांग्रेस के एक खेमे का मानना था कि सोनिया ने राव को तब तक के लिए आगे किया, जब तक वो खुद टेक ओवर करने का मन नहीं बना लेतीं।

21 जून को दोपहर 12 बजकर 53 मिनट पर राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने पीवी नरसिम्हा राव को देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई।
नरसिम्हा प्रधानमंत्री बने तो खजाने में सिर्फ 2 हफ्ते के खर्च का पैसा था
पीवी नरसिम्हा राव एक अनुभवी नेता थे। उन्होंने अपने पूर्व कार्यकाल में स्वास्थ्य, शिक्षा और विदेश मंत्रालय देखे थे। वित्त का उन्हें कम अनुभव था। PM पद की शपथ लेने से एक दिन पहले 20 जून 1991 की शाम को कैबिनेट सेक्रेटरी नरेश चंद्र नरसिम्हा राव से मिले।
पहली मुलाकात में नरेंद्र चंद्र ने उन्हें 8 पेज वाली फाइल दी। इस फाइल पर टॉप सीक्रेट लिखा था। इसमें लिखा था कि कल जब नरसिम्हा राव शपथ लेंगे तो उन्हें सबसे पहले क्या करना है। पीवी ने जब वो फाइल पढ़ी तो उनके होश उड़ गए।
उसे देखते ही उन्होंने नरेश चंद्र से पूछा क्या देश की इकोनॉमी इतनी खराब हो चुकी है। नरेश बोले- नहीं सर, इससे भी ज्यादा खराब है। विदेशी मुद्रा भंडार की हालत खस्ता है। इसी साल (1991) जनवरी में हमारे पास केवल 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा बची थी। जिससे सिर्फ 2 हफ्ते का आयात खर्च पूरा हो सकता है।
नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को खोज निकाला
विनय सीतापति अपनी किताब ‘हॉफ लॉयन: हाऊ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया’ में लिखते हैं कि पीवी ने तय कर लिया था कि वे एक एक्सपर्ट अर्थशास्त्री को वित्त मंत्री बनाएंगे। उन्होंने तुरंत अपने संकट के साथी और खास दोस्त पीसी एलेक्जेंडर से बात की।
एलेक्जेंडर ने उन्हें रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स के डायरेक्टर आईजी पटेल को वित्त मंत्री बनाने को कहा। पटेल तक प्रस्ताव पहुंचा तो उन्होंने इनकार कर दिया। दरअसल, उस समय उनकी मां बीमार चल रही थीं। इस कारण से वो वडोदरा नहीं छोड़ना चाहते थे।
हालांकि, पटेल ने एक और नाम सुझाया। ये नाम था यूजीसी के चेयरमैन डॉ. मनमोहन सिंह का। पीवी ने तुरंत मनमोहन की खोज शुरू की और उनके घर फोन लगाया तो पता चला कि वे यूरोप गए हैं। आज रात को लौटेंगे। सुबह फोन किया ताे मनमोहन सिंह के नौकर ने बताया कि साहब सो रहे हैं। उन्हें उठाया नहीं जा सकता।
शपथ ग्रहण के तीन घंटे पहले नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह के UGC के ऑफिस में ही फोन लगाया। उन्हें वित्त मंत्री बनने का ऑफर दिया और कहा- अगर हम सक्सेस हुए तो इसका क्रेडिट हम दोनों को मिलेगा। अगर फेल हुए तो तुम्हें इस्तीफा देना पड़ेगा।

जब बाबरी मस्जिद गिर रही थी तो पूजा कर रहे थे पीवी
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जब हजारों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराना शुरू किया तो पीवी नरसिम्हा राव पूजा करने चले गए थे। वे घंटों तक पूजा करते रहे थे।
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी बायोग्राफी ‘बियॉन्ड द लाइंस’ में लिखते हैं कि इस विध्वंस में नरसिम्हा राव की मिली-भगत थी। जब कार सेवक ढांचा गिराने लगे तो पीवी पूजा पाठ करने लगे और जब ढांचा पूरी तरह गिर गया तभी वे पूजा से उठे। कुलदीप नैयर लिखते हैं कि समाजवादी नेता मधु लिमये ने मुझे बताया था कि पूजा के दौरान जब पीवी के एक सहयोगी ने उनके कान में फुसफुसाया कि ढांचा गिर गया है तो उन्होंने तुरंत पूजा खत्म कर दी थी।

ढांचा गिरने के बाद पीवी ने पत्रकारों को ये बताने के लिए बुलाया कि इस मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा था कि UP के सीएम कल्याण सिंह ने उन्हें धोखे में रखा था। जब मैंने पीवी से पूछा कि रातों-रात कैसे वहां एक छोटा सा मंदिर खड़ा हो गया है तो पीवी ने कहा था कि मैं बाद में CRPF की एक टुकड़ी भेजना चाहता था, लेकिन मौसम खराब होने के कारण विमान नहीं जा सका। फिर उन्होंने हम पत्रकारों से कहा था कि ये मंदिर ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा।
कुलदीप लिखते हैं कि मुझे गृहमंत्री राजेश पायलट ने बताया था कि उन्होंने पीवी से कहा था कि हम रातोरात इस मंदिर को हटा सकते हैं, लेकिन राव ने इसके लिए मना कर दिया था। पीवी को अनुमान था कि ये मंदिर हटाया तो हिंदू नाराज हो जाएंगे।
राज्यसभा चुनाव ने पैदा की सोनिया और पीवी के बीच खाई
राव के PM बनने के कुछ महीनों बाद सोनिया गांधी को लगने लगा कि नरसिम्हा राव नेहरू-गांधी परिवार के महत्व को लगातार कम कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में लिखते हैं, ‘जनवरी 1992 में राज्यसभा चुनाव ने सोनिया गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के बीच की खाई को गहरा कर दिया।
दरअसल, सोनिया गांधी के निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज काे राज्यसभा भेजा जाना था। उधर मार्गरेट अल्वा चौथी बार राज्यसभा जाने की जुगाड़ में लगी थीं। पार्टी के कई नेता मार्गरेट अल्वा का विरोध कर रहे थे। पीवी भी नामांकन को लेकर संशय में थे।
पीवी रूस यात्रा पर जाने वाले थे। उन्होंने राज्यसभा का मामला खत्म करने के लिए सीधे सोनिया गांधी को फोन लगाया। सोनिया ने कुछ संकेत दिए, लेकिन साफ तौर पर कुछ नहीं कहा। जब विदेश से राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम की सूची भेजी गई तो उसमें मार्गरेट अल्वा का नाम तो था, लेकिन विंसेंट जॉर्ज का नाम नहीं था। इसके बाद सोनिया और नरसिम्हा राव में खाई बढ़ती गई।’

ये तल्खी इतनी बढ़ी कि 2004 में जब नरसिम्हा राव का निधन हुआ तो उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया गया। विनय सीतापति अपनी किताब में लिखते हैं, राव के बेटे प्रभाकरा कहते हैं कि हमें महसूस हुआ कि सोनिया जी नहीं चाहती थीं कि हमारे पिता का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो। वह यह भी नहीं चाहती थीं कि यहां उनका मेमोरियल बने।
इलेक्शन नतीजे के दो दिन पहले कलाम से कहा- न्यूक्लियर टेस्ट के लिए तैयार रहो
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 24 जनवरी 2013 को आरएन काओ मेमोरियल में मुख्य अतिथि के तौर पर नरसिम्हा राव की ईमानदारी से जुड़ा किस्सा सुनाया था। कलाम ने बताया था कि 1996 के आम चुनाव के नतीजों से ठीक दो दिन पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मुझसे कहा था कि एपीजे आप अपनी टीम को परमाणु परीक्षण के लिए तैयार रखिए।
नरसिम्हा राव ने ये भी कहा था कि आप विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी से मिलिए। वाजपेयी को इस कार्यक्रम के बारे में बताइए। कलाम कहते हैं कि नरसिम्हा राव ने मुझसे ऐसा करने के लिए इसलिए कहा था कि अगर उनकी सरकार चली भी जाती है तो आने वाले प्रधानमंत्री देश के लिए जरूरी न्यूक्लियर कार्यक्रम को जारी रख सकें। कलाम ने कहा कि उनका ये काम ये बताता है कि नरसिम्हा राव एक देशभक्त राजनेता थे।
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