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इंडिया लॉकडाउन रिव्यू: जब अपने घरों में कैद हो गए लोग, तो दोस्तों की याद आती है मधुर भंडारकर की फिल्म

मुंबईः कोरोना के मामले सामने आने के बाद देश में लोगों की याद ताजा हो गई है। फिल्म ने दर्शकों को एक बार फिर से कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारत के सभी वर्गों द्वारा झेले गए वायरस को लंबे समय तक याद दिला दिया है। फिल्म में चार कहानियां दिखाई दीं, जो कहीं ना कहीं एक साथ जुड़े हुए थे।

इंडिया टुडे के माध्यम से भंडारा मधुरकर ने यह कोशिश की है कि कैसे समाज के अलग-अलग वर्ग के लोग घातक बीमारी से पीड़ित थे। लोगों को यहां तक ​​पता नहीं चला कि खाना कहां से आया और कहां से काम हुआ।

फिल्म की कहानी
इंडिया इंडस्ट्रीज के माध्यम से मधुर भंडारकर उस दौर की कहानी लेकर आए हैं, जब पूरा देश अपने-अपने घर में जमा हो गया था। समय था कोरोना महामारी के यूट्यूब यूट्यूब में जुड़ें का। जब लोगों के लिए रोजी-रोटी के लाले पड़े थे। प्रतीक बब्बर ने इस फिल्म में एक दिहाड़ी मजदूर की भूमिका निभाई है, जिसका नाम माधव है। माधव अपनी पत्नी फूलमती (साई तम्हंकर) जो एक घरेलू सहायिका की नौकरी करती है, के साथ अपने गांव से दूर मुंबई में बेबसी के जाल में फंस गई हैं। ना तो खाने का साधन है और ना आय का. माधवा और उनकी पत्नी के साथ दो छोटे बच्चे भी हैं।

माधव अपने परिवार के साथ बिहार जाने का फैसला करता है, लेकिन यह फैसला उसके लिए टैब स्कॉलर हो जाता है, जब ना तो उसके जाने के लिए कोई साधन उपलब्ध होता है और ना ही कोई संतुलित भोजन होता है। भुखमरी और अत्यधिक थकान उन्हें अकल्पनीय करने के लिए प्रेरित करती है।

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दूसरी ओर फूलमती का मालिक नागेश्वर राव (प्रकाश बेलावड़ी) है जो उसकी मदद कर पाने में असफल है, क्योंकि उसकी सोसायटी ने नौकरों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। वह अपनी बेटी के साथ हैदराबाद जाने के लिए गाड़ी से जा रही थी इसी दौरान उसे कई तरह के अध्ययनों का भी सामना करना पड़ा। एक कहानी है कमाठीपुरा में वैश्यावृत्ति करने वाली लड़कियों की। मेहरू (श्वेता बसु प्रसाद) कमाठीपुरा में रहने वाली लड़की है, जिसकी पूरी कमाई कोरोना पर बंद हो गई है। पैसे कमाने के लिए वह एक नया तरीका अपनाती है।

अब आती है कहानी मून अल्वेस (अहाना कुमरा) की, बिल्कुल जो अजीब है और अपने साथियों को याद करती है। अपनी यूनीफॉर्म फर्म अपनी कंपनी में भर्ती के लिए तैयार हो जाती है। दूसरी ओर उसका पड़ोसी भी अकेला है और अपनी यात्री से मिलने के लिए परेशान है। उन्होंने कुछ ऐसे दृश्य रचे हैं जिनमें मधुर, जो चौंकाता, मादकता और रुलाता है। लाइट बेलावड़ी का ट्रेक, मधुर की राची बाकी की चारों कहानियाँ शानदार हैं। लेकिन, भारत में कहीं भी नहीं, बल्कि ओज की विविधता पर नजर नहीं आई, दर्शकों को उम्मीद थी।

विस्तृत रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: बॉलीवुड, मधुर भंडारकर, प्रतीक बब्बर

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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