

इस साल मोदी सरकार के इस कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट है। सरकार की अधिक कोशिश रोजगार पैदा करने वाले योजनाओ और देश के विकास को गति देने वाले नियम बनाने पर टिके रहेंगे। बजट पेश होने से पहले हम भारत के आम बजट से जुड़ी कुछ खास बातें जानते हैं, जो इतिहास के बारे में एक जगह बनाए हुए हैं।
बजट के साथ जुड़ी कई परंपराएं हैं
बजट देश के संविधान का एक अहम हिस्सा है, लेकिन बजट के साथ कई परंपराएं भी जुड़ी हुई हैं जिन्हें अक्सर हम नियम समझ रहे हैं। ज्यादातर सरकारें परंपराओं के दायरे में बजट पेश करती हैं, वहीं कुछ सरकार परंपराएं बजट की एक नई परंपरा की शुरुआत करती हैं। जैसे कि 2016 से फरवरी के अंतिम कार्य दिवस के लिए बजट पेश किया गया था, लेकिन मोदी सरकार ने 1 फरवरी को विभिन्न कार्यों की सहूलियत को देखते हुए इसे अलग-अलग कर दिया। इस साल भी बजट 1 फरवरी को ही पेश किया जाएगा।
2001 में बदली गई बजट समय
इनहीं में से एक परंपरा बजट पेश करने के समय को लेकर भी था, जो कि 2001 में तत्काल वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने खत्म की थी। Y2K यानी साल 2000 तक देश का आम बजट शाम 5 बजट पेश किया गया था। यह भी एक बजट परंपरा थी, लेकिन इसके पीछे भी एक इतिहास और एक तात्कालीन आवश्यक प्रासंगिकताएं थीं। यह परंपरा भारतीय स्तंत्रता से करीब 20 साल पुरानी है। बात 1927 की है, उस समय अंग्रेज़ अधिकारी भी भारतीय कार्यभार कार्यवाही में हिस्सा ले रहे थे।
खास बात यह है कि जब भारत में शाम के 5 बजते थे तो उस समय लंदन में सुबह 11.30 बज रहे थे। लंदन के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ़ कॉमन्स के सांसद ने भारत का बजट भाषण सुना। आजादी के बाद भी यह नियम जारी हो रहा है। वहीं लंदन स्टॉक एकसचेंज भी उसी समय शुरू हुआ था ऐसे में भारत में कारोबार करने वालों के हित इस बजट से तय होते थे।
संविधान लागू होने के 50 साल बाद स्पष्ट
लेकिन औपनिवेशिक भारत की इस धुंधलेपन को देश में संविधान लागू होने के 50 साल बाद स्पष्ट किया गया। तत्काल एनडीए सरकार ने इस परंपरा को तोड़ा है। उस समय के विट्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सबसे पहले सुबह 11 बजे बजट पेश करना शुरू किया जो कि पूरी तरह से भारत के समय के अनुसार और भारत की परंपरा के अनुरूप था।
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