8 नवंबर 2016 की शाम को कौन भूल सकता है। इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में नोटबंदी का ऐलान किया था। जिसमें 500 और 1000 रुपए के नोट को रात 12 बजे के बाद बंद कर दिया गया था। इसके साथ ही 500 और 2000 के नए नोट चलन में लाए गए थे। पीएम मोदी के इस ऐलान के बाद पूरे देश में जालसाजी-पुथल मच गया था। 8 नवंबर 2016 के बाद लोग कई दिनों तक सुबह से रात तक एटीएम और बैंकों की लाइन में लगे रहे। यह चिल कई दिनों तक चला था। पूरा देश में था। नोटबंदी से क्या फायदा और क्या नुकसान हुआ, यह एक अलग विषय है। इस पर किसी और दिन चर्चा की जा सकती है। लेकिन इसे लेकर सोमवार 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सुना सकता है।
कोर्ट ने 7 दिसंबर को आरबीआई को निर्देश दिया था
सुप्रीम कोर्ट की सोमवार की वाद सूची के अनुसार, इस मामले में दो अलग-अलग जजमेंट होंगे, जो ग्लोब बी.आर.गवई और ग्लोब बी.वी. नागरत्ना द्वारा सुनाए जाएंगे। घबराए हुए नजीर, मिश्रित गवई और मिश्रित नागरत्ना के अलावा, पांच जजों की विद्यार्थियों के अन्य सदस्य समूह ए. एस. बोपन्ना और दलाली वी. रामासुब्रमण्य हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सात दिसंबर को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करें।
नोटबंदी गंभीर रूप से दोषपूर्ण निर्णय था – पी सम
पीठ ने केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने की याचिकाओं पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, प्राधिकरण के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदम्बरम और श्याम दीवान सहित याचिका दायर करने के लिए याचिकाएं सुनीं और अपना निर्णय सुरक्षित रखा था। एक हजार और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को ‘गंभीर के रूप में दोषपूर्ण’ उल्लेखनीय हस्ताक्षर दिया गया था कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल दस्तावेजों के लिए है सेंट्रल बोर्ड की छंटनी की जा सकती है।
साल 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के सर्वोच्च न्यायालय के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब ‘बीते वक्त में वापस कर’ कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है।