
UNITED NEWS OF ASIA. प्रदीप पाठक, मनेंद्रगढ़ | मनेंद्रगढ़ के एशिया में चर्चित गोंडवाना मैरीन फॉसिल्स पार्क में संरक्षण के नाम पर 66 लाख रुपये खर्च कर दिए गए, लेकिन आज भी यह धरोहर उपेक्षा और लापरवाही की शिकार बनी हुई है। यह राशि खनिज न्यास निधि (DMF) से जारी की गई थी, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों को पूरी तरह झुठला रही है।
वन विभाग के अधिकारियों, विशेष रूप से DFO द्वारा संरक्षण के बड़े-बड़े दावे किए गए थे। लेकिन स्थल पर न तो कोई सूचना पट्ट दिखाई देता है, न विज़िटर सेंटर, न ही कोई सुरक्षा व्यवस्था। चट्टानों पर अनावश्यक नक्काशी, टूटी हुई पगडंडियां और चारों ओर उगी घास-झाड़ियों से यह स्पष्ट होता है कि 66 लाख की यह रकम आखिरकार कहां गई, इसका कोई हिसाब नहीं है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यहां की चट्टानों में लाखों वर्षों पुराने समुद्री जीवों के अवशेष मौजूद हैं, जो भूगर्भीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस धरोहर को लेकर वन विभाग की गंभीरता कहीं नजर नहीं आती।
अब उठ रहे हैं सवाल –
66 लाख रुपये की राशि आखिर कहां खर्च की गई?
कार्य की जिम्मेदारी किस एजेंसी को सौंपी गई?
DFO की निगरानी में इतना लापरवाह कार्य कैसे संभव हुआ?
फॉसिल्स की स्थिति का वैज्ञानिक सर्वे कब होगा?
फिलहाल स्थिति यह है कि गोंडवाना मैरीन फॉसिल्स पार्क के संरक्षण के नाम पर शासन-प्रशासन ने केवल कागजी खानापूर्ति की है। अगर यही हाल रहा, तो एशिया की इस अनमोल भूगर्भीय धरोहर का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।
क्या शासन-प्रशासन आंख मूंदे रहेगा?
या फिर करोड़ों के दुरुपयोग का कभी होगा सार्वजनिक जवाब?
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