
UNITED NEWS OF ASIA. असीम पाल, दंतेवाड़ा (किरंदुल)। किरंदुल नगर पालिका चुनाव में हार की कुंठा इस कदर बढ़ गई कि एक प्रत्याशी के समर्थकों ने विरोधी पक्ष के घर पर हमला कर दिया, गाड़ी में तोड़फोड़ की और जमकर गाली-गलौज व धमकियां दीं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया और पीड़ित को सीधे कोर्ट जाने की सलाह दी।
क्या अब निजी संपत्ति में तोड़फोड़ और धमकी अपराध नहीं?
किरंदुल थाना और पुलिस अनुविभागीय अधिकारी के रवैये से यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या नए कानून के तहत निजी संपत्ति पर हमला, गाली-गलौज और धमकी देना अब अपराध की श्रेणी में नहीं आता? या फिर सत्ता का दबाव कानून से ऊपर हो गया है?
क्या है पूरा मामला?
किरंदुल के वार्ड क्रमांक 10 से अब्दुल वहीद सिद्दीकी कांग्रेस प्रत्याशी थे, जबकि बीजेपी से डी.पी. मिश्रा मैदान में थे। चुनावी मुकाबला हाई-प्रोफाइल हो गया था, और जनता की नजरें इस पर टिकी थीं। जैसे ही सिद्दीकी की बढ़त दिखने लगी और जीत हुई, विरोधी पक्ष की बौखलाहट बढ़ गई।
हार को स्वीकार करने की बजाय, बीजेपी प्रत्याशी डी.पी. मिश्रा के समर्थकों ने सिद्दीकी के घर पर हमला कर दिया, उनकी गाड़ी (टाटा आरिया) में तोड़फोड़ की और गाली-गलौज व धमकी दी।
थाने पहुंचे तो पुलिस ने FIR दर्ज करने से किया इनकार
जब अब्दुल वहीद सिद्दीकी इस घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने किरंदुल थाना पहुंचे, तो थाना प्रभारी प्रहलाद साहू ने FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया। उन्होंने घटना को “गैर-संज्ञेय अपराध” बताते हुए कोर्ट जाने की सलाह दी।
पत्रकार की गाड़ी को भी बनाया निशाना
हमले में जिस गाड़ी में तोड़फोड़ की गई, वह पत्रकार अब्दुल हमीद सिद्दीकी की थी, जो किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं। बावजूद इसके, पुलिस की निष्क्रियता कई सवाल खड़े करती है।
दक्षिण बस्तर पत्रकार संघ उठाएगा मुद्दा
अब इस मामले को लेकर दक्षिण बस्तर पत्रकार संघ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करेगा और पूछेगा कि अब तक FIR क्यों नहीं दर्ज की गई?
क्या कानून पर सत्ता का दबाव?
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए नए कानूनों के तहत क्या अब “किसी की निजी संपत्ति पर हमला करना, गाली-गलौज करना और धमकाना अपराध नहीं रह गया है?” पुलिस के रवैये से ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। या फिर यह सत्ता के प्रभाव में दबा प्रशासनिक तंत्र है?
क्या प्रशासन निष्पक्ष रहेगा या जारी रहेगा सत्ता का दबाव?
यह देखना दिलचस्प होगा कि पुलिस और प्रशासन इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई करता है या नहीं। अगर FIR दर्ज नहीं होती है, तो यह लोकतंत्र और कानून-व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करेगा। क्या जनता को अब इंसाफ के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने होंगे?













