
UNITED NEWS OF ASIA. प्रदीप शर्मा, सक्ती | सक्ती में इन दिनों अवैध उत्खनन (खनन) का खेल खुलेआम खेला जा रहा है। मिट्टी, मुरुम, रेत और पत्थर का दोहन जिस तरह से बिना अनुमति और निगरानी के चल रहा है, वह न केवल पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि इससे खनिज विभाग को लाखों रुपए का सीधा राजस्व नुकसान भी हो रहा है। इसके बावजूद विभाग की चुप्पी और निष्क्रियता कई सवाल खड़े कर रही है।
जानकारी के अनुसार, सक्ती से लगे ग्राम पंचायत नंदेली में स्थित सुकाल सागर तालाब से रोजाना मिट्टी का अवैध उत्खनन हो रहा है। इससे ना सिर्फ खनिज विभाग को राजस्व का नुकसान हो रहा है, बल्कि तालाब का अस्तित्व भी अब खतरे में नजर आ रहा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश है कि तालाब या किसी भी जलस्रोत के अधोसंरचना का सही से रखरखाव किया जाए। इसके बावजूद यहां खुलेआम रोजाना अवैध उत्खनन चल रहा है।
गौतलब है कि सक्ती क्षेत्र के कई गांवों और नदी किनारे क्षेत्रों में भारी मात्रा में अवैध उत्खनन चल रहा है। ट्रैक्टर, हाईवा और जेसीबी मशीनों के माध्यम से दिन-रात खनिज निकाले जा रहे हैं और इन्हें खुले बाजार में बेचा जा रहा है। खास बात यह है कि इस पूरे प्रकरण में कोई लाइसेंस या वैध परमिट की प्रक्रिया नहीं अपनाई जा रही है।
खनिज विभाग की भूमिका इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा संदिग्ध नजर आती है। जहां विभाग को क्षेत्र की हर गतिविधि पर नजर रखनी चाहिए, वहीं अधिकारी मौके पर पहुंचने या कार्रवाई करने से परहेज करते दिखते हैं। क्या यह लापरवाही है या कहीं न कहीं मिलीभगत – यह जांच का विषय है।
अवैध उत्खनन से केवल सरकारी खजाने को ही नहीं, बल्कि पर्यावरण को भी भारी नुकसान हो रहा है। खेतों की मेढ़ टूट रही हैं और जल स्रोतों का बहाव बाधित हो रहा है। वहीं दूसरी ओर, खनन माफिया को हर दिन लाखों की अवैध कमाई हो रही है, जबकि शासन को उसका वैध हिस्सा भी नहीं मिल रहा।
स्थानीय लोगों ने कई बार इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई। कुछ मामलों में नाम मात्र की औपचारिक जांच हुई, जिसकी वजह से यह अवैध कारोबार खुलेआम जारी है। जनता अब सवाल कर रही है कि आखिर कब तक विभाग अपनी आंखें मूंदे रहेगा?
UNA न्यूज प्रशासन और खनिज विभाग से मांग करता है कि सक्ती क्षेत्र में चल रहे अवैध उत्खनन पर तत्काल रोक लगाई जाए। दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो और भविष्य में ऐसी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए एक ठोस निगरानी तंत्र बनाया जाए।
यह मामला सिर्फ खनिज की चोरी का नहीं, बल्कि कानून और जनहित की खुली अवहेलना का है। समय रहते कार्रवाई न की गई, तो इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।
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