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रायपुर में संत पर सन्यास के लिए युवक को बरगलाने का आरोप, मां ने आत्मदाह की चेतावनी दी

UNITED NEWS OF ASIA. रायपुर । छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक स्वयंभू बाबा के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं। बोरियाखुर्द, नवरंग चौक निवासी प्रमिला बाबुरिक (लोधी क्षत्रिय) ने कुशालपुर निवासी संत अमनदत्त ठाकुर उर्फ स्वामी अभिरामदास पर उनके बेटे को धर्म के नाम पर बहकाकर सन्यास के लिए उकसाने और मानसिक दबाव बनाने का आरोप लगाया है। महिला ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन इस मामले में निष्पक्ष जांच कर उचित कार्यवाही नहीं करता, तो वह परिवार सहित बाबा के घर के सामने आत्मदाह के लिए बाध्य होगी।

यह शिकायत रायपुर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) से की गई है।

क्या हैं महिला के आरोप?

प्रमिला बाबुरिक का कहना है कि उनका बेटा प्रशांत कुमार बाबुरिक, जो कि एक पढ़ा-लिखा युवक है, हाल ही में संत अमनदत्त ठाकुर के संपर्क में आया। बाबा ने उसे भागवत कथा और धार्मिक आयोजनों में शामिल कराकर ‘शेष नारायण वैष्णव’ नाम देकर सन्यास लेने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया।

परिवार का आरोप है कि बाबा ने प्रशांत को वृंदावन स्थित आश्रम ले जाने की योजना बनाई है, जहाँ उसे सेवक जैसा काम करवाया जाएगा। जब परिवार ने इसका विरोध किया, तो बाबा ने कथित रूप से धमकी दी कि “यदि प्रशांत को सन्यास से रोका गया, तो वह पागल हो जाएगा या दुर्घटना का शिकार हो सकता है।”

‘ढोंगी बाबा तंत्र-मंत्र से करता है मानसिक दबाव’ — पीड़िता का आरोप

प्रमिला ने यह भी दावा किया है कि बाबा तंत्र-मंत्र के नाम पर भोले-भाले लोगों को डरा-धमका कर मानसिक रूप से कमजोर करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि संत अभिरामदास का उद्देश्य युवा मानसिकता को प्रभावित कर उन्हें अपने नियंत्रण में लेना है।

प्रमिला के अनुसार, उनका परिवार साधनहीन है और उन्होंने बड़ी मेहनत से बेटे को पढ़ाया था, ताकि वह भविष्य में परिवार की जिम्मेदारी संभाल सके। लेकिन अब बाबा ने उसकी सोच को पूरी तरह बदल दिया है और परिवार से अलग करने की कोशिश कर रहा है।

प्रशासन से न्याय की मांग

पीड़ित महिला ने रायपुर एसएसपी को लिखित आवेदन सौंपा है और पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराए जाने की मांग की है। साथ ही चेतावनी दी है कि यदि जल्द कार्यवाही नहीं हुई, तो वे अपने पूरे परिवार के साथ बाबा के निवास के सामने आत्मदाह करने को मजबूर होंगी।

समाज में गहराता चिंता का विषय

यह मामला न केवल एक पारिवारिक संकट को दर्शाता है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि धार्मिक प्रवृत्तियों की आड़ में किस प्रकार युवाओं को मानसिक रूप से प्रभावित कर, सामाजिक ताने-बाने को तोड़ा जा रहा है। यह प्रशासन और समाज दोनों के लिए सोचने का विषय है।

 


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