
असल में ऐसा क्या हुआ था कि ये किताब द लास्ट हुर्रा, जिस पर फिल्म बनी है, वो मेरे पास पहले 2007 में आई थी। मैंने 2-3 साल तक इस पर काम किया। एक निर्माता भी थे, मगर जो कहानी थी वो ठीक से नहीं बन रही थी, कास्ट और प्रोडक्शन ठीक से नहीं हो रहा था। मतलब जैसा मैं चाहता था, वो बात बन नहीं रही थी तो मैंने कहा कि अभी इसे नहीं करते हैं, क्योंकि फिल्म आपको ठीक से बनानी है, इसके लिए आपको पैसे भी होने चाहिए। इसलिए, तब मैंने इसे छोड़ दिया। फिर ये किताब 2018 में वापस मेरे पास आई, तब मैंने वापस काम करना शुरू किया। मुझे लगता है कि ये कहानी इसलिए अहम है, क्योंकि हम दिवाली सोचते हैं कि हमारी परेशानी सबसे बड़ी है। किसी और को ऐसी परेशानी नहीं है, पर हर इंसान की कोई न कोई मुश्किल होती है, इसी का नाम जीवन है। इस कहानी के नायक वेंकटेश ने मुश्किलों के बावजूद अपनी जहरीली को जिया, वो मी मैजिक का लगा। उनका जीवन कठिन है, मैं जीना नहीं चाहता का रोना नहीं रोया, तो मुझे लगा कि ये कहानी, क्योंकि आज के समय में खास तौर पर बहुत रेलवेंट है, सभी किसी न किसी तनाव से गुजर रहे हैं। शायद इसी वजह से ये कहानी पहले नहीं बनी, अब बनी।
मंजूर निदेशक दोनों फिल्में मित्र मेरे मित्र और फिर यादगार बन रहे हैं। इसके बावजूद डायरेक्शन से इतने करोड़ तक दूरी की क्या वजह रही?
वजह असल में कुछ नहीं था। कभी-कभी जीवन में काफी चीजें यहां-वहां उलट-पुलट जाती हैं। मैं अजीब चीजों में उलझी हुई हूँ। इसलिए इतने साल के प्रमाण गए, लेकिन सलाम वेंकी डायरेक्ट करते वक्त एक बार मुझे नाराज किया कि मैं डायरेक्ट करना बहुत पसंद करता हूं। मेरी कोशिश बस यही रहती है कि मेरी फिल्म देखने के बाद आप उसके बारे में बातें करें, वही मेरी जीत है।
फिर मिलेंगे स्वच्छता पर, सैल्यूट वेंकी में वेंकी मस्कर ड्रिस्ट्रॉफी से जूझता है। आपके होश से ऐसी फिल्में सजग और संवेदनशील दर्शक वर्ग बनाने में कितने संबंध रखते हैं?
देखिए, मैं आम तौर पर एक कहानी लेता हूं और वो कहानी सुनाता हूं, लेकिन इसमें ऐसा एक पहलू होता है जो ऑडियंस में कुछ लोगों के पालने को छूते हैं, पर कोई मैसेज नहीं बनाता है, मैं ये शेप फिल्म नहीं बनाता। एक कहानी बनाता हूं, जिसके अंदर कुछ न कुछ होता है, जिसे देखकर आप उसके बारे में थोड़ा सा आकर्षित होते हैं। मैं ये नहीं चाहता कि आप उसके बारे में बेकार महसूस करें। मैं चाहता हूं कि आप उसके बारे में खुश महसूस करें। अच्छी फ़ील करें। किसी की कहानी को देखकर दिल भर जाना चाहिए। आपको ये लगना चाहिए कि चाहे जितनी भी मुश्किलें हों, पर जीना चाहिए। यही सलाम वेंकी में भी है।
फिल्म में काजोल और आमिर जैसे अनुभव अभिनेताओं को प्रत्यक्ष करने का अनुभव कैसा रहा है? क्या उन्होंने कुछ सलाह भी दी?
पहले दिए गए थे। यही अच्छाई होती है कि अगर मैं आमिर या काजोल जैसे ऐक्टर्स को कास्ट करता हूं, तो मुझे उम्मीद है कि जो कलर पर है, वह भी अच्छा होगा। इसलिए, मैंने उन्हें समझा और दोनों ने अपना चमत्कारी अनुभव निकाला है। न सिर्फ आमिर और काजोल, बल्कि राहुल बोस, राजीव खंडेलवाल, प्रकाश राज सभी अनुभवी हैं और सभी ने मेरी फिल्म को और बेहतर बनाया है।
आप कई सालों से साउथ इंडियन और हिंदी दोनों भाषाओं की फिल्में कर रही हैं। इन दिनों जो पैन इंडिया फिल्मों का दौर शुरू हुआ है, उससे कैसे जुड़े हैं?
ये अच्छा है, लेकिन ये मेरे लिए ये नया नहीं है। मैं तो नहीं जानता कि कब से सब जगह फिल्में कर रहा हूं, तो मेरे होश से ये कोई नई चीज नहीं है। ऐसा पहले भी था, अब बस इस पर चर्चा बहुत ज्यादा होने लगी है।
इन दिनों थिएटर्स में ऑडियंस कोलाना भी एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। सिनेमा में पहले की तरह नहीं आ रहे हैं। इस बात को लेकर कोई चिंता है?
इसलिए हम आप सबसे बात कर रहे हैं और ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि यह एक ऐसी फैमिली फिल्म है, जिससे हमारी जिंदगी निश्चित तौर पर बदल सकती है। जब आप फिल्म देखने के बाद वापस लौटेंगे तो इसके बारे में जरूर सोचेंगे और आपके जीवन को थोड़ा और बेहतर करने का मन करेगा।
आपके फिल्मों के रिश्ते हमेशा बहुत मजबूत होते हैं। आम तौर पर औरतें सबसे मजबूत माने जाते हैं, फिर भी हम अपने घर-समाज में काफी लिंगभेद और गैर-बराबरी देखते हैं। आपको ऐसे लिंगभेद से जुड़ी चीजें कितनी परेशान करती हैं?
मैं एक आर्मी दृष्टिकोण में पाली-बढ़ी हूं, तो निजी तौर पर मुझे कभी किसी तरह की गैर-बराबरी नहीं सहनी पड़ी है। मैं व्यक्तिगत रूप से कभी ये नहीं जीता हूं, लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि यह एक (कड़वी) सचाई है। मैं ये सब जगह देखता हूं, वो चाहे फिल्म इंडस्ट्री हो या बाहर हो या फिर घरों में। इसलिए, मेरे लिए यह जरूरी है कि मैं ऐसा करके दिखाऊं, जो मजबूत हो। मैं चाहता हूं कि मेरी संबंध मजबूत हों। क्योंकि, मैं अपनी जिंदगी में बहुत मजबूत हूं, तो वो मेरी आंखों में भी झांकता है। रही बात इन चीजों को परेशान करने की, तो ये गैर बराबरी बिल्कुल परेशान करती है। बहुत ज्यादा परेशान करती है, इसलिए हम मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में एक विमन ग्रुप वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव क्रिएट करते हैं, जो सेक्सुअल हरैसमेंट को, जेंडर से जुड़े भेदभाव को ग्रेविटेशन से देखते हैं और मदद करते हैं।
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