
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के खतरे के बीच जो सबसे ज्यादा तेजी से लोगों के पास पहुंचा था वह मास्क. देश में छह महीने पहले तक गारमेंट की दुकानों से लेकर लोगों के वार्डरोब और चार्ट से दूर रहा मास्क अचानक ही सबसे जरूरी चीज में शामिल हो गया। इसकी ज़रूरत से होने वाली बीमारी से बचाव के अलावा और भी ज़्यादा बढ़ गया जब मास्क न पहनने के लिए जुर्माने और सजा का कारण बन गया।
कोरोना से बचाव के लिए जरूरी माने गए मास्क को लेकर न केवल केंद्र सरकार ने लोगों से अपील की बल्कि तोंठों ने मास्क न जोड़ने पर रोक लगा दी। सबसे भारी-भरकम जुरासिक मासक को लेकर झारखंड सरकार ने दिया। झारखंड में सार्वजनिक रूप से मासक न लोग पर एक लाख रुपये जुर्माने का बंदोबस्त किया गया। वहीं दो साल की सजा का भी ऐलान किया गया।
इसके साथ ही यूपी सरकार ने सार्वजनिक रूप से मासक न बोली पर 100 रुपये के जुर्माने की घोषणा की। उसके बाद जुलाई में इसे बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया। वहीं उत्तराखंड सरकार ने मास्क को लेकर 200 रुपये काट का आदेश दिया। हालांकि पहली बार में 200 रुपये के बाद तीसरी बार में एक हजार रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया ताकि लोग मास्क को लेकर दोषी न कनेक्शन। गुजरात में भी बिना मासक पकड़े पकड़े जाने पर एक हजार रुपये के जुर्माने का ऑर्डर दिया गया.
भारी मांग और जरूरत ने बाजार को मौका दिया और कारोबारियों ने हाथों हाथ लिया। नतीजा यह हुआ कि बड़े घरानों को लेकर घरों तक मास्क बनाने का काम पड़ा और छह महीने में ही मास्क का विदेश में आरोप लगने लगा। इतनी ही जानकारी का अंदाजा है कि आने वाले दिनों में सिर्फ मास्क का ही कारोबार (Face Mask Industry) 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा. आज बाजार में 10 रुपये से लेकर 1000 रुपये से ज्यादा कीमत के सामान्य से लेकर डिजायनर मास्क मौजूद हैं।
भारत में मास्क बनाने में जुट गए बड़ी सरकारी और निजी कंपनियां
कोरोना आने से पहले तक किसी भी उत्पीड़क के लिए जानी जाने वाली सरकारी और निजी कंपनियाँ अब आमने-सामने बन रही हैं। इन बंधकों की ओर से कहा गया है कि देश में मास्क की जरूरत को देखते हुए उन्हें स्थानीय स्तर पर मास्क ने निर्माण करने का फैसला किया है और इस पर तेजी से काम भी चल रहा है।
हाल ही में एम एंड एम, मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स आदि कोरोना से संबंधित उत्पाद बना रहे हैं। वहीं रिलायेंस कंपनी एक लाख मास्क प्रतिदिन तैयार कर रही है। कुछ ऐसी कंपनियां वास्तव में काफी व्यवसाय है जैसे एडिडास (एडिडास), डनलप (डनलप) सहित कई नामी कंपनियां आजकल मास्क बना रही हैं। भारत की कई बड़ी टैक्सटाइल कंपनियां और गारमेंट फैक्ट्रियां मास्क मेकिंग का काम कर रही हैं।
डनलप ब्रांड (डनलप ब्रांड) नाम से गड्डों का कारोबार करने वाले और टायर के लिए मशहूर इस कंपनी ने एन-95 मास्क का निर्माण शुरू किया है। वहीं खेल का सामान, जूते और कपड़े बनाने वाली जर्मन कंपनी एडिडास ने पहला कवर तैयार किया है। एडिडास ने तीन तरह के फेस कवर लॉन्च किए हैं।
हाल ही में यूपी के गाजियाबाद में ही मास्क बनाने वाली 32 फैक्टरियां शुरू की गई हैं। जबकि कोरोना से पहले सिर्फ तीन फैक्ट्रियों में ही मास्क बनाने का काम होता था और इतनी बड़ी मात्रा में भी नहीं होता था।

एक बार ऐसा हुआ कि बाजार में एन-95 मास्क खराब हो गया।
जब एन-95 मास्क को लेकर मची मारामारी और फिर एक कंजेस्ट बदल गया सब…
कोरोना को रोकने के लिए सर्जिकल मास्क के साथ ही एंटी माइक्रो बैक्टीरियल एन 95 मास्क बढ़ाया गया। फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर्स या कोविड स्टाफ के लिए उपयोगी बताए गए इस मास्क को लेकर आम लोगों की आपाधापी बढ़ गई। एक बार ऐसा हुआ कि एन-95 मास्क की बाजार में कमी हो गई। हर व्यक्ति इसी मास्क को बनाने लगता है। बाजार के रुख को देखते हुए एकाएक कंपनियां मास्क बनाने के कारोबार में उतर गईं। कई बड़े संगठन ने एन-95 मास्क बनाने की घोषणा कर दी।
हालांकि डबल्लू चेतावनी की तरफ से आए बयान और फिर भारत सरकार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की दिशा से सभी सावधानियों को जारी एडवाइजरी में एन-95 मास्क को सुरक्षित न होने की बात कहने के बाद इसकी मांग में अचानक कमी आ गई। जबकि बाजार में मिल रहे अन्य मस्क की बिक्री बढ़ी है। वहीं चिकित्सा सेवाओं में लगे लोगों ने रे स्पिरेटरी मास्क का उपयोग जारी रखा।
ऐसा होता है एन-95 मास्क
ओकिनावा इंस्टीटयूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी के एक साधारण चेहरे मास्क के अनुसार एक छानबीन कागज के अनुसार एक संपूर्ण फिल्टर फिल्टर पर प्रमुख काम करता है। हालांकि कपड़ों के चादरें में दिए गए छेद इतने छोटे होते हैं कि लोगों को सांस लेने में परेशानी हो सकती है। जबकि N95 मास्क तीन तरह से काम करता है। इसमें छह दाखिले होते हैं। इस मास्क में हवा को फिल्टर करने की पर्याप्त क्षमता होती है। यह मास्क 0.3 डायमीटर वाले पार्टिकल्स को भी फिल्टर कर सकता है साथ ही, ये एलर्जेंट वायरस, बैक्टिरिया, डस्ट, ड्रॉपलेट्स और अन्य खतरनाक ऑयस्ड पार्टिकल्स को फिल्टर कर सकता है।
कपड़े के मास्क को मिली हरी झंडी और घर-घर में बनने लगे मास्क
केंद्र सरकार की एडवाइजरी में कहा गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर होममेड मास्क को ग्रेट ग्रेसी कवर के उपयोग के बारे में सलाह दी गई है। साथ ही कहा है कि रे स्पिरिरेटर एन -95 मास्क का उपयोग खतरनाक है क्योंकि यह वायरस को मास्क से बाहर निकलने से रोकता है। इसके बाद ही कपड़े के मास्क बनाने का काम शुरू हो गया। न केवल घरों में मास्क बनने लगे बल्कि कई बड़े टैक्सटाइल ऑब्जर्वेटिव ने भी इनहाउस सत्अप का उपयोग करते हुए पेशेंट के मास्क बनाना शुरू कर दिया। कपड़ों के मास्क में मार्क करने वालों में बाइक चलाते हैं और कई देश इसे पहचानते हैं। इस दौरान कपड़ों के मास्क के कई डिजायनें भी बाजार में आ गईं।

आज देश में घर में मास्क बन रहे हैं। (फोटो-सुमित त्यागी)
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई रूतयों में स्थानीय स्तर पर लोगों ने कपड़े के मास्क बैंक बनाए और लोगों में सार्वजनिक रूप से साझा किए। वहीं अंतर्राष्ट्रीय जैसी संस्थाएं भी इसमें आगे आईं और वृंदावन की विधवाओं के साथ मिलकर कृष्ण भक्ति से जुड़े मास्कक्रिएट करें।
स्थानीय स्तर पर बने मास्क के कपड़े की जांच जरूरी
गुरुग्राम में टैकसस्टाइल कंपनी चलती है विष्णु शर्मा कहते हैं कि उनकी कंपनी ने लॉकडाउन में चैरिटी के लिए कपड़े के मास्कक्रिएट किए. चूंकि पहले से परिधान का काम था तो पूरा सतअप था. साथ ही गारमेंट के लिए ही लेबरेटरीज में जांच के बाद झूठा आया था। कोई खतरनाक कैमिकल नहीं था। ऐसे में मास्क बनाने में कोई दिक्कत नहीं आई। हालांकि कलाकारों की संख्या काफी कम रही है।
उन्नी ने कहा कि टैक्सस्टाइल कंपनियां पहले से कपड़े में मौजूद कैमिकल की जांच कर रही हैं और पीएच वैल्यू तक का ध्यान दुश्मन हैं लेकिन थानीय स्तर पर बन रहे मास्क के लिए कोई दिखावे नहीं है। लादेन इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
खादीकॉटन और रेजा एहसान के मास्क की भारी मांग
कपड़े के मास्क को बेहतर दिखाने के बाद से कई फैशन डिज़ाइनर भी इस काम में जुट गए। रेजा ऑफर के दौरान काम करते हुए एकलौती फैशन दीजायनर ललिता ने बताया कि कॉटन, खादी और रेजा होने के मास्क की भारी मांग होती है। उन्नीस ने खुद खादी और रेजा के मास्क रहने वाले दक्षिण भारत के कई लोगों में सप्लाई किए हैं। लॉकडाउन और उसके बाद से उपस्थिति का ज्यादातर काम मास्क पर ही हुआ है।

अगर दूरी नहीं है तो आप मास्क पहनकर भी कोरोना की चपेट में आ जाएं। (फोटो-सुमित त्यागी)
बोले- विशेषज्ञ अपनी जगह पर बाज़ार में हमेशा अवसर देखता है..
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल प्रोजेक्ट्स के पूर्व निदेशक एमसी मिश्र का कहना है कि कोरोना बीमारी के बाद से मस्क का बाजार में छा जाना इस बात का सबूत है कि बाजार हमेशा अवसरों को देखता है। आपने देखा होगा कि पहले सर्जिकल मास्क और एन-95 मास्क को लेकर मारामारी रही, फिर कपड़े के मास्क का कारोबार हुआ। इसके बाद के कपड़ों की मैचिंग के डिजायनर मास्क आज बाजार में मौजूद हैं। इससे आगे भी कुछ हो सकता है। हालांकि स्वास्थ को लेकर बात करें तो मास्क संपर्क में आने वाले दोनों लोगों के लिए जरूरी है लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है दूरी। अगर दूरी नहीं है तो मास्क पहनकर भी कोरोना की चपेट में आ जाएं। मास्क पहनना 100 प्रतिशत सुरक्षा का कारण नहीं है, लेकिन सामाजिक दूरी इस बीमारी से खुद को बचाने का नाम उपाय है। हालांकि मास्क काफी हद तक बूंदों को दूसरे तक पहुंचने से रोक रहा है इसलिए जरूरी है।
रही बात मास्क में डम स्नीक की, प्रॉब्लम होने की तो यह मास्क पहनने के बाद स्वाभाविक है। इसके साथ ही एक जरूरी बात यह भी है कि एन-95 मास आम लोगों के लिए नहीं है। यह फ्रंटलाइन COVID वारियर्स या स्वास्थ्य कर्मियों के लिए है। आम लोगों के सामान्य कपड़ों में डर लगता है, यह बेहतर है। इससे सांस संबंधी तकलीफें भी नहीं होंगी।
सुरक्षित नहीं है कोई भी मासक,बचाने के लिए करें उपाय
इंद्रप्रस्थ अपोलो में स्पिरिटरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग के डॉ. राजेश चावला कहते हैं कि अगर लोगों को लगता है कि वे मास्क पहनकर सेफ हैं तो ऐसा नहीं है। कोई भी मास्क 100 प्रतिशत सेफ नहीं है। हां लेकिन दूर के साथ संपर्क में आने वाले दोनों लोग मास्क पहन रहे हैं तो इससे संक्रमण का खतरा बहुत कम हो जाता है। अगर अस्थमा या सांस की बीमारी नहीं है तो मास्क लेने से परहेज भी बहुत ज्यादा नहीं है। मास्क पहनकर व्यायाम करना, सीढ़ी चढ़ना या कोई शारीरिक मेहनत का काम करना खतरनाक है। मास्क पहनकर सामने वाला सुरक्षित हो सकता है, यह समझकर मास्क को रोका जा सकता है।
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टैग: व्यवसाय, कोरोना, निर्यात करना, स्वास्थ्य, अपना खुद का मास्क बनाएं, मुखौटा, N95 नकाब
प्रथम प्रकाशित : 22 अगस्त, 2020, 07:10 IST
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