भारत में अब भी मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के प्रति लोगों का रवैया नकारात्मक है। इनमें से कुछ लोग ऐसे हैं जो मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित बात ही नहीं करना चाहते, जबकि कुछ प्रतिवादी बहुत अधिक नकारात्मक हैं कि वे पूर्वगामी हैं जो मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति किसी भी जिम्मेदारी के योग्य नहीं रहते। जबकि वास्तविकता उलटी होती है। मानसिक स्वास्थ्य से ग्रस्त व्यक्ति को न केवल और अधिक सहयोग और देखभाल की आवश्यकता होती है, बल्कि विश्वास बढ़ाने की भी आवश्यकता होती है। आज वर्ल्ड सिज़ोफ्रेनिया डे (World Schizophrenia Day) के उपलक्ष्य में जानते हैं कि सिज़ोफ्रेनिया किसी भी व्यक्ति के जीवन को कैसे प्रभावित करता है। साथ ही एक परिवार और समाज के रूप में आप इन लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं।
एनआईएमएमसीएच के मुताबिक 16 से 30 साल के लोग अधिकतर इस मानसिक समस्या के शिकार होते हैं। भारत में ब्लूप्रिंट से 10 लाख लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। एनिममच के अनुसार स्किज़ोफ्रेनिया एक ऐसी मानसिक समस्या है जो किसी व्यक्ति की सोच को प्रभावित करती है। ऐसे लोग अपनी एक अलग दुनिया में रहते हैं। गतिविधियों के चरण पर पहुंचने के बाद वे रोज़गार के कामों में भी हिस्सा नहीं ले पाते हैं। वर्तमान में वे अपनी अलग दुनिया में रहते हैं।
विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस 2023 (विश्व स्किज़ोफ्रेनिया दिवस 2023 )
24 मई को मनाए जाने वाले विश्व सिज़ोफ्रेनिया दिवस का मकसद लोगों को इस समस्या के बारे में जागरूक करना है। इस मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर से निपटने के लिए लोगों को उपाय और इससे होने वाले अकाउंट के बारे में भी जानकारी दी जाती है। अपनी मेंटल हेल्थ का ख्याल न रखने के कारण यह समस्या किसी भी व्यक्ति को अपना शिकार बना सकती है। इस बार वर्ल्ड सिज़ोफ्रेनिया डे 2023 की थीम सामूहिक रूप से मरीजों की मदद करने की शक्ति का उत्सव है।
कई बार कुछ ऐसे लोगों से मिलते हैं, जो अटपटा और पहले से अलग व्यवहार करते हुए नजर आते हैं। वो अपनी आप से बातें करते हैं और कुछ ऐसे उद्धरण में उलझे रहते हैं, हकीकत से कोई संबध नहीं है। जी हां हम बात कर रहे हैं सिज़ोफ्रेनिया की। जो एक ऐसा डिसऑर्डर है, जिसे पहचानना इतना आसान नहीं है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति पर आमतौर पर भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
सिज़ोफ्रेनिया एक ऐसा मानसिक अवस्था है, जो व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक सहित जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। जानिए ये किस प्रकार से हमारी जिंदगी के विकास में बाधा बन सकते हैं।
सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) क्या है
इसके बारे में राजकीय मेडिकल कालेज हलद्वानी में मनोवैज्ञानिक डॉ. राजकुमार पंत ने कहा है कि सिज़ोफ्रेनिया एक प्रकार का मानसिक विकार है, जो किसी व्यक्ति के सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति निर्णय लेने में काम का अनुभव करता है। इसके अलावा रोजमर्रा के जीवन में आने वालों को मुश्किल का सामना करने में परेशानी आने लगती है। ऐसे लोग पढ़ाई और अपने प्रोफेशन में पिछड़ जाते हैं। साथ में सोशल लाइफ का मजा नहीं उठा सकते।
इस बीमारी की 3 स्टेज होती है।
1 प्रोड्रोमल चरण
सिज़ोफ्रेनिया का पहला चरण प्रोड्रोमल है। इसमें आपको लक्षणों की जानकारी आसानी से नहीं मिलती है। इस स्थिति में गंभीर लक्षण नहीं दिखते। कामकाज में गिरावट दिखने लगती है और सामाजिक जीवन धीरे-धीरे कम होने लगता है।
2. एक्यूट या एक्टिविटी स्टेज
ये सिज़ोफ्रेनिया की दूसरी अवस्था है। इसमें व्यक्ति भ्रम की स्थिति में रहता है। किसी काम में लोमड़ी करने से लेकर सोच तक काम होता है।
3. रिकवरी
इसमें व्यक्ति के व्यवहार में अंतर दिखाई देता है। वे थकान का अनुभव करते हैं और व्यवहार में परिवर्तन होते हैं।
ये समस्या किस प्रकार से करती है आपको प्रभावित करती है
1. बोलचाल में परिवर्तन आना
इसमें व्यक्ति की बोलचाल में कुछ परिवर्तन दिखाई देता है। व्यक्ति का बात करने का तरीका तरीका लगता है। वास्तव में, उनके शब्दों पर नियंत्रण नहीं मिलता है। बहुत से लोग लंबे समय तक चुप रहते हैं। वहीं वो लोग जो तीसरे चरण से जुड़ते हैं, वे कुछ ऐसी चीजें भी सुनते या बोलते हैं, जो आसपास नहीं घटती है।
2. बिहेवियरल चेंजिज
व्यवहार में सदा पाया जाता है। ऐसे लोग खुद को दूसरों से काटकर महसूस करने लगते हैं। अपने डेली रूटीन में कभी-कभी खुद को धोखा देने वाली अभिव्यक्त पोजीशन करने में सक्षम नहीं है। वे कई बार स्वयं को उत्साहहीन महसूस करने लगते हैं। उनके बिहेवियर में कई बदलाव देखने को मिलते हैं।
3. गतिविधियों में हिस्सा न लेना
रोज़मर्रा के कामों को करने में ऐसे लोग आलस्य और थकान का अनुभव लेते हैं। वे अपनी ही लाइफ में लगे रहते हैं। दूसरों के साथ मिलकर कोई काम करने में इंटरस्ट नहीं लेते हैं। उनके व्यवहार का प्रभाव काम पर भी दिखता है। वे किसी भी काम को पूरा करने में फॉक्स नहीं करते हैं। जो धीरे-धीरे उनकी विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है।
4. भावनाओं को व्यक्त न कर पाना
इस समस्या से ग्रस्त लोग अपने मन की बात को जाहिर करने में असमर्थता का सामना करते हैं। इसका प्रभाव उनकी सामाजिक जीवन पर दृष्टि डालता है। वो समाज में खुद को समायोजित करने में परेशानियों का सामना करता है। आपके विचार को स्पष्ट न कर पाने के कारण वे सामाजिक दायरे से अलग होते हैं।
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