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बच्चा एक ऐसा आईना है, जिसमें आपको अपना प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। अगर आप रूखे हैं, मुखर हैं और गैर-जिम्मेदार हैं, तो बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से गलत है। आपकी बात पर गुस्सा आता है, तो बच्चे भी उस राह पर आप पर नामांकन हो जाता है। बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए पहले आपको खुद को संभलना होगा। अक्सर हम लोगों को खुद में कोई कमी नज़र नहीं आती। हमें लगता है कि हमसे बेहतर और कोई नहीं है। यदि आप बच्चों को एक ज्ञान और उत्तरदायी व्यक्ति बनाना चाहते हैं, तो बच्चों के सामने गुस्सा करना छोड़ दें (बच्चों पर क्रोध का प्रभाव)। आइए जानते हैं बच्चों के सामने गुस्स करने से क्यों बचना चाहिए।
इसके बारे में पेरेंटिंग कोच डॉ पल्लवी राव चतुर्वेदी (पेरेंटिंग कोच डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी) का कहना है कि अगर आपको लग रहा है कि आप बहुत परेशान हैं, तो थोड़ा रूके और पानी पीएं। उसके बच्चे के पास वापस लौट आए। ध्यान रखें कि आप बच्चे से बात कर रहे हैं, तो वे छोटे सा नर कुछ अलग-अलग दिखने लगते हैं और उन्हें समझने की कोशिश करते हुए देखा जाता है कि आपके क्रोध से प्रभावित हुए बच्चे अन्य लोगों के साथ समान व्यवहार करते हैं।
इस स्थिति से बाहर आने के लिए बच्चों के सामने या उन पर गुस्सा करने से पहले इन बातों का ध्यान रखें।
1. एकाग्रता की कमी
बात पर गुस्सा करने का बच्चों पर गहरा असर नजर आता है। वे न केवल स्वयं को दूसरों से कम समझते हैं, बल्कि अन्य लोग जुलने में मिलने के कारण भी उन्हें कठिनाई में धकेलते हैं। स्कूल में कुछ भी पढ़ने पर वे ज्यादा देर तक याद नहीं रखते। इसके अलावा अन्य बातों पर ध्यान न दें। दरअसल, ब्रेन के एक कोने में पेरेंटस का क्रोध और उनके बच्चों के प्रति व्यवहार बच्चों की पर्सनेलिटि को दबांग लगता है।
कैसे सुलझाएं समस्या
बच्चों के साथ कुछ देर पार्क में गुज़ारें। पढ़ाई के साथ उसे कुछ देर अपनी सक्रियता में भी काम करने दें। कई बार रंग बच्चे के मानसिक विकस पर गहरा प्रभाव दे रहे हैं। देम पेंटिंग करते हैं, सिंगिग करते हैं और टाइमटाइम डांस के लिए देते हैं। इससे बच्चे के भीतर साइट क्रोध और दर्द होने संबंधी शिकायत करता है।
2. विश्वास कम होना
बच्चे को मारने से वो गलती करना तो नहीं छोड़ना, लेकिन उसकी किसी गलत संगत से पकड़ने का खतरा निश्चित रूप से बढ़ जाएगा। ऐसे बच्चे फ्रैंक बात करने से कतराते हैं और किसी को मन ही मन दबा लेते हैं। माता-पिता का अनावश्यक व्यवहार उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है। कई बार पेरेंटस ये समझ ही नहीं पाते कि बच्चों के लिए डॉक में उनकी मजूरी जरूरी है। इससे बच्चों में विश्वास बढ़ता है और मेच्योर होने लगता है। उसे लगता है कि ये काम मेरी जिम्मेदारी है। अगर आप बच्चों को दूसरों के सामने डांटेंगे, मारेंगे और हर बार उनके लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल करेंगे, तो वो खुद को पहचानेंगे और पहले से ज्यादा गलती करेंगे। साथ ही अन्य लोगों के सामने आने से भी कतराएंगे।
3. अवसाद का शिकार
अब बच्चे के मन में हर छोटी बड़ी बात को लेकर बैठने से लगता है। खुद को पहले से ही गलत समझने वाला बच्चा अब गुमसुम सा हो जाता है। ऐसे बच्चे अक्सर खुद को घर में कैद कर लेते हैं और परिवार के बाकी सदस्यों से भी कटे रहते हैं। इसका असर उनकी आंखों, चेहरे और स्वास्थ्य को देखकर भी लगाया जा सकता है। अंदर ही घुटना महसूस करने वाले बच्चे डांटने या मारने से बच्चे की जिम्मेदारी लेते हैं। बच्चे की शैतानी को लेकर उसका शारीरिक विकास तक रूक जाता है।
कैसे सुलझाएं समस्या
माता-पिता को बच्चों की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही डॉक्टर की सलाह से किसी थैरेपी का सहयोग भी लेना चाहिए।
4. रिस्पांस न करना
ऐसे बच्चे से बार बार सवाल करने के बाद भी वे उत्तर देने के लिए तैयार नहीं होते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि उनका गलत जवाब देने या मार का कारण बन सकता है। वो अंदर ही अंदर जानते हैं कि उन्हें कोई बुला रहा है, लेकिन फिर भी वे जवाब देने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें एक हेल्दी एनवायरमेट होने की संभावना है।
कैसे सुलझाएं समस्या
ऐसे में पेरेंटस बच्चों के साथ दिनभर में से कम से कम एक घंटा साथ में और उनसे बातचीत करें। इसके अलावा स्टोरी रीडिंग भी चिल्ड्रन की मेंटल हेल्थ को एक्टिव करती है। छोटी छोटी उपलब्धियों के लिए उन्हें दौड़ाएं। इससे उनके अंदर कुछ करने और जीतने की भावना पैदा होगी।
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