नई दिल्ली: बेहद कम उम्र में देश के युवाओं को आज़ाद भारत का सपना दिखाने वाले और अपने ज्ञान का पूरी दुनिया में लोहा मनवाने वाले स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता के गौरवमोहन मुखर्जी स्ट्रीट के एक कायस्थ परिवार में विश्वनाथ दत्त के घर में पैदा हुए नरेंद्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) को हिंदू धर्म के मुख्य प्रचारक के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विवेकानंद का जिक्र जब कभी आएगा तो उनके अमेरिका में दिए गए स्मारक भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजाया था।
‘उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’, ‘यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं।’ दास भारत में ये बातें स्वामी विवेकानंद ने अपने प्रवचनों में कही थी। उनकी इन बातों पर देश के लाखों युवा फिदा हो गए थे। बाद में तो स्वामी की बातें अमेरिका तक कैल हो गया। 12 जनवरी का दिन स्वामी विवेकानंद के नाम पर समर्पित है और इसे युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
वेश्या के मोहल्ले में था विवेकानंद का घर
विवेकानंद हिंदुस्तान के एक ऐसे संत हैं, जिनके संदेश आज भी लोगों को उनके चेज करने को मजबूर कर देते हैं और उनके अनुयायी देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर कोने में नजर आते हैं और एक ऐसा संत सत्य एक कथन पूरी दुनिया को अपना कायल बनाने के लिए काफी होता था। लेकिन उनके जीवन से जुड़ी एक ऐसी घटना शायद ही आप जानते होंगे। अपने ज्ञान के बल पर दुनिया का दिल जीतने वाले वही स्वामी विवेकानंद एक बार एक वेश्यावृत्ति के आगे हार गए थे। एक वाकया यह भी है कि स्वामी विवेकानंद का घर एक वेश्या मोहल्ले में था, जिसके कारण विवेकानंद का घुंघरू वाले घर में स्टिकर थे।
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बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका जाने से पहले रायपुर के महाराजा के यहां मेहमान बने थे। कुछ दिन वहां रहने के बाद जब स्वामीजी का विदा लेने का समय आया तो राजा ने उनके लिए एक स्वागत समारोह रखा। उस समारोह के लिए उसने एक प्रसिद्ध वेश्यावृत्ति से बनारस बनाया। जैसे ही वेश्यावृत्ति विवेकानंदजी के कमरे से बाहर पहुंचकर उन्होंने अपने कमरे में बंद कर लिया।
बहुत से वेश्याओं ने गाना शुरू किया, फिर उन्होंने एक संत गीत गाया। गीत का अर्थ था- ‘मुझे सुविधाजनक है कि मैं तुम्हारे योग्य नहीं, तो भी तुम तो ज्यादा ज्यादा करूणामय हो थे। मैं राह की धूल सही, यह आसान। लेकिन तुम्हें तो मेरे प्रति इतना विरोधात्मक नहीं होना चाहिए। मैं कुछ नहीं हूं। मैं कुछ नहीं हूं। मैं अज्ञानी हूं। एक पापी हूं। पर तुम तो पवित्र आत्मा हो। तो क्यों मेरे आत्मा आत्मा हो तुम?’
वेश्या के भजन से विवेकानंद की आंखों में आंसू आ गए
वेश्यावृत्ति जब भजन गा रही थी तो उस समय उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। विवेकानंद ने अपने कमरे में इस गाने को सुना और उनकी स्थिति का अनुभव किया। उस वेश्या के भजन सुनकर स्वामी विवेकानंद बाहर से अंदर आ गए। उसी समय वह एक वेश्यावृत्ति से हार गया। उन्होंने वेश्यावृत्ति के पास जाकर उससे कहा कि अब तक जो उनके मन में डर गया वह उनके मन में बसी वासना का डर था जिसे उन्होंने अपने मन से बहार निकाल दिया और इसके लिए उन्हें प्रेरित किया कि वेश्या से ही मिल गया। उन्होंने उस वेश्यावृत्ति को पवित्र आत्मा कहा, जिसने उन्हें एक नया ज्ञान दिया।