छत्तीसगढ़

धर्म स्तंभ काउंसिल की ऐतिहासिक पहल: बस्तर को मिले उसका प्राचीन नाम “दंडकारण्य” छत्तीसगढ़ की सनातन पहचान को पुनर्स्थापित करने संत समाज हुआ एकजुट

UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर | छत्तीसगढ़ की आध्यात्मिक चेतना, सनातन परंपरा और सांस्कृतिक विरासत की पुनर्स्थापना हेतु धर्म स्तंभ काउंसिल ने आज मुख्यमंत्री  विष्णुदेव साय को एक विस्तृत मांग पत्र प्रेषित कर ऐतिहासिक मांग रखी है – बस्तर संभाग का नाम बदलकर “दंडकारण्य” किया जाए।

धर्म स्तंभ काउंसिल के सभापति डॉ. सौरभ निर्वाणी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह सिर्फ नाम बदलने की कवायद नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सनातन आत्मा को पुनः स्मरण कराने का प्रयास है। उन्होंने कहा –

“बस्तर कोई साधारण भूभाग नहीं, यह वही क्षेत्र है जहाँ भगवान श्रीराम ने वनवास काल में चरण रखे। यहाँ ऋषियों की रक्षा हुई और धर्म की स्थापना के बीज बोए गए। यह क्षेत्र प्राचीन ग्रंथों में दंडकारण्य के रूप में प्रसिद्ध रहा है। अब समय आ गया है कि हम छत्तीसगढ़ को उसकी मूल पहचान और गौरव से जोड़ें।”

मांग के आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार

  • रामायणीय प्रमाण: वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण और रामचरितमानस में “दंडकारण्य” के विस्तार का उल्लेख है। मान्यता है कि श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने इस क्षेत्र के कई ऋषि आश्रमों में निवास किया।

  • जनजातीय संस्कृति में श्रीराम: बस्तर के गोंड-मुरिया समुदाय में आज भी श्रीराम को “बड़ेराज” (महान राजा) के रूप में पूजा जाता है। लोककथाओं, गीतों और चित्रकला में राम वनवास की झलक स्पष्ट रूप से मिलती है।

  • प्रशासनिक मान्यता: स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार द्वारा स्थापित दंडकारण्य विकास प्राधिकरण (DDA) इस क्षेत्र को “दंडकारण्य” नाम से ही मान्यता देता है, जहाँ बंगाल से आए शरणार्थियों का पुनर्वास हुआ।

संत समाज का समर्थन और वक्तव्य

नर्मदा कुंड निर्वाणी अखाड़ा रामजानकी मंदिर के महंत सुरेंद्र दास ने कहा –

“दंडकारण्य केवल वन नहीं, धर्म और अधर्म के संघर्ष की पावन भूमि है। यह वही भूमि है जहाँ श्रीराम ने राक्षसी प्रवृत्तियों के विरुद्ध धर्म की पुनर्स्थापना की।”

धर्म स्तंभ काउंसिल के पदाधिकारी डॉ. रविन्द्र द्विवेदी ने इसे “छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पुनर्रचना का अभियान” बताते हुए कहा कि यह केवल नाम नहीं, एक नई चेतना का आरंभ है।

आगामी कार्य योजना

  • मुख्यमंत्री से औपचारिक भेंट के बाद संत समाज की बैठक,

  • जन समर्थन हेतु हस्ताक्षर अभियान,

  • बस्तर के गांवों में “दंडकारण्य पुनर्जागरण यात्रा” का आयोजन,

  • विधानसभा में प्रस्ताव लाने हेतु विधायकों से संपर्क,

  • नेता प्रतिपक्ष व सांसदों से समर्थन हेतु संवाद।

प्रदेश भर के संत-महंतों का समर्थन

इस मांग को अखाड़ा परिषद, निर्वाणी अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण सेवा संघ सहित अनेक संस्थानों और संतों का व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ है।
प्रमुख संतजनों में महंत नरेंद्र दास (निर्मोही अखाड़ा), महंत हेमंत दास (चित्रकूट), महंत नंदकिशोर दास, संत पंचराम दास, राघवेंद्र दास और डॉ. रविन्द्र द्विवेदी शामिल हैं।

धर्म स्तंभ काउंसिल ने समस्त सनातन अनुयायियों, मठ-मंदिर संस्थानों और संस्कृति प्रेमियों से इस पुनीत प्रयास में सहभागी बनने का आह्वान किया है।

 


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