
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, बिलासपुर | छत्तीसगढ़ में संचालित गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर एक बार फिर न्यायिक सख्ती सामने आई है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र के लिए छात्रों के प्रवेश पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है।
निःशुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत हुई सुनवाई
यह आदेश निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया।
प्रकरण में हस्तक्षेपकर्ता विकास तिवारी की ओर से अधिवक्ता संदीप दुबे और मानस वाजपेयी ने न्यायालय को बताया कि वर्ष 2013 में राज्य शासन द्वारा जारी विनियम के अनुसार नर्सरी से केजी-2 तक की कक्षाएं संचालित करने वाली निजी शालाओं के लिए भी मान्यता अनिवार्य की गई है, किंतु आज भी बड़ी संख्या में स्कूल बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं।
शिक्षा विभाग के शपथ पत्र पर उठा सवाल
संचालक, लोक शिक्षण विभाग द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र में कहा गया कि “नर्सरी से केजी-2 तक की शालाओं के लिए मान्यता आवश्यक नहीं है”, जिसे याचिकाकर्ता पक्ष ने चुनौती दी।
साथ ही शपथ पत्र में यह भी स्वीकार किया गया कि
राज्य में 1391 प्राथमिक,
3114 पूर्व माध्यमिक, और
2618 उच्चतर माध्यमिक स्तर की गैर मान्यता प्राप्त निजी शालाएं संचालित हो रही हैं।
सचिव को व्यक्तिगत शपथ पत्र देने के निर्देश
खंडपीठ ने राज्य शासन के शिक्षा विभाग के सचिव को निर्देशित किया है कि वे अगली सुनवाई से पूर्व व्यक्तिगत रूप से शपथ पत्र प्रस्तुत करें और स्पष्ट करें कि:
जब 2013 में बनाए गए विनियम में सभी स्तर की निजी शालाओं को मान्यता लेना अनिवार्य किया गया है,
तो फिर बिना मान्यता के इतनी बड़ी संख्या में निजी शालाएं कैसे संचालित हो रही हैं?
इससे बच्चों की शिक्षा और उनके अभिभावकों को आर्थिक नुकसान क्यों हो रहा है?
अगले आदेश तक प्रवेश पर रोक
न्यायालय ने निर्देशित किया कि अगली सुनवाई तक बिना मान्यता प्राप्त निजी शालाओं में किसी भी नए छात्र का प्रवेश न लिया जाए।
यह आदेश प्रदेश भर में उन स्कूलों पर सीधा प्रभाव डालेगा जो अभी तक नर्सरी से लेकर प्राथमिक स्तर तक बिना वैधानिक मान्यता के संचालित हो रहे हैं।
न्यायालय की प्राथमिक चिंता
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बच्चों का भविष्य और शिक्षा का स्तर सर्वोपरि है और राज्य शासन को इस विषय पर गंभीरता से कार्यवाही करनी चाहिए।
साथ ही, न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि यदि आने वाली सुनवाई में संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, तो कड़े निर्देश जारी किए जा सकते हैं।
इस आदेश से छत्तीसगढ़ के शिक्षा क्षेत्र में एक नई बहस छिड़ गई है।
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय मानकों के अनुरूप शिक्षा संस्थानों की अनिवार्यता को सुनिश्चित करेगा और छात्रों के हितों की रक्षा करेगा।
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